ये चाँद सा रोशन चेहरा, जुल्फों का रंग सुनहरा
ये झील सी नीली आँखें, कोई राज़ है इन में गहरा
तारीफ़ करूँ क्या उसकी, जिस ने तुम्हे बनाया ...श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरते ही यह गाना बरबस दिल गाने लगता है ...( यह बात और है जब हम सब ने यह गाना हाउस बोट जाने के लिए शिकारे पर बैठ कर गाना शुरू किया तो शिकारे वाले ने कहा "अबी नहीं गाना ..जब आप शिकारे की सैर पर जायेंगे न तब गाये ..बहुत अच्छा लगेगा ) सुन कर मेरे होंठो पर मुस्कान आ गयी ..लगा हर आने वाला टूरिस्ट यह गाना जरुर गाता होगा तभी सहजता से इस शिकारे को चलाने वाले ने कह दिया :) कश्मीर के लोग वाकई जितने सुन्दर है उतने ही दिल के भी सुन्दर मासूम
एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही सुन्दर गुलाबी चेहरे ..गहरे हलके रंग के लम्बे गर्म कुरता जिस को हम सब भी फेरन के नाम से जानते हैं ...उस में नजर आये ..बुरका नहीं था अधिक जैसा लगा था पर हर लड़की छोटी या बड़ी सर से पांव तक ढकी थी ...सर से पांव तक ढकी यह सुन्दरता जब पूर्ण रूप से गहनों में सिमट जाती होगी तो वाकई कयामत नजर आती होगी ...और जब आप वहां पहुँचते हैं तो यह उत्सुकता बहुत ही स्वभाविक रूप से जानने को दिल करता है कि वहां का पूर्ण पहनावा और रहन सहन के बारे में जाना जाए ..इसी सिलसले में आज आपसे
कश्मीरी गहनों के बारे में बात करते हैं |जम्मू कश्मीर में बहुत समय तक
रहने के कारण कश्मीरी लड़कियों के पहने हुए गहनों से बहुत प्रभावित रही
हूँ मैं | हर प्रांत हर जगह की अपनी एक ख़ास पहचान होती है | और कोई न कोई
बात उसके पहनावे ,गहनों और रीति रिवाजो से जुड़ी होती है |उनके बारे में
जानना बहुत ही दिलचस्प लगता है | कानों से लटकती लाल डोरी ..गुलाबी चेहरों
का नूर और उस पर डाला हुआ फेरन जैसे एक जादू सा करता है | यही उत्सुकता रही और इस लेख में वहां पहने जाने वाले गहनों कपड़ो के बारे में जानकारी मिली वह आपसे इस यात्रा संस्मरण में शेयर करने का दिल हो आया ..:)
गहने बहुत प्राचीन समय से मनुष्य को आकर्षित करते रहे हैं | आदि काल से जब
उसने खाना पहना ,घर बनाना सीखा तब ही साथ गहने भी बनाए पत्थर के और ख़ुद
को उनसे सजाया | वक्त के साथ साथ गहनों का सफर भी चलता रहा और यह अपने नए
प्रकार के घातु में ढल कर स्त्री पुरूष दोनों के व्यक्तित्व की शोभा बढाते
रहे | इनको पहनना सिर्फ़ श्रृंगार की दृष्टि से ही नही था बलिक शरीर के उन
महत्वपूर्ण जगह पर दबाब देने से भी था जो मनुष्य को स्वस्थ रखते हैं |
यह बात विज्ञान ने भी सिद्ध की है |
.कश्मीर में हर लड़की की शादी से पहले लौगाक्ष गृह सूत्र " की रस्म अदा की जाती है जिस में लड़की के सामने सारे रहस्य खोले जाते हैं | लौगाक्ष एक ऋषि हुआ था जिस ने तन ,मन और आत्मा की चेतना के कुछ सूत्र लिखे थे ,वही सूत्र पढ़े जाते हैं और उनकी व्याख्या की जाती है |
