राधा -मीरा
जिस को देखूं साथ तुम्हारेमुझ को राधा दिखती हैदूर कहीं इक मीरा बैठीगीत तुम्हारे लिखती है
तुम को सोचा करती हैआँखों में पानी भरती है उन्ही अश्रु की स्याही से लिख के खुद ही पढ़ती है
आडा तिरछा भाग्य है युगों सेतुम इसको सीधा साधा कर दोअब तो सुधि लो मेरे कान्हामीरा को राधा कर दोहाथ थाम लो अब तो कृष्णा इस भव सागर से पार तुम कर दो ...
5 comments:
बहुत सुन्दर और भावुक अभिव्यक्ति
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाऐं ----
सादर --
कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------
बहुत सुंदर जी
बहुत प्यारा गीत है रंजू...
वाह ... अनुपम भावों का संगम
जन्माष्टमी पर सुंदर प्रस्तुति।
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