सुनो ...
आज कुछ लफ्ज़ दे दो मुझे
ना जाने मेरी कविता के
सब मायने
कहाँ खो गये हैं
मेरे अपने लिखे लफ्ज़ अब
ना जाने क्यों ,
बेमानी से हो गये हैं
दिखते हैं अब सिर्फ़ इसमें
विस्फोटक ,बलात्कार, भ्रष्टाचार
और कुछ डरे सहमे से शब्द
जो मुझे किसी कत्लगाह से
कम नही दिखते...
हो सके तो दे देना अब मुझे
विश्वास और प्यार के वो लफ्ज़
जो मेरे देश की पावन मिटटी की
खुशबु थे कभी!!
सन्नाटा सा है दिल में ,और एक अजब सी बैचनी ,जो रह रह कर दिल को और भी मायूस कर रही है ...कोई शब्द नहीं है कहने को ,लिखने को ..बारह दिन तक वह एक मशाल की तरह जली और अब वह खामोश है पर क्या सच में वह खामोश है ...? चुप सी लगी हुई आँखे टी वी पर आने वाली खबर को देख रही है और दिल कह रहा है कुछ नहीं होगा बस यह शोर है ..फिर से किसी अगले हादसे के लिए तैयार रहे .चाहे जितने बंद कर लो ,चाहे जितनी रेलियाँ निकाल लो ..न अब वह लड़की वापस आएगी जो अपने माँ पिता और भाइयों की आस थी . न वह लड़का जो उसके साथ था उस रात इस हादसे से कभी उबर पायेगा ...हर होने वाली घटना के पीछे कुछ अच्छा होता है ..इस में क्या अच्छा होगा ..?कौन जाने ? कोई जवाब नहीं है .........है तो मेरे जहन में तो सिर्फ एक सन्नाटा ......जो किसी तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी से कम नहीं .....और सवाल क्या इस तरह से चेतना जागने के लिए ,और कानून नए बनाने के लिए कीमत किसी की जान औरवह भी इतने वीभत्स तरीके से देनी होगी ? तब देश और इसको चलाने वाले जागेंगे ?
यह सोच है हर उस लिखने वाली एक कॉमन महिला की ..जो रोज़ इस तरह के हादसों को सुनती है ,झेलती है और फिर आश्वासन पा कर अगले हादसे के लिए डरती है ,सहमती है और अपनी दिनचर्या में लग जाती है .....
आज कुछ लफ्ज़ दे दो मुझे
ना जाने मेरी कविता के
सब मायने
कहाँ खो गये हैं
मेरे अपने लिखे लफ्ज़ अब
ना जाने क्यों ,
बेमानी से हो गये हैं
दिखते हैं अब सिर्फ़ इसमें
विस्फोटक ,बलात्कार, भ्रष्टाचार
और कुछ डरे सहमे से शब्द
जो मुझे किसी कत्लगाह से
कम नही दिखते...
हो सके तो दे देना अब मुझे
विश्वास और प्यार के वो लफ्ज़
जो मेरे देश की पावन मिटटी की
खुशबु थे कभी!!
सन्नाटा सा है दिल में ,और एक अजब सी बैचनी ,जो रह रह कर दिल को और भी मायूस कर रही है ...कोई शब्द नहीं है कहने को ,लिखने को ..बारह दिन तक वह एक मशाल की तरह जली और अब वह खामोश है पर क्या सच में वह खामोश है ...? चुप सी लगी हुई आँखे टी वी पर आने वाली खबर को देख रही है और दिल कह रहा है कुछ नहीं होगा बस यह शोर है ..फिर से किसी अगले हादसे के लिए तैयार रहे .चाहे जितने बंद कर लो ,चाहे जितनी रेलियाँ निकाल लो ..न अब वह लड़की वापस आएगी जो अपने माँ पिता और भाइयों की आस थी . न वह लड़का जो उसके साथ था उस रात इस हादसे से कभी उबर पायेगा ...हर होने वाली घटना के पीछे कुछ अच्छा होता है ..इस में क्या अच्छा होगा ..?कौन जाने ? कोई जवाब नहीं है .........है तो मेरे जहन में तो सिर्फ एक सन्नाटा ......जो किसी तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी से कम नहीं .....और सवाल क्या इस तरह से चेतना जागने के लिए ,और कानून नए बनाने के लिए कीमत किसी की जान औरवह भी इतने वीभत्स तरीके से देनी होगी ? तब देश और इसको चलाने वाले जागेंगे ?
यह सोच है हर उस लिखने वाली एक कॉमन महिला की ..जो रोज़ इस तरह के हादसों को सुनती है ,झेलती है और फिर आश्वासन पा कर अगले हादसे के लिए डरती है ,सहमती है और अपनी दिनचर्या में लग जाती है .....
10 comments:
,बहुत सही कहा लफ्ज़ ही जैसे चुप हो गये हैं सबके .... हम सब आशंकित थे कुछ भी हो सकता के लिए तैयार भी , फिर भी दिल में एक अपने के जाने सी हुक उठ गयी हैं एक आक्रोश जनम ले रहा हैं बहुत कुछ करने को उतावला हो रहा हैं मन परन्तु यह सिस्टम , यह समाज की रिवायते हमेशा स्त्री का रास्ता रोकती आई हैं .... ख़ामोशी भीतर पाँव पसार रही हैं
अगर अब न चेते तो यह समाज रसातल में चला जायेगा उसके जिम्मेदार हम -तुम होंगे .......दामिनी का बलात्कार नही हुआ सामाजिक मूल्यों का बलात्कार हुआ हैं ......... मन बहुत उद्ववेलित हैं .........................
और सवाल क्या इस तरह से चेतना जागने के लिए ,और कानून नए बनाने के लिए कीमत किसी की जान औरवह भी इतने वीभत्स तरीके से देनी होगी ? तब देश और इसको चलाने वाले जागेंगे ?
यह सवाल देश के हर नागरिक के मन में उठ रहा होगा ....
ye shabd kahan se aaye...
mook ho gaye hain ham...
आपने सच कहा कि लोग फिर भूल जाएंगे और फिर बेटियाँ उसी बस में सवार होंगी जहाँ वहशी उनकी प्रतीक्षा कर रहे होंगे, इस बार दिल्ली नहीं दहलेगी, नहीं उतरेंगे लोग सड़कों पर, मोमबत्ती नहीं जलेगी और प्रधानमंत्री को ठीक है जैसे एम्बैरेसिंग सिचुएशन का सामना नहीं करना पड़ेगा। दरिंदों कुछ दिन इंतजार कर लो, यह तूफान थम जाएगा, फिर तुम्हें मिल जाएगी वही आजादी जो आज बेटियों ने संकट में डाल दी है।
sahi prashna hain jo ham sabke dil me uth rahe hain jinka filhal to koi jawab nahi hain hamare paas
दुखद है वातावरण..
वाकई सन्नाटा है
शब्दों के साथ आग की भी जरूरत है आज दो दिल में जलानी है ...
वैभव तो पुन्ह: आ जायगा ..
जाते साल के अंतिम वक्त पे मन बहुत दुखी है, ये दामिनी सबके मन में एक ज्वलन्त प्रश्न छोड़ के चली गई :(
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