Friday, February 13, 2015

मोहब्बत

आज कुछ यूँ मेरी ज़िंदगी को ख़ुशनुमा कर दे
मैं बर्फ़ सी नदी हूँ इसे बहता पानी कर दे

मेरी आँखो ने देखे है कुछ हसीन से ख्वाब
आ मेरे ख्वाबो को परियों की कहानी कर दे

हर मोहब्बत का अंजाम हो "ताज़महल" यह ज़रूरी तो नही
तू अपने दिल के हर कोने को मेरा आशियाना कर दे..

                                               भेजे हैं तूने जो महकते हुए से ख़त
                                              उन्ही लफ़्ज़ो को अब मेरी ज़िंदगी की कहानी कर दे
फिर से दे-दे वही कुछ अपनी ज़िंदगी के फ़ुरसत के पल
मेरे दिल में फिर से वही प्रीत सुहानी भर दे

बीत ना जाए यह ज़िंदगी की शाम भी कही ख़ामोशी से
मेरे गीतो में अपनी सांसो की रवानी भर दे

2 comments:

Priya Gupta said...

नमश्कार रंजना जी! आपकी कविताएँ काफ़ी सुंदर है| आप सचमुच तारीफ के पात्र है| आप बस ऐसे ही लिखते रहिए और हम पढ़ते रहेगे|
धन्यवाद!

दिगम्बर नासवा said...

साँसों को रवानी तो प्रेम की यादें ही दे जाती हैं ... प्रेम तो पूरी जिन्दगी ही दे देता है ...