मृगतृष्णा (कविता-संग्रह)
मृगतृष्णा क्या है ?जल या जल की लहरों की वह मिथ्या प्रतीति जो कभी कभी ऊपर मैदानों में भी कड़ी धूप पड़ने के समय होती है । मृगमरीचिका । गरमी के दिनों जब वायु तहों का धनत्व उष्णता के कारण असमान होता है, तब पृथ्वी के निकट की वायु अधिक उष्ण होकर ऊपर को उठना चाहती है, परंतु ऊपर की तहें उठने नहीं देती, इससे उस वायु की लहरें पृथ्वी के समानांतर बहने लगती है । यही लहरें दूर से देखने में जल को धारा सी दिखाई देती हैं । मृग इससे प्रायः धोखा खाते हैं, इससे इसे मृगतृष्णा, मृगजल आदि कहते हैं ।समान्यता हम यही मृगतृष्णा की परिभाषा समझते हैं जानते हैं। मृगतृष्णा काव्य संग्रह ...संपादक सत्यम शिवम् और उनके लिखे शुरूआती लफ़्ज़ों में मृगतृष्णा एक ऐसा बिम्ब है जो हमें जीवन के आध्यात्मिक वास्तविक स्वरूप की झलक देता है ।रेगिस्तान में इधर उधर भटकते मृग जब प्यास बुझाने के लिए पानी की कामना करते हैं तो कुदरत अपना झूठा स्वांग रच कर पानी की झलक दिखा जाती है ..और प्यास वहीँ रह जाती है ...इसी तरह हमारा जीवन है हम झूठी लालसाओं में घिरे भागते रहते हैं और असली वास्तु से दूर होते जाते हैं ..झूठ को सच मान लेना और वही सच समझना इस "मन की मृगतृष्णा "है
ख्वाइशें हैं मन के भीतर रेत में भी एक नदी की संपादक : सत्यम शिवम् १० कवियों की तृष्णाएँ कविताएँ मूल्य- रु १९५ प्रकाशक- हिंद युग्म, 1, जिया सराय, हौज़ खास, नई दिल्ली-110016 (मोबाइल: 9873734046) फ्लिप्कार्ट इन्फिबीम पर खरीदने का लिनक्स |
स्वांग के आकाश में याथार्थ की तलाश है
जिस समन्दर के लिए हम दर -ब -दर ताउम्र भटके
पाके उसको भी कैसी यह प्यास है ....
वाकई यह प्यास जो न चैन से रहने दे वह मृगतृष्णा सी ही प्यास है ....इस में दस कवि तृष्णाएँ कविता कर्म की उस इच्छा को समर्पित हैं जो हमेशा अतृप्त रहती हैं और इनको हम जानेंगे इनके इस संग्रह में लिखे के माध्यम से ...हर लिखने वाला कवि या कवियत्री के पास प्रेम विरह ,आस पास घटने वाली हर बात असर डालती है और वही मरीचिका बन कर उनके लफ़्ज़ों में ढल जाती है ...इस में भी लिखने वाली हर रचियता का माध्यम यही विषय रहे हैं ..अधिकतर लिखने वाले ब्लॉग जगत से ही जुड़े हैं ..कुछ पहली बार प्रकाशित हो रहे हैं कुछ की कवितायें पहले भी पब्लिश हो चुकी हैं इस लिए कहीं कहीं यह मरिचिका बहुत चमकीली है और कहीं कहीं धुंधली हो गयी है .पर मरीचिका तो मरीचिका है दिल को पानी तरफ खींचेगी ही ....नीरज विजय की रचना ..
यही तो दर्शाती है
कुछ पाने की चाहत में
करते मन को घायल ये
पर क्या यही असली है कमाई
या ये मृगतृष्णा की है गहराई !!!
इनकी लिखी रचनाएं इनके सपनों को साकार करती हुई कहतीं है हर उम्मीद की किरण होंसलें की लो जलाती है और इनकी रचनाओं में कुछ बहुत ही बेहतर हैं और कुछ अभी मासूम है जिन्हें पकने में थोडा वक़्त लगेगा ।
अभिषेक सिन्हा की रचनाओं में अभिनय करते मेरे शब्द हैं रचना बहुत ही बढ़िया है ..
