Wednesday, March 04, 2015

रंगीन मुस्कान भरी यादें:)

 कुछ समय पहले @Rashmi Ravija ने होली के अवसर पर पिया के घर में पहले दिन की कुछ मीठी यादों के  
  बारे में लिखने को कहा था ,होली आई तो वह याद फिर से ताज़ा हो गयी  :) कुछ यादें मुस्कान ले ही  आती हैं चेहरे पर अक्सर  सुनना ,लिखना रंग बिखेर देता है :)

लड़की के जीवन का सबसे अहम् पहलु होता है शादी के बाद दूसरे घर जाना ...सब कुछ बदला हुआ ....रहन सहन ..खान पान ..बोलना ..सुबह शाम की बदली हुई सूरते ,दिल दिमाग के पेच ढीले कर देती है .....कैसे सबको जाने ,कोई क्या कह कह रहा है सब कुछ समझना आसान बात नहीं ...अस्सी के दशक में कालेज होते होते ही शादी की बात शुरू हो जाती थी ...लड़की को भी पता होता था कि  अब शादी ही होगी ...आगे पढ़ाई के लिए कुछ कहने का मतलब एक लम्बा सा लेक्चर सुनना होता था अमूनन और घर में आप सबसे बड़े हो तो बेटा कोई चांस नहीं आपका कि  आप शादी से बच जाओ .:).हो सकता है सबके साथ ऐसा न हो पर  मेरे साथ यही हुआ ....और कोई मजेदार घटना शादी के बाद हो घटे यह कोई जरुरी नहीं  ..देखने ,दिखाने के दौरान भी किस्से याद रह रह जाते हैं ...:)महज उन्नीस साल की उम्र ..और बिंदास एक काली पेंट और चेक शर्ट में हमेशा रहने की आदत थी ...जो घर उस वक़्त जम्मू में था वहां सामने आंगन में बहुत से पेड़ लगे थे ...अमरुद ,नीम्बू आदि के ..और अमरुद के पेड़ पर चढ़ कर अमरुद तोड़ना मेरा प्रिय शगल ...

ससुराल वाले एक दो बार पहले देख गए थे ...और भी एक दो लोग अभी  देखेंगे ऐसा कह कर अभी जवाब का अभी इंतजार था  जब देखने आयेंगे तो बता कर ही आयेंगे .यह सोच कर सब आराम से थे घर में ..सो  मैं भी बेफिक्री से घुटने तक पेंट चढ़ा कर और शर्ट के बाजू तान कर ऐसी ही एक शाम को मजे से पेड़ से अमरुद तोडती गेट पर अपनी पड़ोस की सहेली के साथ झूल रही थी ..कि  एक बुजुर्ग सी थोड़ी मोटी सी   महिला ऑटो से उतरीं ... और गेट पर पूछा कि भाटिया साहब का घर यही है ..हां हाँ यही है ..अन्दर चले जाओ वहीँ मिल जायेंगे ....आपको और उनके अन्दर जाते ही ...मेरे मुहं से निकला कि कितनी मोटी है न यह ....तभी अन्दर से छोटी बहन भाग कर आई कि मम्मी गुस्सा हो रही है .कैसे बाहर  घूम रही है ..अन्दर तेरी होने वाली नानी सास आई है ..मरे अब तो ...जल्दी से सूट चुन्नी ओढ़ कर ...कमरे में गयी .पर उस वक़्त नानी सास का घूरना  भूल नहीं पायी ...उन्होंने वह मोटी शब्द सुना ..या नहीं यह तो ससुराल जा कर ही पता चला :)
और फिर शादी के बाद यहाँ आते ही जो बदलाव आया वह था भाषा का ..माहोल का ....वहां मेस पार्टी और आर्मी माहोल यहाँ उस से एक दम अलग ....और वहां बोलते थे हम ज्यादातर हिन्दी  ..यहाँ मुल्तानी ,पंजाबी के सिवा कुछ बोला नहीं जाता था | हाँ ससुराल में दो ननदे और मम्मी पापा थे | पर माहौल बिल्कुल ही अलग था | मायके में जो दिल में आता था वही किया ..खाना बनाना आता था ,पर उतना ही जितना जरुरी था ..बहुत आजादी वहां भी नही थी .पर यह समझ में आ गया था कि अब यहाँ कोई शैतानी नही की जा सकती है ...क्यूंकि यहाँ का माहौल बहुत डरा हुआ सा और सहमा हुआ सा लगा ...शायद यही फर्क होता है ससुराल और मायके का :) नवम्बर में शादी हुई  थी .हुक्म हुआ सुबह जल्दी उठ जाना .रस्मे है कोई .और  अगले दिन सासू माँ बोली कि  ""जा धा घिन''...."जी "मम्मी  जी कह कर मैं दूसरे कमरे में चली गयी ....उन्होंने फ़िर मुझे यूँ ही खडे देखा तो फ़िर बोली रंजना "धा घिन ....क्यों  खलोती हैं [ क्यों खड़ी हुई है इस तरह ][कुछ इसी तरह का वाक्य ] मुझे आज तक नही आई यह भाषा :) हैरान परेशान क्या करूँ  ....मेरा मासूम दिल समझ रहा था कि वह कुछ "था घिन घिन" कह रहीं हैं ....शायद वह किसी तरह के डांस की कोई रस्म से तो जुडा नही है ....बाबा रे !! यह शादी की रस्मे क्या मुसीबत है यह .सुबह सुबह डांस ..वो भी सबके सामने ..क्या करूँ अब ...कैसे करूँ ...उसी वक़्त .....ईश्वर ने साथ दिया राजीव [मेरे पति देव ] सामने दिखे ....अब  नई नवेली बहू अब पति को कैसे बुलाए .....आँखों में पानी ....कि करूँ तो क्या करूँ ....तभी यह अन्दर आए तो मेरी जान में जान आई ..पूछा कि  क्या करना है इस "धा घिन का ".....पहले देखते रहे और फ़िर जोर से हंस के बोले कि"इस का कुछ नही करना जा कर नहा लो" ...तौबा !! तो इसका यह मतलब था ...तो तुम क्या समझी ...पूछने पर मैंने बताया तो जनाब ने हँसते हुए यह खबर पूरे घर में फैला दी ....नानी सास ने भी मौका देख कर "मोटी "कहने वाली बात और उस वक़्त के बिंदास हुलिए की  कहानी सुना दी :).... और शर्म से जो गाल लाल हुए वो होली के रंग को भी मात कर दे :)भाषा तो आज भी नहीं बोली जाती मुझसे यह ..पर अब समझ आ जाती है ...कि क्या कहा जा रहा है ...इसी तरह नमकदानी को "नुनकी चुक लायी बारी विचो " बहुत समय बाद समझ आया था कि नमकदानी ले आ अलमारी से ...इस तरह याद करूँ तो भाषा से जुड़े तो कई किस्से याद आ जाते हैं और भी बाते नमक सी नमकीन और हलुए सी मीठी भी ...पर मीठी बाते ही याद रहे तो अच्छा है वही बाते ज़िन्दगी मैं आज भी मुस्कान भर जाती है
होली के रंग बिखरे और सबको होली मुबारक :)और यह रंगीन मुस्कान भरी यादें यूँ ही रंग बिखरती रहें

3 comments:

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5-3-2015 को चर्चा मंच पर हम कहाँ जा रहे हैं { चर्चा - 1908 } पर दिया जाएगा
धन्यवाद

वाणी गीत said...

शानदार है धा धा धिन :)

प्रतिभा सक्सेना said...

वाह,क्या बात है !