चार पहर की बात ........
सुबह ....
रोज़ होती सुबह
आँख खोलते ही
सामने आ कर मुस्कराती है
पकड़ा देती है
चाय की प्याली हाथ में
और नए अखबार की
बासी खबरों में गुम हो जाती है !!
**********
दोपहर
भरी उमंगों सी
ऊपर से जवान
अन्दर से बच्ची सी लगती है
सर्दी में भाये इसकी गर्माहट
गर्मी में यह आग उगलती
फेक्ट्री सी लगती है !!
*************
शाम
ढला सूरज
गोधुली का साया
दुनिया हुई उधर से इधर
आसमान को जैसे
किसी ने घूंट कोई
नशे का पिलाया !!
************
रात
कभी काली
कभी मतवाली
कभी तन्हाई बेहिसाब
चाँद तारों की गिरह खोले
करके दिल की हर बात !!
@ रंजू भाटिया
सुबह ....
रोज़ होती सुबह
आँख खोलते ही
सामने आ कर मुस्कराती है
पकड़ा देती है
चाय की प्याली हाथ में
और नए अखबार की
बासी खबरों में गुम हो जाती है !!
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दोपहर
भरी उमंगों सी
ऊपर से जवान
अन्दर से बच्ची सी लगती है
सर्दी में भाये इसकी गर्माहट
गर्मी में यह आग उगलती
फेक्ट्री सी लगती है !!
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शाम
ढला सूरज
गोधुली का साया
दुनिया हुई उधर से इधर
आसमान को जैसे
किसी ने घूंट कोई
नशे का पिलाया !!
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रात
कभी काली
कभी मतवाली
कभी तन्हाई बेहिसाब
चाँद तारों की गिरह खोले
करके दिल की हर बात !!
8 comments:
चारों पहर यूँ ही गुजार जाते हैं ... जिंदगी तमाम हो जाती है ऐसे ही ...
समय को बाँचती अर्थभरी क्षणिकायें।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन युद्ध की शुरुआत - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
चारो पहर कि खूबसूरती...
बहुत सुन्दर......
:-)
वाह चारों पहर ही समेट लिए.
सुंदर शब्दचित्र
Waah bahut khoob...pehle ki trah...badnaam_shayar
बहुत सुन्दर
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