दोस्तों दुआ मांगों कि मौसम खुशगवार हो !
यह कुल्हाडियों का मौसम बदल जाए
पेड़ों की उम्र पेड़ों को नसीब हो
टहनियों के आँगन में
हरे पत्तों को जवानी की दुआ लगे
मुसाफिरों के सिरों को छाया -
और राहों को फूलों की आशीष मिले !
2012 विदा लेने को है .नया साल आने को है ...नया आने वाला साल एक नयी रौशनी .एक नयी चेतना और एक नया विश्वास रौशनी ले कर आये यही दुआ मांगते हैं
दुआ ...
दोस्तों ! उदासियों का मौसम बहुत लंबा है
हमारा एक शायर है कई सालों से --
जब भी कोई साल विदा होता है
तो कैद बामुशक्कत काट कर
कैद से रिहा होते साल को मिलता है
पाले में ठिठुरते कन्धों पर
उसका फटा हुआ खेस लिपटाता
उसे अलविदा कहता
वक्त के किसी मोड़ पर छोड़ आता है ..
फ़िर किसी दरगाह पर अकेला बैठ कर
नए साल की दुआ करता है --
कि आने वाले ! खैर से आना खेरियत से आना !
जिस तरह वक्त को दो हिस्सों में बाँट दिया गया है .क्राइस्ट से पहले और क्राइस्ट के बाद ..वक्त को तकसीम करने की यह तरकीब पश्चिम से आई इस लिए क्राइस्ट का नाम सामने आया .पूरब से आती तो कोई और नाम होता ..इस लिए यह तकसीम सहूलियत के हिसाब से जबकि दर्शन की तकसीम बहुत गहरे अर्थों में हैं ....
..आज इंसानियत कहीं खो गयी है .दरिदंगी हावी हो चुकी है ..सब तरफ एक अविश्वास का माहौल है |जिस देश में बेटियाँ सुरक्षित नहीं वहां जीना कितना मुश्किल लगता है |एक जगह कहा गया है कि ...अरे जा ! तुझे अपने महबूब का नाम भूल जाए ! सचमुच कितनी भयानक गाली है -इंसान के पास क्या रह जायेगा ,जब उसको उसके महबूब का नाम ही भूल जाए ..इंसान का महबूब उसकी इंसानियत है ..और हम आज उसी का नाम भूल गए हैं .....आज के गुजरते वक़्त में , दुराचार के नाम पर जितने दुष्कर्म हुए ,जितने बुरे हादसे हुए वह हमारे देश की आजादी के लिए एक बहुत बड़ा उलाहना है हम पर .और अब इसी तरह के माहौल में नया साल आने को है ...अमृता के लफ्जों में ...
जैसे रातों की नींद ने अपनी उँगलियों में
सपने का एक जलता हुआ कोयला पकड़ लिया हो ..
जैसे दिल के फिकरे से कोई अक्षर मिट गया हो
जैसे विश्वास के कागज पर स्याही बिखर गई हो
जैसे समय के होंठो से एक ठंडा साँस निकल गया हो
जैसे आदमजात की आंखों में एक आंसू भर आया हो
नया साल कुछ ऐसे आया ...
जैसे इश्क की जुबान पर एक छाला उभर आया हो
जैसे सभ्यता की कलाई की एक चूड़ी टूट गई हो .
जैसे इतिहास की अंगूठी से एक मोती गिर गया हो
जैसे धरती को आसमान ने एक बहुत उदास ख़त लिखा हो
नया साल कुछ ऐसे आया ........सोच चिन्तन की आत्मा का होता है ..आत्मा लोप हो जाए सोच एक जड़ता बन जाती है ......
