Wednesday, June 12, 2013

जो भी बस यही एक पल है


आत्महत्या इस विषय पर लिखना ही कितना अजीब सा एहसास देता है क्यों कैसे कर लेते हैं आखिर कुछ लोग अपनी ज़िन्दगी को खत्म ..दो तीन दिन  से हर चेनल जिया खान के बहाने फिर से आत्महत्या पर बात कर रहा है ..
आत्महत्या करना भी अपने आप में कितनी हिम्मत से भरा फैसला है.... आखिर इस ज़िन्दगी से किसे लगाव नहीं होता, सभी इसे दिल से जीना चाहते हैं, पर आखिर ऐसा क्या  हो जाता है ?बहुत मुश्किल काम है खुद को खत्म करना ..क्यों यह विचार आते हैं शायद इस लिए की जैसी ज़िन्दगी हमने चाही थी वैसी नहीं मिली इच्छा पूरी नहीं हुई तो खुद को खत्म कर दिया जाए या  जिंदगी की असफलताएं इस और धकेल देती है ? आत्महत्या का निर्णय अक्सर एक पल में नहीं लिया जाता है। कई दिन व कई घंटे पहले इसके कुछ संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं, जैसे कि व्यक्ति का डिप्रेशन में होकर मिलनसार न होना, लापरवाहीपूर्वक कार्य, हावभाव, स्वभाव व व्यवहार में परिवर्तन दिखाई देना,  बात-बात में झल्ला जाना, जरूरत से ज्यादा बोलना या बिलकुल भी न बोलना, एकाकीपन, एकांत स्‍थान में बार-बार जाना, समय-बेसमय खाना या न खाना, जरूरत से कम या ज्यादा खाना आदि ऐसे संकेत हैं, जो व्यक्ति के अति-तनाव में होने का संकेत देते हैं।आत्महत्या समस्या का स्थायी समाधान नहीं होता है। 99.99 प्रतिशत मामलों की बारीकी से जांच की जाए तो पता चलता है कि उसका समाधान बहुत ही सरल था किंतु भावावेश में आकर लोग अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं।समाज आगे आगे बढ़ता जा रहा है और खुद के लिए जैसे खाई भी खोदता जा रहा है ..कोई इंसान जीवन में क्यों इतना महत्वपूर्ण हो जाता है कि अपना आपा भी नहीं सूझता फिर ..एक बार कहीं पढ़ा था कि ज़िन्दगी में किसी को इतना महत्वपूर्ण मन बनाओ कि वह आपकी सांस लेने कि वजह बन जाए |और आज कल तो सुबह जब भी अखबार उठाओ तो  एक ख़बर जैसे अखबार की जरुरत  बन गई है कि फलानी जगह पर इस बन्दे या बंदी ने आत्महत्या कर ली ..क्यों है  आखिर जिंदगी में इतना तनाव या अब जान देना बहुत सरल हो गया है ..पेपर में अच्छे नंबर नही आए तो दे दी जान ...प्रेमिका नही मिली तो दे दी जान ......कल एक किताब में एक कहानी पढी इसी विषय पर लगा आप सब के साथ इसको  शेयर करूँ ..एक नाम कोई भी ले लेते हैं ...राम या श्याम क्यूंकि समस्या नाम देख कर नही आती ..ऑर होंसला भी नाम देख कर अपनी हिम्मत नही खोता है .खैर ...राम की पत्नी की अचानक मृत्यु हो गई  ऑर पीछे छोड़ गई वह बिखरी हुई ज़िंदगी ऑर दो नन्ही मासूम बच्चियां ..सँभालने वाला कोई था नही नौकरी पर जान जरुरी .ऑर पीछे से कौन बच्चियों को संभाले ..वेतन इतना कम की आया नही रखी जा सकती . ऑर आया रख भी ली कौन सी विश्वास वाली होगी ..रिश्तेदार में दूर दूर तक कोई ऐसा नही था जो यह सब संभाल पाता..क्या करू .इसी सोच में एक दिन सोचा की इस तरह तनाव में नही जीया जायेगा ज़िंदगी को ही छुट्टी देते हैं ..बाज़ार से ले आया चूहा मार दवा ..ऑर साथ में सल्फास की गोलियां भी ...अपने साथ साथ उस मासूम की ज़िंदगी का भी अंत करके की सोची ..परन्तु मरने से पहले सोचा की आज का दिन चलो भरपूर जीया जाए  सो अच्छे से ख़ुद भी नहा धो कर तैयार हुए ऑर बच्चियों को भी किया ...सोचा की पहले एक अच्छी सी पिक्चर देखेंगे फ्री अच्छे से होटल में खाना खा कर साथ में इन गोलियों के साथ ज़िंदगी का अंत भी कर देंगे ...

