Thursday, January 22, 2015

आवारा ख्याल ४

 भूलभुलैया ............
भटकते हुए रास्ते
और तलाश उस मंजिल की
जो मिल जाये तो
मोक्ष ..
और न मिले तो
कब्र गाह ....


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भूलभुलैया 
लखनऊ के
एक किले के अन्दर
बनी दीवारों के बीच बनी
उन रास्तों सी हैं
जो खुद में घुमाते हुए
उन बातों का एहसास
करवा देती हैं
कि ज़िन्दगी
की पूरी किताब
बस इन्ही रास्तों सी है
जहाँ कुछ जगमगती है
रोशनी तो
रास्ता मिल जाता है
वरना मिले हुए अंधेरों में
हर रास्ता सिर्फ तन्हा
और भटकता हुआ
ही अंत पाता है ....
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 भूलभुलैया
की मोटी दीवारों के बीच का आवारा ख्याल ..... 


धीमी धीमी सी
आवाजों की सरगोशी
और महज कुछ पल
दूर होने का एहसास
बहुत रूमानी कर देता है
दिल को यह ख्याल ही
कि काश ऐसा कुछ
तेरे मेरे दिल की धडकनों
के बीच में भी
जुडा हुआ होता ?

अवध की इन इमारतों की ख़ास बात यही है कि इन इमारतों में जो पोरेसिटी होती है उसी के चलते दीवारों के कान होते है वाला मुहावरा भी मशहूर हुआ और भूल भुलैया में दीवार के एक छोर पर कोई कागज फाड़े तो तो दूसरे छोर पर आवाज सुनी जा सकती है इसकी दीवारों के बीच छुपे हुए लम्‍बे गलियारे हैं, जो लगभग 20 फीट मोटी हैं। यह घनी, गहरी रचना भूलभुलैया कहलाती है और इसमें केवल तभी जाना चाहिए जब आपका दिल मज़बूत हो। इसमें 1000 से अधिक छोटे छोटे रास्‍तों का जाल है जिनमें से कुछ के सिरे बंद हैं और कुछ प्रपाती बूंदों में समाप्‍त होते हैं, जबकि कुछ अन्‍य प्रवेश या बाहर निकलने के बिन्‍दुओं पर समाप्‍त होते हैं। , यदि आप इस भूलभुलैया में खोए बिना वापस आना चाहते हैं तो गाइड साथ रखे ..हम खो गए थे ...गाइड ने हमें ढूंढा:)।जानकारी गूगल और गाइड के माध्यम से ..फोटोज पूर्वा भाटिया .और आवारा ख्याल मेरे बावरे मन की उड़ान के माध्यम से :)
आवारा ख्याल ३

5 comments:

Rajendra kumar said...

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (23.01.2015) को "हम सब एक हैं" (चर्चा अंक-1867)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

vijay kumar sappatti said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति
मेरे ब्लोग्स पर आपका स्वागत है .
धन्यवाद.
विजय

कविता रावत said...

रोचक प्रस्तुति के साथ जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

कविता रावत said...

रोचक प्रस्तुति के साथ जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

रश्मि शर्मा said...

बढ़ि‍या प्रस्‍तुति‍ .