गुणस..मटमैले रंग के एक जहरीले पहाडी सांप को गुणस कहते हैं और जो सर्प मुखी सोने का कंगन बनाया जाता है उसको भी गुणस कहते हैं | इस आभूषण को जब मंत्रित कर के लड़की की दोनों कलाई यों में पहनाया जाता है तो मान लिया जाता है की इस की शक्ति उसकी रगों में उतर जायेगी और वह अपनी रक्षा कर सकेगी |
कन वाजि- कर्ण फूल वाजि गोल कुंडल को कहते हैं और कान का कुंडल यह फूल के आकार में बना सोने का आभूषण है जिसको पहनाने से यह माना जाता है की दोनों कानो में पहनाने से इडा और पिंगला दोनों नाडीयों को जगा देंगे इडा नाडी खुलने से चन्द्र शक्ति और दायें तरफ़ पहनाने से पिंगला नाडी खुलेगी जिस से सूरज शक्ति जग जायेगी |
ड्याजी -होर काया विज्ञान की बुनियाद पर सोने का एक आभूषण पहनाया जाता है जो योनी मुद्रा आकार का होता है यह प्रतीक हैं दो शक्तियों ने अब एक होना है | ड्याजी शब्द मूल द्विज से आया है जिसका अर्थ है दो और होर का मतलब जुड़ना | इस में तीन पतियाँ बनायी जाती है जो तीन बुनयादी गुण है .इच्छा ,ज्ञान ,और क्रिया | यह सोने का तिल्ले के तीन फूलों के रूप में होती है |
तल राज तल रज इस आभूषण के दोनों सिरों पर जो लाल डोरियाँ बाँधी जाती है ,उनको तल रज कहते हैं |रज का अर्थ है --धागा और ताल से मतलब है सिर के तालू की वह जगह ,जहाँ पूरी काया में बसे हुए चक्रों का आखरी चक्र होता है सहस्त्रार | आर का अर्थ है धुरी और वह धुरी जिसके इर्द गिर्द कई चक्र बनते हैं | काया विज्ञान को जानने वाले रोगियों के अनुसार इस सहस्त्रार में कुंडलिनी जागृत होती है ,परम चेतना जागृत होती है | यह आभूषण दोनों कानों के मध्य में पहना जाता है .उस नाडी को छेद कर के जिसका संबंध सिर के तालू के साथ जुडा होता है ,और माना जाता है की इस आभूषण के पहनने से सहस्त्रार के साथ जुड़ी हुई नाडियाँ तरंगित हो जायेंगी |
कल वल्युन कलपोश---कल खोपडी को कहते हैं और पोश पहनने को | यह सिर पर ढकने वाली एक टोपी सी होती है -जो सुनहरी रंग के कपड़े को आठ टुकडों में काट कर बनायी जाती है | यह उन का सुनहरी रंग का कपड़ा सा होता है और जिस पर यदि तिल्ले की कढाई की जाए तो उसको जरबाफ कहते हैं | यह आठ टुकड़े आठ सिद्धियों के प्रतीक हैं इस एक लाल रंग की पट्टी राजस गुन की प्रतीक है और सफ़ेद रंग के जो फेर दिए जाते हैं वह सात्विक रूचि को दर्शाते हैं | इस आठ डोरियों को दोनों और से एक एक सुई के साथ जोड़ दिया जाता है जिस पर काले रंग का बटन लगा होता है | यह बटन तामसिक शक्तियों से रक्षा करेगा इस बात को बताता है |
वोजिज डूर-लाल डोरी --वोजिज लफ्ज़ उज्जवल लफ्ज़ से आया है और डूर का अर्थ है डोरी | इसको दोनों कानो में ड्याजी -- होर जो आभूषण है वह दोनी कानो में इसके साथ बाँधा जाता है | उनका लाल रंग शक्ति का प्रतीक है और बाएँ कान में स्त्री अपने लिए पहनती है और दायें कान में अपने पति के लिए पहनती है इसका अर्थ यह है की दोनों ने आपने अपने तीन गुन इच्छा ज्ञान और क्रिया अब एक कर लिए हैं |
तरंग कालपोश को सफ़ेद सूती कपड़े में लपेटा जाता है -जो सिर से ले कर पीठ की और से होता हुआ कमर तक लटका होता है |मूलाधार चक्र तक और इस तरह सब छः चक्र उस कपड़े की लपेट में आ जाते हैं इसका सफ़ेद रंग तन मन और आत्मा की पाकीजगी का चिन्ह है |
