क्या फिर से मौसम बहारों का आयेगा,
जिसकी जुस्तजू है वो फिर कभी ना आयेगा।
तन्हा तन्हा सी है क्यों ये जिंदगी की शाम
क्या कोई फिर से जीवन में बसंत लायेगा।
अब कोई ना करे मुझ पर निगाहें करम,
अरमानों का दम खुद ही घुट जायेगा।
मेरे मिटने का उनको जरा भी गम ना होगा,
क्या कोई फिर से खुशियों की सौगात लायेगा।
जिसकी जुस्तजू है वो फिर कभी ना आयेगा।
तन्हा तन्हा सी है क्यों ये जिंदगी की शाम
क्या कोई फिर से जीवन में बसंत लायेगा।
अब कोई ना करे मुझ पर निगाहें करम,
अरमानों का दम खुद ही घुट जायेगा।
मेरे मिटने का उनको जरा भी गम ना होगा,
क्या कोई फिर से खुशियों की सौगात लायेगा।
10 comments:
अब तो बहारो का आना जाना देखो
जुस्तजू छोड़ के नाया ज़माना देखो
जो बीत गया सो बीत गया
अब नए फूलों का खिलखिलाना देखो !
--- ईमानदार अभिव्यकि, अति सुंदर काव्य शिल्प,प्रयोगवादी युग की गज़ल और कविता की उत्तम मिला..बधाई ! लेकिन लिखने वाला या वाली बेचती नहीं;आप अपना ध्यान लिखने पे ही रखे--छपास,और बाज़ार के चक्कर में आपकी कलम तराजू बन के रह जायेगी--- इसलिये सिर्फ लिखो और पढ़ो ...उपदेश के लिए सारी !
अब तो बहारो का आना जाना देखो
जुस्तजू छोड़ के नाया ज़माना देखो
जो बीत गया सो बीत गया
अब नए फूलों का खिलखिलाना देखो !
--- ईमानदार अभिव्यकि, अति सुंदर काव्य शिल्प,प्रयोगवादी युग की गज़ल और कविता की उत्तम मिला..बधाई ! लेकिन लिखने वाला या वाली बेचती नहीं;आप अपना ध्यान लिखने पे ही रखे--छपास,और बाज़ार के चक्कर में आपकी कलम तराजू बन के रह जायेगी--- इसलिये सिर्फ लिखो और पढ़ो ...उपदेश के लिए सारी !
बहारें फिर भी आयेंगी......
उम्मीद का दाम थामे रखें हम बस....
सुन्दर ग़ज़ल..
अनु
वाह, बहुत सुन्दर
अच्छी कविता और सुंदर भाव
बहुत मनभावन रचना
बसंत पंचमी की अनंत हार्दिक शुभकानाएं ---
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई -----
आग्रह है--
वाह !! बसंत--------
मन खुश हो तो खुशियाँ अपने आप चली आती हैं ... लाजवाब अभिव्यक्ति ...
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