सड़क क्रॉस कर ही रहे थे एक भिखारी  देखा जो कोढी था हाथ पैर गलते हुए फ़िर भी भीख मांग रहा था .इसकी ज़िंदगी कितनी नरक वाली है फ़िर भी जीए जा रहा है ऑर जीने की किस उम्मीद पर यह भीख मांग रहा है .? कौन सा इसका सपना है जो इसको जीने  पर मजबूर कर रहा है ? क्या है इसके पास आखिर ? ऑर मूर्ख इंसान क्या नही है तेरे पास ..अच्छा स्वस्थ ,दो सुंदर बच्चे घर ..कमाई ...आगे बढे तो आसमान को छु ले लेकिन सिर्फ़ इस लिए घबरा गया कि एक साथ तीन भूमिका निभा  नही पा रहा है वह पिता .,अध्यापक ,ऑर माँ की भूमिका .निभाने से वह इतना तंग आ गया है कि आज वह अपने साथ इन दो मासूम जानों का भी अंत करने लगा है ..यही सोचते सोचते वह सिनेमाहाल  में आ गया  पिक्चर देखी  उसने वहाँ वक्त ..ऑर जैसे जैसे वह पिक्चर देखता गया उसके अन्दर का कायर इंसान मरता गया ..ऑर जब वह सिनेमा देख के बाहर  आया तो जिजीविषा से भरपूर एक साहसी मानव था जो अब ज़िंदगी के हर हालत का सामना कर सकता था ..उसने सोचा कि क्या यह पिक्चर मुझे कोई संदेश देने के लिए ख़ुद तक खींच लायी थी ..और वह कोढी क्या मेरा जीवन बचाने के लिए कोई संकेत ऑर संदेश देने आया था ..उसने वह गोलियाँ नाली में बहा दी .और जीवन के हर उतार चढाव से लड़ने को तैयार हो गया ..जिंदगी जीने का नाम है मुश्किल न आए तो वह ज़िंदगी आखिर वह ज़िंदगी ही क्या है ..जीए भरपूर हर लम्हा जीए ..और तनाव को ख़ुद पर इस कदर हावी न होने दे कि वह आपकी सब जीने की उर्जा बहा के ले जाए ...क्यूंकि सही कहा है इस गीत में कि "आगे भी जाने न तू पीछे भी न जाने तू ,जो भी बस यही एक पल है ..जीवन अनमोल है . इसको यूं न खत्म करे .".

10 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सार्थक लेख
और उतनी ही अच्छी कहानी...
आत्महत्या करने वाला वाकई कायर है....उसको समझाइश की ज़रुरत होती है..अवसाद ग्रस्त व्यक्ति/बच्चों को अकेला न छोड़ कर उनकी काउनसल्लिंग की जाय तो बात सम्हाली जा सकती है...
सस्नेह
अनु

Madan Mohan Saxena said...

हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार भावसंयोजन .आपको बधाई

प्रवीण पाण्डेय said...

तार्किक अवलोकन, लोगों में जिजीविषा बनी रहे।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

jindagi jeene ke liye milee hai :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

विचारणीय लेख ...

Anonymous said...

Hello mam your post are so nice no words for comment. Keep writing like this.

translator ahmedabad
interpreter ahmedabad

Arvind Mishra said...

प्रेरणापरक

दिगम्बर नासवा said...

प्रेरणा देता हुआ लेख .. सच है की इस अनमोल जीवन का भरपूर आनद लेना चाहिए .. यूं ही खत्म करना तो आसां है इसको जीना ही मुश्किल है .. जी के दिखाना चाहिए ...

Anonymous said...

विचारात्‍मक प्रस्‍तुति

Anju (Anu) Chaudhary said...

आत्म हत्या पर सार्थक रचना


काश आत्महत्या करने वाला वो १ पल कुछ सो पाने की स्थिति में खुद को रख पता ...काश ?????