यूँ ही बैठे बैठे
रेत पर उकेरते -लिखते
कुछ शब्द
देख कर न जाने क्यों
दिल कांपने सा लगता है
कि कहीं यह
थरथराती उंगलियाँ
कहने न लगे
वो मन के शब्द
जो दिल की अंतस
गहराइयों में छिपे हैं
गहरे भीतर दूर कहीं
और मन है कि
मंडराता रहता है
उन्ही शब्दों के आस पास
उन्हीं से टकराते हुए
मन के भंवर
उन्ही शब्दों के अर्थ से
कतराते हैं ............
तब उन,
अर्थों की मौन भाषा
हम कहाँ ,कब समझ पाते हैं
जानते हैं कि देना पड़ता है
कुछ पाने से पहले
प्यार को शर्तों से तौल कर
सच की .......
अस्तित्वहीनता को ठुकराते हैं
पर जब जान ही लेते हैं
कि ज़िन्दगी
कभी चलती नहीं समानांतर
रेत पर फिर -फिर अनकहे निशाँ
बनाते हैं .................
रेत पर उकेरते -लिखते
कुछ शब्द
देख कर न जाने क्यों
दिल कांपने सा लगता है
कि कहीं यह
थरथराती उंगलियाँ
कहने न लगे
वो मन के शब्द
जो दिल की अंतस
गहराइयों में छिपे हैं
गहरे भीतर दूर कहीं
और मन है कि
मंडराता रहता है
उन्ही शब्दों के आस पास
उन्हीं से टकराते हुए
मन के भंवर
उन्ही शब्दों के अर्थ से
कतराते हैं ............
तब उन,
अर्थों की मौन भाषा
हम कहाँ ,कब समझ पाते हैं
जानते हैं कि देना पड़ता है
कुछ पाने से पहले
प्यार को शर्तों से तौल कर
सच की .......
अस्तित्वहीनता को ठुकराते हैं
पर जब जान ही लेते हैं
कि ज़िन्दगी
कभी चलती नहीं समानांतर
रेत पर फिर -फिर अनकहे निशाँ
बनाते हैं .................
24 comments:
जीवन यूं ही चलता रहता है
ret par ukerte shabd aur fir samundra ki lahren unko mitati hui:)
aisa hi chalta hai na man me:)
बहुत सुन्दर ....
हर लफ्ज़ दिल को छूता हुआ....
देना पड़ता है
कुछ पाने से पहले
प्यार को शर्तों से तौल कर ..
वाह...
अनु
अर्थों की मौन भाषा
हम कहाँ ,कब समझ पाते हैं
जानते हैं कि देना पड़ता है
कुछ पाने से पहले
प्यार को शर्तों से तौल कर,,,,
भाव पूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति,,,,,
RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
अर्थों की मौन भाषा
हम कहाँ ,कब समझ पाते हैं
जानते हैं कि देना पड़ता है
कुछ पाने से पहले
प्यार को शर्तों से तौल कर ....बहुत सुन्दर भाव..
haan yahi sahi kaha tumne mukesh
जी हाँ काजल जी जीवन कब रुका
thanks anu ..:)
shukriya aapka bahut bahut
shukriya maheshwari ji
जानते हैं कि देना पड़ता है
कुछ पाने से पहले
प्यार को शर्तों से तौल कर
सच की .......
अस्तित्वहीनता को ठुकराते हैं
पूरी नज़्म ही गहन भावों से ओत -प्रोत
जानते हैं कि देना पड़ता है
कुछ पाने से पहले
प्यार को शर्तों से तौल कर ..
बहुत सुन्दर .
RANJU JI NAMSKAR, SUNDAR LIKHA HAI --------प्यार को शर्तों से तौल कर ..
बहुत सुन्दर .
आप की कलम से मन के शब्द , अद्वितीय भाव पिरो लाये है . लिखते जाइये वो शब्द कभी ना कभी तो जिंदगी की परिधि को स्पर्श करेंगे .
ज़िन्दगी भी तो रेत पर पडे निशाँ जैसी है
शब्दों को बहना आता है,
नहीं ठिठक सहना आता है,
मौन नहीं स्थिर इस जग में,
उसे बहुत कहना आता है।
bahut hee sundar...!
अर्थों की मौन भाषा
हम कहाँ ,कब समझ पाते हैं
जानते हैं कि देना पड़ता है
कुछ पाने से पहले
प्यार को शर्तों से तौल कर .
मन की गहराईयों से निकले भाव। बहुत खूब!
अर्थों की मौन भाषा
हम कहाँ ,कब समझ पाते हैं
जानते हैं कि देना पड़ता है
कुछ पाने से पहले
प्यार को शर्तों से तौल कर ...
वाह .. बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जिंदगी की रेत पर पड़े निशाँ ...पानी की हल्की सी लहर के साथ बह जाते हैं
जानते हैं कि देना पड़ता है
कुछ पाने से पहले
प्यार को शर्तों से तौल कर
सच की .......
अस्तित्वहीनता को ठुकराते हैं
सच बयाँ कर दिया ,इन शब्दों ने
भावपूर्ण..सुन्दर कविता
निम्न पंक्तियाँ आपकी इस कविता की रीढ़ हैं
उन्ही शब्दों के आस पास
उन्हीं से टकराते हुए
मन के भंवर
उन्ही शब्दों के अर्थ से
कतराते हैं ............
इनमें धुप की गर्मी तो हैं पर तीखे तेवर हट कर मृदु छाँव भी आगई हैं ..बहुत खूब रंजना जी
और मन है कि
मंडराता रहता है
उन्ही शब्दों के आस पास
उन्हीं से टकराते हुए
आपने तो फिर उदास कर दिया रंजना जी .....:))
सुन्दर कविता...
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