स्त्री शक्ति कश्मीर में शक्तिवाद सबसे अधिक सम्मानित हुआ है |इस लिए स्त्री की पहचान एक शक्ति के रूप में होती है और इस लिए उसके पहरन में दो रंग जरुर होते हैं सफ़ेद सत्व गुण का प्रतीक और लाल राजस गुन का प्रतीक | काले रंग का उस के पहरन में कोई स्थान नही क्यूंकि वह तमस गुण का प्रतीक होता है |
फेरन --यह सर्दियों में पश्मीने का होता है और गर्मियों में सूती कपड़े का | यह भी काले रंग का कभी नही होता है | इसकी कटाई योनी मुद्रा में की जाती है जिस पर लाल रंग की पट्टी जरुर लगाई जाती है | इसको दोनों तरफ़ से चाक नही किया जाता इसका अर्थ यह होता है की शक्ति बिखरेगी नही |इसके बायीं तरफ़ जेब होती है जो स्त्री की अपनी तरफ़ है | उस तरफ़ की जेब लक्ष्मी का प्रतीक है और इस में भी लाल पट्टी जरुर लगाई जाती है | इसका अर्थ यह है की लक्ष्मी स्त्री के पास रहेगी और वह इसकी रक्षा अपने तमस गुण से करेगी |
पौंछ---यह फेरन के अन्दर पहने जाने वाला कपड़ा होता है और यह अक्सर सफ़ेद रंग का ही होता है -यानी सात्विक शक्ति स्त्री के शरीर के साथ रहेगी जिस के ऊपर लाल रंग का फेरन होगा रजस शक्ति का प्रतीक |
इसकी बाहों की लम्बाई कभी भी अधिक लम्बी कलाई तक नही होती है और इस के आख़िर में में भी लाल पट्टी लगा दी जाती है |
लुंगी --यह कई रंगों का एक पटका सा होता है जिसको फेरन के साथ कमर पर बाँध लिया जाता है और इसकी गाँठ को एक ख़ास तरकीब से बाँधा जाता है जो पटके की पहले लगी दो गांठो को लपेट लेती है जो की एक स्त्री शक्ति का प्रतीक है और एक पुरूष शक्ति का प्रतीक है और एक गाँठ में बाँधने का मतलब है की अब वह दोनों एक हैं |
पुलहोर--कुशा ग्रास को सुनहरी धागों में बुन कर स्त्री के पैरों के लिए जो जूती बनायी जाती है उसको पुलहोर कहते हैं | माना जाता है कि कुशा ग्रास की शक्ति के सामने असुरी शक्ति शक्तिहीन हो जाती हैं और ज़िन्दगी की मुश्किल राहों पर स्त्री आसानी से आगे बढ़ सकेंगी और साबुत कदम रख सकेगी |
इस प्रकार यह गहने शक्ति के भी प्रतीक बन जाते हैं और हर लड़की खुशी खुशी इनको धारण करती है | यह कोई बंधन नही एक परम्परा है जिस का सम्मान और उस से प्यार हर लड़की को ख़ुद बा ख़ुद हो जाता है |
मुझे कश्मीरी गहने पहनने को तो नहीं मिले ...सर पर स्कार्फ बाँध कर ही वही फीलिंग लाने की एक कोशिश :) बहुत कुछ कहते हैं यह कश्मीरी गहने ...वहां कि सुन्दरता गहनों में मुखर है और अपनी बात कहने कि ताकत रखती है ...वैसे जो वहां आते जाते सूरतें दिखी वह अपने चेहरे के तेज से बता रही थी ..कि बंधी हुई नहीं है यहाँ सब ..हर बाग़ में कश्मीरी परिवार दिखा कुछ खाते हुए ..कुछ बतियाते हुए ..जरुरी नहीं था कि कोई मर्द साथ हो ..बस वो थी और उनकी बातें ..उत्सुकता से देखती नजरे ..इधर उधर ..कश्मीर का एक लोक गीत है जिस में हर लड़की के दिल की बात है ...उसका भवार्थ यहाँ कुछ इस तरह से है ..बिलकुल कश्मीर के पहनावे और वहां के रहने वालियों के दिल सा सुन्दर ...
