Monday, August 18, 2014

राधा -मीरा

राधा -मीरा



जिस को देखूं साथ तुम्हारे
मुझ को राधा दिखती हैदूर कहीं इक मीरा बैठीगीत तुम्हारे लिखती है
तुम को सोचा करती हैआँखों में  पानी भरती है उन्ही अश्रु की स्याही से लिख के खुद ही पढ़ती है

यूँ ही पूजा करते करतेकितने ही युग बीत गये बंद पलकों में ही न जाने कितने जीवन रीत गये खोलो नयन अब अपने कान्हा पलकों में तुम को भरना हैपूजा जिस भाव  से तुम्हे उसी से प्रेम अब तुमसे करना है
आडा तिरछा भाग्य है युगों सेतुम इसको सीधा साधा कर दो
अब तो सुधि लो  मेरे कान्हामीरा को राधा कर दोहाथ थाम लो अब तो कृष्णा इस भव सागर से पार तुम कर दो ...
 

5 comments:

Jyoti khare said...

बहुत सुन्दर और भावुक अभिव्यक्ति

जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाऐं ----
सादर --

कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------

Rajeev bhutani said...

बहुत सुंदर जी

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत प्यारा गीत है रंजू...

सदा said...

वाह ... अनुपम भावों का संगम

Asha Joglekar said...

जन्माष्टमी पर सुंदर प्रस्तुति।