आसमान
पर
जब भी देखा "चाँद को" तन्हा ही पाया
था सितारो के बीच फिर भी
किसी को तलाशता वह नज़र आया
पूछा जब कभी भी उसने हाल मेरा
मेरी आँखो में थे आँसू पर लबो से "सब ठीक है निकल आया"
दिखाया नही जाता
हर बार अपना दर्द सबके सामने
इसलिए एक हँसी का नक़ाब
हमने अपने चेहरे पर लगाया
प्यार का मतलब
वो ना समझे ना समझेंगे कभी
हमने अपनी बात को
कई बार इनको इशारो में समझाया
कर लेते हैं वो
गैरों से शिकवा अक्सर हमारा
हमने कभी
उनकी वफ़ा को नही आज़माया!!!!!
डायरी के पुराने पन्नो से एक अंश।
जब भी देखा "चाँद को" तन्हा ही पाया
था सितारो के बीच फिर भी
किसी को तलाशता वह नज़र आया
पूछा जब कभी भी उसने हाल मेरा
मेरी आँखो में थे आँसू पर लबो से "सब ठीक है निकल आया"
दिखाया नही जाता
हर बार अपना दर्द सबके सामने
इसलिए एक हँसी का नक़ाब
हमने अपने चेहरे पर लगाया
प्यार का मतलब
वो ना समझे ना समझेंगे कभी
हमने अपनी बात को
कई बार इनको इशारो में समझाया
कर लेते हैं वो
गैरों से शिकवा अक्सर हमारा
हमने कभी
उनकी वफ़ा को नही आज़माया!!!!!
डायरी के पुराने पन्नो से एक अंश।
6 comments:
अति सुन्दर। हमें भी लगता है सब ठीक ही होगा।
वाह वाह बहुत खूब ...भावपूर्ण रचना
सुंदर भावपूर्ण रचना.
पर चान है सब समझ लेगा ... प्रेम का सिलसिला उसी ने शुरू किया है जमाने में ... भावपूर्ण लिखा है ...
बातचीत चांद के साथ...
गैरों से शिकवा अक्सर हमारा
हमने कभी
उनकी वफ़ा को नही आज़माया!!!!!
सुन्दर भाव ,सुन्दर बातें ,
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