कश्मीर के लोक गीत में एक लड़की चरखे को बहुत प्यार से अपने पास बैठने को कहती है और उस से अपने मन की बात कुछ इस तरह से कहती है ...
मेरे सुख दुःख के साथी !
मेरे मित्र ! मेरे मरहम !
मेरे पास बैठ जाओ !
मैं तेरा धागा
फूलों के पानी में भीगों कर बनाऊंगी
और पश्मीना के लंबे लंबे तार कातती रहूंगी
देखो आहिस्ता आहिस्ता बोलना
अगर मेरा महबूब आए -
तो उस से कहना --
मुझे इतना क्यों भुला दिया ?
फूलों सी जान को इस तरह नही रुलाते ...
ये झील सी नीली आँखें, कोई राज़ है इन में गहरा
तारीफ़ करूँ क्या उसकी, जिस ने तुम्हे बनाया ...श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरते ही यह गाना बरबस दिल गाने लगता है ...( यह बात और है जब हम सब ने यह गाना हाउस बोट जाने के लिए शिकारे पर बैठ कर गाना शुरू किया तो शिकारे वाले ने कहा "अबी नहीं गाना ..जब आप शिकारे की सैर पर जायेंगे न तब गाये ..बहुत अच्छा लगेगा ) सुन कर मेरे होंठो पर मुस्कान आ गयी ..लगा हर आने वाला टूरिस्ट यह गाना जरुर गाता होगा तभी सहजता से इस शिकारे को चलाने वाले ने कह दिया :) कश्मीर के लोग वाकई जितने सुन्दर है उतने ही दिल के भी सुन्दर मासूम
|
.कश्मीर में हर लड़की की शादी से पहले लौगाक्ष गृह सूत्र " की रस्म अदा की जाती है जिस में लड़की के सामने सारे रहस्य खोले जाते हैं | लौगाक्ष एक ऋषि हुआ था जिस ने तन ,मन और आत्मा की चेतना के कुछ सूत्र लिखे थे ,वही सूत्र पढ़े जाते हैं और उनकी व्याख्या की जाती है |
गुणस..मटमैले रंग के एक जहरीले पहाडी सांप को गुणस कहते हैं और जो सर्प मुखी सोने का कंगन बनाया जाता है उसको भी गुणस कहते हैं | इस आभूषण को जब मंत्रित कर के लड़की की दोनों कलाई यों में पहनाया जाता है तो मान लिया जाता है की इस की शक्ति उसकी रगों में उतर जायेगी और वह अपनी रक्षा कर सकेगी |
कन वाजि- कर्ण फूल वाजि गोल कुंडल को कहते हैं और कान का कुंडल यह फूल के आकार में बना सोने का आभूषण है जिसको पहनाने से यह माना जाता है की दोनों कानो में पहनाने से इडा और पिंगला दोनों नाडीयों को जगा देंगे इडा नाडी खुलने से चन्द्र शक्ति और दायें तरफ़ पहनाने से पिंगला नाडी खुलेगी जिस से सूरज शक्ति जग जायेगी |
ड्याजी -होर काया विज्ञान की बुनियाद पर सोने का एक आभूषण पहनाया जाता है जो योनी मुद्रा आकार का होता है यह प्रतीक हैं दो शक्तियों ने अब एक होना है | ड्याजी शब्द मूल द्विज से आया है जिसका अर्थ है दो और होर का मतलब जुड़ना | इस में तीन पतियाँ बनायी जाती है जो तीन बुनयादी गुण है .इच्छा ,ज्ञान ,और क्रिया | यह सोने का तिल्ले के तीन फूलों के रूप में होती है |
निशात बाग़ में सजे हुए कश्मीरी ड्रेस ..चित्र पूर्वा भाटिया |
तल राज तल रज इस आभूषण के दोनों सिरों पर जो लाल डोरियाँ बाँधी जाती है ,उनको तल रज कहते हैं |रज का अर्थ है --धागा और ताल से मतलब है सिर के तालू की वह जगह ,जहाँ पूरी काया में बसे हुए चक्रों का आखरी चक्र होता है सहस्त्रार | आर का अर्थ है धुरी और वह धुरी जिसके इर्द गिर्द कई चक्र बनते हैं | काया विज्ञान को जानने वाले रोगियों के अनुसार इस सहस्त्रार में कुंडलिनी जागृत होती है ,परम चेतना जागृत होती है | यह आभूषण दोनों कानों के मध्य में पहना जाता है .उस नाडी को छेद कर के जिसका संबंध सिर के तालू के साथ जुडा होता है ,और माना जाता है की इस आभूषण के पहनने से सहस्त्रार के साथ जुड़ी हुई नाडियाँ तरंगित हो जायेंगी |