एक थी राबिया बसरी ..जिसके बारे में कहा जाता है कि एक दिन वह एक हाथ में मशाल और एक हाथ में पानी ले कर भागती हुई गांव गांव से गुजरने लगी ...बहुत से लोग पूछने लगे यह क्या कर रही हो ? कहते हैं राबिया ने कहा ...मेरे लाखों मासूम लोग हैं जिन्हें बहिश्त का लालच दे कर उनकी आत्मा को गुमराह किया जा रहा है और उन्हें दोजख का खौफ दे कर उनकी आने वाली नस्लों को खौफजदा किया जा रहा है .मैं इस आग से बहिश्त को जलाने जा रही हूँ और इस पानी से दोजख को डुबोने जा रही हूँ ....
और अब चलते चलते अमृता की बात उन्ही के लफ्जों में ...
मैं साल मुबारक किस से कहूँ ? किस से कहूँ ?
अगर कोई हो ..
इल्म के सूरज वंशी जैसा ,कलम के चन्द्रवंशी जैसा
तो मैं साल मुबारक किस से कहूँ .मैं साल मुबारक किस से कहूँ
अगर कोई हो ...
इस मिटटी की रहमत जैसा ..इस काया की अजमत जैसा
मैं साल मुबारक किस से कहूँ ..मैं साल मुबारक किस से कहूँ ?
अगर कोई हो ....
मन सागर के मंथन जैसा और मस्तक के चिंतन जैसा
मैं साल मुबारक किस से कहूँ .मैं साल मुबारक किस से कहूँ ?
अगर कोई हो ..
धर्म लफ्ज़ के अर्थों जैसा .कर्म लफ्ज़ के अर्थों जैसा
मैं साल मुबारक किस से कहूँ ..मैं साल मुबारक किस से कहूँ ?
बहुत दिल में उदासी है ..नया साल यह यूँ आएगा सोचा नहीं था इस साल ले शुरू होने पर ..न हमने ,न उस जाने वाली बच्ची ने ...आज सोच में हूँ कि 2012 का स्वागत उस जाने वाली बच्ची ने भी खूब उम्मीद और जोश में किया होगा पर अंत वह कहाँ जानती थी इस साल का ऐसे होगा ..वह मासूम बच्ची न जाने कितने सपने ले कर इस साल कि सुबह में जागी होगी ..पर ..अंत यूँ होगा ...उफ़ बहुत दर्दनाक है ..और अफ़सोस कि यह सिलसला थमता ही नजर नहीं आ रहा है .इस घटना के बाद रोज़ आने वाली घटना और भी इस जख्म को नासूर बनाती चली जा रही है ....जैसे औरत सिर्फ जिस्म बन कर रह गयी है ..मर्द के लिए जिसे वह जैसे ,जब चाहे नोच खसोट रहा है .. ..कोई डर नहीं कोई इंसानियत नहीं ...बस गुलजार के लिखे शब्दों की तरह ....
ऐसा कुछ भी तो नही था जो हुआ करता था फिल्मों में हमेशा
न तो बारिश थी न तूफानी हवा और न जंगल का समां ,
न कोई चाँद फलक पर की जुनू खेज करे
न किसी चश्मे न दरिया की उबलती हुई फनुसी सदायें
कोई मौसीकी नही थी पसेमंजर में की जबात हेजान मचा दे
न वह भीगी हुई बारिश में कोई हुरनुमा लड़की थी
सिर्फ़ औरत थी वह कमजोर थी
चार मर्दों ने ,कि वो मर्द थे बस .
पसेदीवार उसे "रेप" किया !!!
पर उम्मीद का दामन हाथ से न छुट जाए इसी उम्मीद के साथ कि शायद कहीं कुछ बदले ...कुछ सकरात्मक हो ..... दिल से इसी दुआ के साथ .
.रंजू भाटिया
यह कुल्हाडियों का मौसम बदल जाए
पेड़ों की उम्र पेड़ों को नसीब हो
टहनियों के आँगन में
हरे पत्तों को जवानी की दुआ लगे
मुसाफिरों के सिरों को छाया -
और राहों को फूलों की आशीष मिले !
