"सुनो .."
तुम लिखती हो न कविता?"
"हाँ " लिखती तो हूँ
चलो आज बहुत मदमाती हवा है
रिमझिम सी बरसती घटा है
लिखो एक गीत प्रेम का
प्यार और चाँदनी जिसका राग हो
मदमाते हुए मौसम में यही दिली सौगात हो
गीत वही उसके दिल का मैंने जब उसको सुनाया
खुश हुआ नज़रों में एक गरूर भर आया,
फ़िर कहा -लिखो अब एक तराना
जिसमें इन खिलते फूलों का हो फ़साना
खुशबु की तरह यह फिजा में फ़ैल जाए
इन में मेरे ही प्यार की बात आए
जिसे सुन के तन मन का
रोआं रोआं महक जाए
बस जाए प्रीत का गीत दिल में
और चहकने यह मन लग जाए
सुन के फूलों के गीत सुरीला
खिल गया उसका दिल भी जैसे रंगीला
वाह !!....
अब सुनाओ मुझे जो तुम्हारे दिल को भाये
कुछ अब तुम्हारे दिल की बात भी हो जाए
सुन के मेरा दिल न जाने क्यों मुस्कराया
झुकी नज़रों को उसकी नज़रों से मिलाया
फ़िर दिल में बरसों से जमा गीत गुनगुनाया
चाहिए मुझे एक टुकडा आसमान
जहाँ हो सिर्फ़ मेरे दिल की उड़ान
गूंजे फिजा में मेरे भावों के बोल सुरीले
और खिले रंग मेरे ही दिल के चटकीले
कह सकूं मैं मुक्त हो कर अपनी भाषा
इतनी सी है इस दिल की अभिलाषा..
सुन के उसका चेहरा तमतमाया
न जाने क्यों यह सुन के घबराया
चीख के बोला क्या है यह तमाशा
कहीं दफन करो यह मुक्ति की भाषा
वही लिखो जो मैं सुनना चाहूँ
तेरे गीतों में बस मैं ही मैं नज़र आऊं...
तब से लिखा मेरा हर गीत अधूरा है
इन आंखो में बसा हुआ
वह एक टुकडा आसमान का
दर्द में डूबा हुआ पनीला है.....
तुम लिखती हो न कविता?"
"हाँ " लिखती तो हूँ
चलो आज बहुत मदमाती हवा है
रिमझिम सी बरसती घटा है
लिखो एक गीत प्रेम का
प्यार और चाँदनी जिसका राग हो
मदमाते हुए मौसम में यही दिली सौगात हो
गीत वही उसके दिल का मैंने जब उसको सुनाया
खुश हुआ नज़रों में एक गरूर भर आया,
फ़िर कहा -लिखो अब एक तराना
जिसमें इन खिलते फूलों का हो फ़साना
खुशबु की तरह यह फिजा में फ़ैल जाए
इन में मेरे ही प्यार की बात आए
जिसे सुन के तन मन का
रोआं रोआं महक जाए
बस जाए प्रीत का गीत दिल में
और चहकने यह मन लग जाए
सुन के फूलों के गीत सुरीला
खिल गया उसका दिल भी जैसे रंगीला
वाह !!....
अब सुनाओ मुझे जो तुम्हारे दिल को भाये
कुछ अब तुम्हारे दिल की बात भी हो जाए
सुन के मेरा दिल न जाने क्यों मुस्कराया
झुकी नज़रों को उसकी नज़रों से मिलाया
फ़िर दिल में बरसों से जमा गीत गुनगुनाया
चाहिए मुझे एक टुकडा आसमान
जहाँ हो सिर्फ़ मेरे दिल की उड़ान
गूंजे फिजा में मेरे भावों के बोल सुरीले
और खिले रंग मेरे ही दिल के चटकीले
कह सकूं मैं मुक्त हो कर अपनी भाषा
इतनी सी है इस दिल की अभिलाषा..
सुन के उसका चेहरा तमतमाया
न जाने क्यों यह सुन के घबराया
चीख के बोला क्या है यह तमाशा
कहीं दफन करो यह मुक्ति की भाषा
वही लिखो जो मैं सुनना चाहूँ
तेरे गीतों में बस मैं ही मैं नज़र आऊं...
तब से लिखा मेरा हर गीत अधूरा है
इन आंखो में बसा हुआ
वह एक टुकडा आसमान का
दर्द में डूबा हुआ पनीला है.....
11 comments:
गीत पूरे हों सभी के,
मन करे उन्माद मद में।
कह सकूं मैं मुक्त हो कर अपनी भाषा
इतनी सी है इस दिल की अभिलाषा..
गहन भाव लिये उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
ये इतनी सी अभिलाषा ही चिर अभिलाषा बन ह्रदय को बींधती रहतीहै।
waah...bahut sundar aur marmsparshi rachna...bahut bahut badhai aapko
चाहिए मुझे एक टुकडा आसमान
जहां हो सिर्फ़ मेरे दिल की उड़ान
गूंजे फिजा में मेरे भावों के बोल सुरीले
और खिले रंग मेरे ही दिल के चटकीले
कह सकूं मैं मुक्त हो कर अपनी भाषा
इतनी सी है इस दिल की अभिलाषा…
बहुत सुंदर कविता है
आदरणीया रंजना जी !
बहुत खूबसूरत !
दुआ है आपको आपके हिस्से का एक टुकड़ा आसमान हासिल हो … आमीन !
शुभकामनाओं सहित…
mukti ki bhaasha pehli baat suni aur samjhee hai...sundar.!!
गीत, कविता होते हैं, हृदय के उदगार ।
किसी के रोके रुके नहीं, भावनाओं की धार ।।
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (19-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | अवश्य पधारें |
सूचनार्थ |
आवाज़, सोच, सब पर तो पहरा है.. गीत कैसे पूरा हो।
मार्मिक कविता
सभू गीत पूरे हो..शुभकामनाएं
तब से लिखा मेरा हर गीत अधूरा है
इन आंखो में बसा हुआ
वह एक टुकडा आसमान का
दर्द में डूबा हुआ पनीला है.....बहुत खूबसूरत !
ranjanaji,aapki kavita dil ko chhu lene vali hai,stree ko koi nahi samjhta ,uski zindagi shayad ek KATHHPUTLI ki tarah hai...
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