तुम तो हो उस पार साजन
मैं कैसे तुम तक आऊं
बीच में यह दुनिया सागर सी
तिल तिल जलती जाऊं
चातक सी तृष्णा लिए मन में
बदरा की आस लगाऊं
कैसे नापूं सीमा विरह की
कैसे प्यार मैं पाऊं
दिल में अथाह सागर आंसूं का
पर सूखे पीड़ा में भरे लोचन
कैसे बेडा पार लगाऊं
मंज़िल पल पल मुझे पुकारे
मिलन की नित्य मैं आस लगाऊं
अल्हड मन अनहद गीत स्वर
दर्द का नया गीत बुन जाऊं
करवटों में बीती रतियां
तुम में मैं खो जाऊं
थक गए हैं मन के पखेरू
बोझिल सी हो गई है साँसे
गीत गुजरिया बना बंजारिन
मदहोशी सह न पाऊं
कैसे अपना नीड़ बसाऊं
कैसे मैं तुझ तक आऊं
तुम तो हो उस पार सजन
विरह की अग्न से जल जल जाऊं.........
मैं कैसे तुम तक आऊं
बीच में यह दुनिया सागर सी
तिल तिल जलती जाऊं
चातक सी तृष्णा लिए मन में
बदरा की आस लगाऊं
कैसे नापूं सीमा विरह की
कैसे प्यार मैं पाऊं
दिल में अथाह सागर आंसूं का
पर सूखे पीड़ा में भरे लोचन
कैसे बेडा पार लगाऊं
मंज़िल पल पल मुझे पुकारे
मिलन की नित्य मैं आस लगाऊं
अल्हड मन अनहद गीत स्वर
दर्द का नया गीत बुन जाऊं
करवटों में बीती रतियां
तुम में मैं खो जाऊं
थक गए हैं मन के पखेरू
बोझिल सी हो गई है साँसे
गीत गुजरिया बना बंजारिन
मदहोशी सह न पाऊं
कैसे अपना नीड़ बसाऊं
कैसे मैं तुझ तक आऊं
तुम तो हो उस पार सजन
विरह की अग्न से जल जल जाऊं.........
19 comments:
sundar prastuti...abhaar
विरह की व्यथा .... सुंदर प्रस्तुति ...
बहुत ही सुन्दर रचना..
अल्हड मन अनहद गीत स्वर
दर्द का नया गीत बुन जाऊं
करवटों में बीती रतियां
तुम में मैं खो जाऊं ....
Bahut sundar rachna !!
Saadar
अल्हड मन अनहद गीत स्वर
दर्द का नया गीत बुन जाऊं
करवटों में बीती रतियां
तुम में मैं खो जाऊं ..Bahut khoob virah ka geet
अल्हड मन अनहद गीत स्वर
दर्द का नया गीत बुन जाऊं
करवटों में बीती रतियां
तुम में मैं खो जाऊं bahut khub virah ka geet
अल्हड मन अनहद गीत स्वर
दर्द का नया गीत बुन जाऊं
करवटों में बीती रतियां
तुम में मैं खो जाऊं
Bahut sundar
इंतज़ार की पीड़ा ..और खूबसूरत शब्दों का तालमेल ...बहुत खूब
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
(¯*•๑۩۞۩:♥♥ :|| गोवर्धन पूजा (अन्नकूट) की हार्दिक शुभकामनायें || ♥♥ :۩۞۩๑•*¯)
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
गहन भाव लिये बहुत सुंदर प्रस्तुति..
तुम तो हो उस पार साजन
मैं कैसे तुम तक आऊं
बीच में यह दुनिया सागर सी
तिल तिल जलती जाऊं
बहुत सुंदर रंजना जी !
बहुत अच्छा लगा …
मन के भाव मन तक संप्रेषित हुए हैं
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
चातक सी तृष्णा लिए मन में
बदरा की आस लगाऊं
अनुपम भाव लिये बेहतरीन प्रस्तुति।
कोमल भावों से परिपूर्ण.
सुंदर रचना.
थक गए हैं मन के पखेरू
बोझिल सी हो गई है साँसे
गीत गुजरिया बना बंजारिन
मदहोशी सह न पाऊं,,,,,,,खूब् शूरत पंक्तियाँ,,,,
RECENT POST: दीपों का यह पर्व,,,
विरह की पीडा स्पष्ट है । अच्छी प्रस्तुति ।
बहुत प्यारी रचना है....
विरह की कोमल अभिव्यक्ति...
सस्नेह
अनु
बहुत सुंदर प्रेममय प्रस्तुति |
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
ब्लॉग जगत में नया "दीप"
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
बेहद गहरी प्रस्तुति
विरह की पीड़ा और भावनाओं को व्यक्त
करती कोमल भाव रचना..
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