क़ब्रों में बंद आवाज़े
यदि बोल सकती तो
पूछती उनसे
क्या वाकई
मिलता है दिली सकून
यहाँ भीतर
बिना किसी आहट
के एहसास में जीना
और खुद से ही घंटों बाते करना
सवाल भी खुद और
जवाब भी खुद ही बनना
और क्या यह वाकई
अलग से उस एहसास से
जो मैं यहाँ चलते फिरते
हुए महसूस किए करती हूँ ?
20 comments:
और क्या यह वाकई
अलग से उस एहसास से
जो मैं यहाँ चलते फिरते
हुए महसूस किए करती हूँ ?
ज़िन्दा कब्रे भी उन्ही अहसासो से गुजरती हैं।
अकेले में जीना तो सबको पड़ता है..
अकेलेपन की इन्तहा
आप पूछ सकें तो मेरी तरफ से भी पूछियेगा कि क्या शोर नहीं करती इतनी शान्ति, नहीं फटने लगते कान सन्नाटे की आवाजों से ....
यहाँ भीतर
बिना किसी आहट
के एहसास में जीना
और खुद से ही घंटों बाते करना
सवाल भी खुद और
जवाब भी खुद ही बनना,,,,बेहतरीन प्रस्तुति,,,
resent post : तड़प,,,
सुकून...ढूंढ़ने से भी नहीं मिलता...पता नहीं क्या ठिकाना है इसका..
ये तस्वीर तो जयपुर की लगती है...
कब्र के भीतर सुकून???
हाँ शायद खुद से मिलने के लिए इससे बेहतर जगह क्या होगी...
विचारणीय रचना..
सस्नेह
अनु
haan sakun kahan hai yahi talash hai anu :)
nahi yah tajmahal ki hai mahi :)
shukriya dhirnedar ji
haan shikha jarur ..bas ek baar jauan to wahan :)
shukriya vinay
hmm kajal ji .shukriya
क्या वाकई
मिलता है दिली सकून
यहाँ भीतर
बिना किसी आहट
के एहसास में जीना
वाह ... बहुत खूब
sahi kaha ..praveen ji ..shukriya
haan vandana ..shayad ...shukriya
बिना किसी आहट
के एहसास में जीना
बहुत ही त्रासदायक है
ओह!
कब्र का सन्नाटा भी बहुत शोर करता है ..... गहन रचना
Awesome !!!
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