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Friday, February 13, 2015

मोहब्बत

आज कुछ यूँ मेरी ज़िंदगी को ख़ुशनुमा कर दे
मैं बर्फ़ सी नदी हूँ इसे बहता पानी कर दे

मेरी आँखो ने देखे है कुछ हसीन से ख्वाब
आ मेरे ख्वाबो को परियों की कहानी कर दे

हर मोहब्बत का अंजाम हो "ताज़महल" यह ज़रूरी तो नही
तू अपने दिल के हर कोने को मेरा आशियाना कर दे..

                                               भेजे हैं तूने जो महकते हुए से ख़त
                                              उन्ही लफ़्ज़ो को अब मेरी ज़िंदगी की कहानी कर दे
फिर से दे-दे वही कुछ अपनी ज़िंदगी के फ़ुरसत के पल
मेरे दिल में फिर से वही प्रीत सुहानी भर दे

बीत ना जाए यह ज़िंदगी की शाम भी कही ख़ामोशी से
मेरे गीतो में अपनी सांसो की रवानी भर दे

Sunday, February 08, 2015

मैं हूँ ,वह है .. और शीशे की सुराही में -- नज़रों की शराब है ...

बरसों की राहें चीरकर
तेरा स्वर आया है
सस्सी के पैरों को जैसे
किसी ने मरहम लगाया है ...

मेरे मजहब ! मेरे ईमान !

तुम्हारे  चेहरे  का ध्यान कर के मजहब जैसा सदियों पुराना शब्द भी ताजा लगता है |और तुम्हारे ख़त ? लगता है जहाँ गीता .कुरान .ग्रन्थ और बाइबिल आ कर रुक जाते हैं ,उसके आगे तुम्हारे ख़त चलते हैं .....अवतार दो तीन दिन मेरे पास गई है ,कल शाम गई |मेरी मेज पर खलील जिब्रान का स्केच देख कर पूछने लगी ,''यह इंदरजीत का स्केच है न ?"" मुझे अच्छा लगा उसने तुम्हारा धोखा भी खाया  तो खलील जिब्रान के चेहरे से |नक्शों में फर्क हो सकता है .पर असल बात तो विचारों की होती है |सचमुच तुम्हारे इस नए ख़त को पढ़ कर तुम्हारा और खलील जिब्रान का चेहरा मेरे सामने एक हो गया है |

एक पाकीजगी जो तुममें देखी है वह किताबों में पढ़ी तो जरुर है ,पर किसी परिचित चेहरे पर नही देखी है |तुम्हारे जाने के बाद एक कविता लिखी है ---रचनामत्क क्रिया .और एक आर्टिकल ---एक कहानी भी !पर यह सब मेरी छोटी छोटी कमाई है ,मेरी जिंदगी की असली कमाई तो मेरा "इमरोज़" है |