2012 विदा लेने को है .नया साल आने को है ...नया आने वाला साल एक नयी रौशनी .एक नयी चेतना और एक नया विश्वास रौशनी ले कर आये यही दुआ मांगते हैं
दुआ ...
दोस्तों ! उदासियों का मौसम बहुत लंबा है
हमारा एक शायर है कई सालों से --
जब भी कोई साल विदा होता है
तो कैद बामुशक्कत काट कर
कैद से रिहा होते साल को मिलता है
पाले में ठिठुरते कन्धों पर
उसका फटा हुआ खेस लिपटाता
उसे अलविदा कहता
वक्त के किसी मोड़ पर छोड़ आता है ..
फ़िर किसी दरगाह पर अकेला बैठ कर
नए साल की दुआ करता है --
कि आने वाले ! खैर से आना खेरियत से आना !
जिस तरह वक्त को दो हिस्सों में बाँट दिया गया है .क्राइस्ट से पहले और क्राइस्ट के बाद ..वक्त को तकसीम करने की यह तरकीब पश्चिम से आई इस लिए क्राइस्ट का नाम सामने आया .पूरब से आती तो कोई और नाम होता ..इस लिए यह तकसीम सहूलियत के हिसाब से जबकि दर्शन की तकसीम बहुत गहरे अर्थों में हैं ....
..आज इंसानियत कहीं खो गयी है .दरिदंगी हावी हो चुकी है ..सब तरफ एक अविश्वास का माहौल है |जिस देश में बेटियाँ सुरक्षित नहीं वहां जीना कितना मुश्किल लगता है |एक जगह कहा गया है कि ...अरे जा ! तुझे अपने महबूब का नाम भूल जाए ! सचमुच कितनी भयानक गाली है -इंसान के पास क्या रह जायेगा ,जब उसको उसके महबूब का नाम ही भूल जाए ..इंसान का महबूब उसकी इंसानियत है ..और हम आज उसी का नाम भूल गए हैं .....आज के गुजरते वक़्त में , दुराचार के नाम पर जितने दुष्कर्म हुए ,जितने बुरे हादसे हुए वह हमारे देश की आजादी के लिए एक बहुत बड़ा उलाहना है हम पर .और अब इसी तरह के माहौल में नया साल आने को है ...अमृता के लफ्जों में ...
जैसे रातों की नींद ने अपनी उँगलियों में
सपने का एक जलता हुआ कोयला पकड़ लिया हो ..
जैसे दिल के फिकरे से कोई अक्षर मिट गया हो
जैसे विश्वास के कागज पर स्याही बिखर गई हो
जैसे समय के होंठो से एक ठंडा साँस निकल गया हो
जैसे आदमजात की आंखों में एक आंसू भर आया हो
नया साल कुछ ऐसे आया ...
जैसे इश्क की जुबान पर एक छाला उभर आया हो
जैसे सभ्यता की कलाई की एक चूड़ी टूट गई हो .
जैसे इतिहास की अंगूठी से एक मोती गिर गया हो
जैसे धरती को आसमान ने एक बहुत उदास ख़त लिखा हो
नया साल कुछ ऐसे आया ........सोच चिन्तन की आत्मा का होता है ..आत्मा लोप हो जाए सोच एक जड़ता बन जाती है ......
एक थी राबिया बसरी ..जिसके बारे में कहा जाता है कि एक दिन वह एक हाथ में मशाल और एक हाथ में पानी ले कर भागती हुई गांव गांव से गुजरने लगी ...बहुत से लोग पूछने लगे यह क्या कर रही हो ? कहते हैं राबिया ने कहा ...मेरे लाखों मासूम लोग हैं जिन्हें बहिश्त का लालच दे कर उनकी आत्मा को गुमराह किया जा रहा है और उन्हें दोजख का खौफ दे कर उनकी आने वाली नस्लों को खौफजदा किया जा रहा है .मैं इस आग से बहिश्त को जलाने जा रही हूँ और इस पानी से दोजख को डुबोने जा रही हूँ ....