कल वल्युन कलपोश---कल खोपडी को कहते हैं और पोश पहनने को | यह सिर पर ढकने वाली एक टोपी सी होती है -जो सुनहरी रंग के कपड़े को आठ टुकडों में काट कर बनायी जाती है | यह उन का सुनहरी रंग का कपड़ा सा होता है और जिस पर यदि तिल्ले की कढाई की जाए तो उसको जरबाफ कहते हैं | यह आठ टुकड़े आठ सिद्धियों के प्रतीक हैं इस एक लाल रंग की पट्टी राजस गुन की प्रतीक है और सफ़ेद रंग के जो फेर दिए जाते हैं वह सात्विक रूचि को दर्शाते हैं | इस आठ डोरियों को दोनों और से एक एक सुई के साथ जोड़ दिया जाता है जिस पर काले रंग का बटन लगा होता है | यह बटन तामसिक शक्तियों से रक्षा करेगा इस बात को बताता है |
चित्र पूर्वा भाटिया |
वोजिज डूर-लाल डोरी --वोजिज लफ्ज़ उज्जवल लफ्ज़ से आया है और डूर का अर्थ है डोरी | इसको दोनों कानो में ड्याजी -- होर जो आभूषण है वह दोनी कानो में इसके साथ बाँधा जाता है | उनका लाल रंग शक्ति का प्रतीक है और बाएँ कान में स्त्री अपने लिए पहनती है और दायें कान में अपने पति के लिए पहनती है इसका अर्थ यह है की दोनों ने आपने अपने तीन गुन इच्छा ज्ञान और क्रिया अब एक कर लिए हैं |
तरंग कालपोश को सफ़ेद सूती कपड़े में लपेटा जाता है -जो सिर से ले कर पीठ की और से होता हुआ कमर तक लटका होता है |मूलाधार चक्र तक और इस तरह सब छः चक्र उस कपड़े की लपेट में आ जाते हैं इसका सफ़ेद रंग तन मन और आत्मा की पाकीजगी का चिन्ह है |
स्त्री शक्ति कश्मीर में शक्तिवाद सबसे अधिक सम्मानित हुआ है |इस लिए स्त्री की पहचान एक शक्ति के रूप में होती है और इस लिए उसके पहरन में दो रंग जरुर होते हैं सफ़ेद सत्व गुण का प्रतीक और लाल राजस गुन का प्रतीक | काले रंग का उस के पहरन में कोई स्थान नही क्यूंकि वह तमस गुण का प्रतीक होता है |
फेरन --यह सर्दियों में पश्मीने का होता है और गर्मियों में सूती कपड़े का | यह भी काले रंग का कभी नही होता है | इसकी कटाई योनी मुद्रा में की जाती है जिस पर लाल रंग की पट्टी जरुर लगाई जाती है | इसको दोनों तरफ़ से चाक नही किया जाता इसका अर्थ यह होता है की शक्ति बिखरेगी नही |इसके बायीं तरफ़ जेब होती है जो स्त्री की अपनी तरफ़ है | उस तरफ़ की जेब लक्ष्मी का प्रतीक है और इस में भी लाल पट्टी जरुर लगाई जाती है | इसका अर्थ यह है की लक्ष्मी स्त्री के पास रहेगी और वह इसकी रक्षा अपने तमस गुण से करेगी |
पौंछ---यह फेरन के अन्दर पहने जाने वाला कपड़ा होता है और यह अक्सर सफ़ेद रंग का ही होता है -यानी सात्विक शक्ति स्त्री के शरीर के साथ रहेगी जिस के ऊपर लाल रंग का फेरन होगा रजस शक्ति का प्रतीक |
इसकी बाहों की लम्बाई कभी भी अधिक लम्बी कलाई तक नही होती है और इस के आख़िर में में भी लाल पट्टी लगा दी जाती है |
