Wednesday, November 14, 2012

तुम तो हो उस पार सजन

तुम तो हो उस पार साजन
मैं कैसे तुम तक आऊं
बीच में यह दुनिया सागर सी
तिल तिल  जलती जाऊं

चातक सी तृष्णा लिए मन में

बदरा की आस लगाऊं
कैसे नापूं सीमा विरह की
कैसे प्यार मैं पाऊं
दिल में अथाह सागर आंसूं का
पर सूखे पीड़ा में भरे लोचन
कैसे बेडा पार लगाऊं
मंज़िल पल पल मुझे पुकारे
 मिलन की नित्य मैं आस लगाऊं

अल्हड मन अनहद गीत स्वर
दर्द का नया गीत बुन जाऊं
करवटों में बीती रतियां
तुम में मैं खो जाऊं

थक गए हैं मन के पखेरू
बोझिल सी हो गई है साँसे
गीत गुजरिया  बना बंजारिन
 मदहोशी  सह  न  पाऊं
कैसे अपना नीड़ बसाऊं
कैसे मैं तुझ तक आऊं
तुम तो हो उस पार सजन
विरह की अग्न से जल जल जाऊं.........

19 comments:

समय चक्र said...

sundar prastuti...abhaar

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

विरह की व्यथा .... सुंदर प्रस्तुति ...

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर रचना..

Meenakshi Mishra Tiwari said...

अल्हड मन अनहद गीत स्वर
दर्द का नया गीत बुन जाऊं
करवटों में बीती रतियां
तुम में मैं खो जाऊं ....

Bahut sundar rachna !!
Saadar

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

अल्हड मन अनहद गीत स्वर
दर्द का नया गीत बुन जाऊं
करवटों में बीती रतियां
तुम में मैं खो जाऊं ..Bahut khoob virah ka geet

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

अल्हड मन अनहद गीत स्वर
दर्द का नया गीत बुन जाऊं
करवटों में बीती रतियां
तुम में मैं खो जाऊं bahut khub virah ka geet

Prakash Jain said...

अल्हड मन अनहद गीत स्वर
दर्द का नया गीत बुन जाऊं
करवटों में बीती रतियां
तुम में मैं खो जाऊं

Bahut sundar

Anju (Anu) Chaudhary said...

इंतज़ार की पीड़ा ..और खूबसूरत शब्दों का तालमेल ...बहुत खूब

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
(¯*•๑۩۞۩:♥♥ :|| गोवर्धन पूजा (अन्नकूट) की हार्दिक शुभकामनायें || ♥♥ :۩۞۩๑•*¯)
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ

Kailash Sharma said...

गहन भाव लिये बहुत सुंदर प्रस्तुति..

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



तुम तो हो उस पार साजन
मैं कैसे तुम तक आऊं
बीच में यह दुनिया सागर सी
तिल तिल जलती जाऊं


बहुत सुंदर रंजना जी !

बहुत अच्छा लगा …
मन के भाव मन तक संप्रेषित हुए हैं

शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार

सदा said...

चातक सी तृष्णा लिए मन में
बदरा की आस लगाऊं
अनुपम भाव लिये बेहतरीन प्रस्‍तुति।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

कोमल भावों से परि‍पूर्ण.

सुंदर रचना.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

थक गए हैं मन के पखेरू
बोझिल सी हो गई है साँसे
गीत गुजरिया बना बंजारिन
मदहोशी सह न पाऊं,,,,,,,खूब् शूरत पंक्तियाँ,,,,

RECENT POST: दीपों का यह पर्व,,,

Asha Joglekar said...

विरह की पीडा स्पष्ट है । अच्छी प्रस्तुति ।

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत प्यारी रचना है....
विरह की कोमल अभिव्यक्ति...

सस्नेह
अनु

Unknown said...

बहुत सुंदर प्रेममय प्रस्तुति |

ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
ब्लॉग जगत में नया "दीप"
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ

अरुन अनन्त said...

बेहद गहरी प्रस्तुति

मेरा मन पंछी सा said...

विरह की पीड़ा और भावनाओं को व्यक्त
करती कोमल भाव रचना..