Vandana Awasthi Dubey द्वारा की गयी समीक्षा "कुछ मेरी कलम से संग्रह की "
लोकसत्य पेपर में पब्लिश हुई एक कविता और Vandana Awasthi Dubey की समीक्षा कुछ मेरी कलम से संग्रह पर ...और यह कविता पब्लिश हुई है
उम्र के उस
नाजुक मोड़ पर
जब लिखे गए थे
यूँ ही बैठे बैठे
प्रेम के ढाई आखर
और उस में से
झांकता दिखता था
पूरा ..
सुनहरा रुपहला सा संसार
रंग बिरंगे सपने..
दिल पर छाया खुमार
मस्तमौला सी बातें
दिल में चढ़ता -उतरता
जैसे कोई ज्वार
और .....
अब न जाने
कितने आखर..
प्रेम भाव से ..
रंग डाले हैं पन्ने कई ..
पर कोई कोना मन का
फ़िर भी खाली दिखता है
दिल और दिमाग की ज़ंग में
अभेद दुर्ग की दिवार का
पहरा सा रहता है ....
सोचता है तब मन
बेबस हो कर.....
तब और अब में
इतना बड़ा फर्क क्यों है ?
उम्र के उस
नाजुक मोड़ पर
जब लिखे गए थे
यूँ ही बैठे बैठे
प्रेम के ढाई आखर
और उस में से
झांकता दिखता था
पूरा ..
सुनहरा रुपहला सा संसार
रंग बिरंगे सपने..
दिल पर छाया खुमार
मस्तमौला सी बातें
दिल में चढ़ता -उतरता
जैसे कोई ज्वार
और .....
अब न जाने
कितने आखर..
प्रेम भाव से ..
रंग डाले हैं पन्ने कई ..
पर कोई कोना मन का
फ़िर भी खाली दिखता है
दिल और दिमाग की ज़ंग में
अभेद दुर्ग की दिवार का
पहरा सा रहता है ....
सोचता है तब मन
बेबस हो कर.....
तब और अब में
इतना बड़ा फर्क क्यों है ?
6 comments:
लाजवाब रचना ... ओर बधाई इस प्रकाशन की ...
वाह बेहतरीन ...
प्रकाशन पर बहुत-बहुत बधाई
अरे वाह जी.... बधाइयां हमें और तुम्हें :)
रंजू, इस पेपर की कटिंग मिल सकती है क्या?
बहुत ही सुन्दर रचना ...
बहुत सुन्दर रचना, प्यार ढहता है, प्यार बहता है।
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