लुंगी --यह कई रंगों का एक पटका सा होता है जिसको फेरन के साथ कमर पर बाँध लिया जाता है और इसकी गाँठ को एक ख़ास तरकीब से बाँधा जाता है जो पटके की पहले लगी दो गांठो को लपेट लेती है जो की एक स्त्री शक्ति का प्रतीक है और एक पुरूष शक्ति का प्रतीक है और एक गाँठ में बाँधने का मतलब है की अब वह दोनों एक हैं |
पुलहोर--कुशा ग्रास को सुनहरी धागों में बुन कर स्त्री के पैरों के लिए जो जूती बनायी जाती है उसको पुलहोर कहते हैं | माना जाता है कि कुशा ग्रास की शक्ति के सामने असुरी शक्ति शक्तिहीन हो जाती हैं और ज़िन्दगी की मुश्किल राहों पर स्त्री आसानी से आगे बढ़ सकेंगी और साबुत कदम रख सकेगी |
इस प्रकार यह गहने शक्ति के भी प्रतीक बन जाते हैं और हर लड़की खुशी खुशी इनको धारण करती है | यह कोई बंधन नही एक परम्परा है जिस का सम्मान और उस से प्यार हर लड़की को ख़ुद बा ख़ुद हो जाता है |
गूगल के सोजन्य से चित्र |
मुझे कश्मीरी गहने पहनने को तो नहीं मिले ...सर पर स्कार्फ बाँध कर ही वही फीलिंग लाने की एक कोशिश :) बहुत कुछ कहते हैं यह कश्मीरी गहने ...वहां कि सुन्दरता गहनों में मुखर है और अपनी बात कहने कि ताकत रखती है ...वैसे जो वहां आते जाते सूरतें दिखी वह अपने चेहरे के तेज से बता रही थी ..कि बंधी हुई नहीं है यहाँ सब ..हर बाग़ में कश्मीरी परिवार दिखा कुछ खाते हुए ..कुछ बतियाते हुए ..जरुरी नहीं था कि कोई मर्द साथ हो ..बस वो थी और उनकी बातें ..उत्सुकता से देखती नजरे ..इधर उधर ..कश्मीर का एक लोक गीत है जिस में हर लड़की के दिल की बात है ...उसका भवार्थ यहाँ कुछ इस तरह से है ..बिलकुल कश्मीर के पहनावे और वहां के रहने वालियों के दिल सा सुन्दर ...
कश्मीर के लोक गीत में एक लड़की चरखे को बहुत प्यार से अपने पास बैठने को कहती है और उस से अपने मन की बात कुछ इस तरह से कहती है ...
मेरे सुख दुःख के साथी !
मेरे मित्र ! मेरे मरहम !
मेरे पास बैठ जाओ !
मैं तेरा धागा
फूलों के पानी में भीगों कर बनाऊंगी
और पश्मीना के लंबे लंबे तार कातती रहूंगी
देखो आहिस्ता आहिस्ता बोलना
अगर मेरा महबूब आए -
तो उस से कहना --
मुझे इतना क्यों भुला दिया ?
फूलों सी जान को इस तरह नही रुलाते ...
10 comments:
वाह, वस्त्र, श्रंगार और संस्कृति का सुन्दर संयोग
बहुत ही रोचक .... ऐसा लगा जैसे खुद वहीँ हों ....जीवंत वर्णन .... बहुत सुन्दर .
बहुत जानकारीपरक संस्मरण है अपने साथ बहा ले गया।
दिलकश फोटो और नजारों क साथ ... आपकी लेखनी इस यात्रा को मदमस्त बना रही है ...
वाह रंजू.....
अपने साथ साथ हमें भी लिए चलती हो इस मनोरम यात्रा पर..
शुक्रिया
अनु
नया जाना आपके माध्यम से ...आभार
बहुत बहुत रोचक
यहां तो संपूर्ण काश्मीर ही परंपाराओं सहित मौजूद कर दिया आपने, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम
इतनी रोचकता से लिखा है और चित्र भी अति सुंदर हैं. पिछली पोस्ट पढनी ही पडेंगी. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
वाह गहने और वस्त्रों के पीछे इतना तर्क और विचार । बहुत अच्छी जानकारी दी आपने रंजू जी ।
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