Saturday, June 08, 2013

वर्जित यादें

कुछ लफ्ज़ ज़िन्दगी के
सिर्फ खुद से ही पढ़े जाते हैं
वही लफ्ज़ जो दिल की गहराइयों में
दबे गए कभी सोच कर
कभी भूल से
जैसे ...........
कुछ भूली हुई सभ्यताएं
जो  नजर आती है
सिर्फ जमीनों के खोदने से
ठीक वैसे ही
"कुछ यादें  "जो दबी हैं
ज़िन्दगी के उन पन्नो में
जो वर्जित है सच जानने से पहले
दुनिया की नजरों में आना
और वो पन्ने पढ़े हैं सिर्फ उन्ही ने
जो जानते हैं  कि
" कहाँ क्या दफ़न हुआ था ?"

18 comments:

Tamasha-E-Zindagi said...

बढ़िया |

vandana gupta said...

जो जानते हैं कि
" कहाँ क्या दफ़न हुआ था ?"

बिल्कुल सही कहा

अरुन अनन्त said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-06-2013) के चर्चा मंच पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

प्रवीण पाण्डेय said...

फिर भी किसी न किसी बीज रूप में पड़ी रहती हैं स्मृतियाँ।

Asha Joglekar said...

कुछ जिंदगी के सफे बस खुद से पढे जाते हैं ।
क्या बात कही है ।

Arvind Mishra said...

कुछ तहखाने इसलिए ही कभी खोले नहीं जाते :-)

P.N. Subramanian said...

बेहद सुन्दर. आत्म चिंतन की प्रेरणा लिए.

M VERMA said...

दफन सभ्यताओं को फिर पारंगत ही पढ़ पाते हैं
बहुत सुंदर रचना

sushila said...

सुंदर भावपूर्ण रचना।

अनूप शुक्ल said...

ये राज भी पता चला। अच्छा है।

Anju (Anu) Chaudhary said...

बढिया .....कुछ यादें दफ़न करनी भी जरुरी हो जाती है

डा श्याम गुप्त said...

स्मृतियाँ तो मन की लहरें हैं
फिर फिर दस्तक दे जाती हैं |

Khudgarz Nadeem said...

यादें तो यादें हैं, आयेगीं किसी रोज लोट कर जिंदगी की किसी मोड पर फिर से जेहन में देकर दस्तक..

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति हैं आपकी..धन्यवाद

http://khudgarznadeem.blogspot.in/

Khudgarz Nadeem said...

यादें तो यादें हैं,,आएगी देकर दस्तक कहीं किसी रोज़ जिंदगी की किसी मोड पर..

बहुत खूबसूरत कविता है आपकी..धन्यवाद

http://khudgarznadeem.blogspot.in/

Barun Sakhajee Shrivastav said...

bahut badhiya

दिगम्बर नासवा said...

सच कहा है ... ऐसे कुछ दर्द सिर्फ अकेले के साथी होते हैं ... जो बस अपने करीब होते हैं ...

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " said...

हार्दिक बधाई ...बहुत सुन्दर भाव ....

Unknown said...

काफी अछा