यह सर्द रातो में
सिमटी हुई सी कोई नाज़ुकी
दिल में जैसे कोई पिघल के शमा जले
कोई शोला सा भड़के जैसे बदन में
आज फिर से
कोई इश्क़ का जाम नज़रो में ढले
कर प्यार बढ़ते चाँद की रोशनी में
मुझे चुपके से
तेरी बाहों में आज सहम् का घूँघट फिसले
महक रहा है आज यह ठंडी हवाओ का धुआँ
मिले आज कुछ ऐसे की वक़्त की रफ़्तार कुछ रुक रुक के चले!!
सिमटी हुई सी कोई नाज़ुकी
दिल में जैसे कोई पिघल के शमा जले
कोई शोला सा भड़के जैसे बदन में
आज फिर से
कोई इश्क़ का जाम नज़रो में ढले
कर प्यार बढ़ते चाँद की रोशनी में
मुझे चुपके से
तेरी बाहों में आज सहम् का घूँघट फिसले
महक रहा है आज यह ठंडी हवाओ का धुआँ
मिले आज कुछ ऐसे की वक़्त की रफ़्तार कुछ रुक रुक के चले!!
6 comments:
कर प्यार बढ़ते चाँद की रोशनी में
मुझे चुपके से
तेरी बाहों में आज सहम् का घूँघट फिसले
महक रहा है आज यह ठंडी हवाओ का धुआँ
मिले आज कुछ ऐसे की वक़्त की रफ़्तार कुछ रुक रुक के चले!!
बहुत ही सुंदर । सहम की जगह संयम हो तो.।
ranjana ji
aafareen....
meri nayi post par aapka swagat hai!
बहुत उम्दा ...
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (26.09.2014) को "नवरात महिमा" (चर्चा अंक-1748)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद। नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें।
महक रहा है आज यह ठंडी हवाओ का धुआँ
मिले आज कुछ ऐसे की वक़्त की रफ़्तार कुछ रुक रुक के चले!!
...वाह...बहुत ख़ूबसूरत अहसास और उनकी सुन्दर प्रस्तुति...
aap bade hi umde kavi hai..
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