और अब चलते चलते अमृता की बात उन्ही के लफ्जों में ...
मैं साल मुबारक किस से कहूँ ? किस से कहूँ ?
अगर कोई हो ..
इल्म के सूरज वंशी जैसा ,कलम के चन्द्रवंशी जैसा
तो मैं साल मुबारक किस से कहूँ .मैं साल मुबारक किस से कहूँ
अगर कोई हो ...
इस मिटटी की रहमत जैसा ..इस काया की अजमत जैसा
मैं साल मुबारक किस से कहूँ ..मैं साल मुबारक किस से कहूँ ?
अगर कोई हो ....
मन सागर के मंथन जैसा और मस्तक के चिंतन जैसा
मैं साल मुबारक किस से कहूँ .मैं साल मुबारक किस से कहूँ ?
अगर कोई हो ..
धर्म लफ्ज़ के अर्थों जैसा .कर्म लफ्ज़ के अर्थों जैसा
मैं साल मुबारक किस से कहूँ ..मैं साल मुबारक किस से कहूँ ?
बहुत दिल में उदासी है ..नया साल यह यूँ आएगा सोचा नहीं था इस साल ले शुरू होने पर ..न हमने ,न उस जाने वाली बच्ची ने ...आज सोच में हूँ कि 2012 का स्वागत उस जाने वाली बच्ची ने भी खूब उम्मीद और जोश में किया होगा पर अंत वह कहाँ जानती थी इस साल का ऐसे होगा ..वह मासूम बच्ची न जाने कितने सपने ले कर इस साल कि सुबह में जागी होगी ..पर ..अंत यूँ होगा ...उफ़ बहुत दर्दनाक है ..और अफ़सोस कि यह सिलसला थमता ही नजर नहीं आ रहा है .इस घटना के बाद रोज़ आने वाली घटना और भी इस जख्म को नासूर बनाती चली जा रही है ....जैसे औरत सिर्फ जिस्म बन कर रह गयी है ..मर्द के लिए जिसे वह जैसे ,जब चाहे नोच खसोट रहा है .. ..कोई डर नहीं कोई इंसानियत नहीं ...बस गुलजार के लिखे शब्दों की तरह ....
ऐसा कुछ भी तो नही था जो हुआ करता था फिल्मों में हमेशा
न तो बारिश थी न तूफानी हवा और न जंगल का समां ,
न कोई चाँद फलक पर की जुनू खेज करे
न किसी चश्मे न दरिया की उबलती हुई फनुसी सदायें
कोई मौसीकी नही थी पसेमंजर में की जबात हेजान मचा दे
न वह भीगी हुई बारिश में कोई हुरनुमा लड़की थी
सिर्फ़ औरत थी वह कमजोर थी
चार मर्दों ने ,कि वो मर्द थे बस .
पसेदीवार उसे "रेप" किया !!!
पर उम्मीद का दामन हाथ से न छुट जाए इसी उम्मीद के साथ कि शायद कहीं कुछ बदले ...कुछ सकरात्मक हो ..... दिल से इसी दुआ के साथ .
.रंजू भाटिया
7 comments:
कुछ सकरात्मक हो ..... दिल से इसी दुआ के साथ .
आमीन !!!
आने वाला साल अच्छा ही होगा ...
आपको ओर परिवार को २०१३ की बहुत आहूत बधाई ....
दिल की दुआ के साथ कि कुछ अधूरे सपने हर किसी के पूरे हों
प्रभावी लेखन,
जारी रहें,
बधाई !!
यही दुआ है हमारी भी कि नया वर्ष कुछ अच्छे बदलाव लाये हम सब में ।
बहुत ही खूबसूरत! नव वर्ष 2013 की आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें!
आपको भी नया वर्ष मंगलमय हो।
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