ज़िंदगी रोज़ गुजरती है
सवालो की तरह
हर बात का दे हम जवाब
यह ज़रूरी तो नही ....
कर जाते हैं चाहने वाले भी कभी कभी बेवफ़ाई हम भी कर जाए
तुझसे कुछ ऐसा यह ज़रूरी तो नही
किस तरह मुकमल हो रहा है ज़िंदगी का सफ़र
और कितना पाया है हमने दर्द तुम्हे बता दे यह ज़रूरी तो नही
दिखाते हैं अपने चेहरे पर हँसी हर वक़्त हम तुम्हे
पर इसके पीछे छिपी उदासी भी दिखा दे
यह ज़रूरी तो नही
इस तरह तो हम कभी कमज़ोर ना थे ज़िंदगी में
पर तेरे कंधो पर
अपना सिर रख के रो दे यह ज़रूरी तो नही????
10 comments:
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन काँच की बरनी और दो कप चाय - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर अभिव्यक्ति.....
बहुत सुंदर प्रस्तुति रंजना जी ! कभी-कभी ज़िंदगी इसी तरह सवाल बन कर सामने आ खड़ी होती है और हम परेशान हो जाते हैं ! आप ठीक ही कहती हैं हर सवाल का हमें जवाब मिल जाये ज़रूरी तो नहीं ! बहुत खूब !
तथ्यों का मौन संप्रेषण
ज़िंदगी में सब कुछ ज़रूरी भी है और नहीं भी...भावपूर्ण रचना।
bahut khoob...
jeete ja rahe hain bas...
pata nahi kaise bhi, kat rahi jindagi !!
ये बिलकुल जरूरी नहीं ... आपने जगजीत जी की गाई गज़ल की याद ताज़ा कर दि ...
हर शबे गम की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं ...
awsmmmmmm
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