ये शब्द एक दर्पण है
जो निज से सबको मिलाता है
उनके अस्तित्व का
ये दर्शन उन्हें कराता है
इनकी बेहतर रचनाओं में तू हमेशा पास रहती है और कांच के टुकड़े हैं
इस संग्रह की एक चमकीली मरीचिका के नाम में अर्चना नायडू का नाम महवपूर्ण है ..इनकी रचना आ अर्जुन ! अब गांडीव उठा ..झंझोर देती है ...निखरता है सोना ,अग्नि में तप कर
रंग लाती है मेहँदी ,पत्थरों में पीस कर
जीवन नाम है युद्ध का ,तू संघर्ष कर ..बहुत जीवन के सही अर्थों को समझाती है ....बरगद की छांव रचना रिश्तों के ताने बने पर बुनी एक सुन्दर रचना है जिस की छांव में माँ है पिता है और वह गांव प्यार का गांव है ।नारी व्यथा को दर्शाती एक सच्चाई रचना की कुछ पंक्तियाँ
नहीं चाहती थी मैं
दहलीज की लक्ष्मण रेखाएं
वचनों की वर्जनाएं
फिर भी तुमने दी मुझे
सिर्फ सीमाएं ..यह रचना बहुत आएगी पढने वालों को ..साफ़ साफ़ शब्दों में नारी मन की बात इनकी कलम से बहुत सुन्दर ढंग से उतरी है कहीं मौन में ढल कर और कहीं स्वयं सिद्धा बन कर ..
रूह के रिश्ते भी
जिस्मों से गुजर कर पूरे होते हैं ....यह कहना है कुदरत प्रेमी डॉ प्रियंका जैन का ..इनकी लिखी रचनाये पढना बहुत ही रोचक लगा ..आज के वक़्त को यह बखूबी ब्यान कर रही है दिवाली की सफाई में बेच दिया इन्होने
थोड़ी सी मासूम हाथापाई
पुराने सिक्के
कुछ जूते के तस्में
कुछ यारों के टशन ..क्यों की मार्केटिंग वाले सब एक्सेप्ट करते हैं इस फेस्टिव सीजन में .....इनकी रचनाओं में शब्द आज की उस भाषा के इस्तेमाल हुए हैं जो हम अधिकतर बोलते हैं सुनते हैं ...जिस से हर रचना बहुत अपनी सी बात कहती लगती है ..इनको रचनाओं के कोई शीर्षक नहीं है ..नम्बर्स है सिर्फ जो और भी अधिक पढने वालों को रोचक लगते हैं नंबर 13 की रचना पर हम पाते हैं कुछ और नम्बर
यूँ ही दफअतन
दूसरे पहर उठती कभी
पुरवाई की तपिश से
पाती ढेरों मिस्स्ड कॉल्स
लिपटे थे उन 55 .60 .75 .80 .95 .99 कॉल्स में
बेशुमार चाहत के नम एहसास ..
रजनी नैय्यर मल्होत्रा का नाम पढने वालों के लिए नया नहीं है ..इनके लिखे से बहुत से लोग परिचित हैं ...इनकी गजलो के अलफ़ाज़ दिल की जमीन से सीधे आपको खुद से रुबरु करवा देते हैं ..और कहते हैं पसंद आये तो दाद दे देना /यही है मेरे अशआर का इनाम
और आज का सच .. किताबों से उठ कर नेट पर आ गया /मीर हो या ग़ालिब का कलाम ...
एक सच और ...
जिनको चाह किये दोस्तों की तरह
वो बदलते रहे मौसमों की तरह
बाकी रचनाओं में इनकी रचना बेटियाँ कहाँ पीछे हैं बेटों से ..यह कहते हुए की जन्म नहीं कर्म भाग्य बनाता है /बेटों का भी और बेटियों का भी ...डॉ रागिनी मिश्र की रचनाओं में तुम प्रथम .आओ खेले भ्रष्ट -भ्रष्ट और हमारा आनलाइन प्रेम ...बहुत ही चमकीली रचनाएं है ....मेरी मृगतृष्णा में आखरी पंक्तियाँ बहुत जोरदार है ..
जीवन के बढ़ते क्रम में
मेरी प्रेमाग्नि भड़कती जाती है
होगी पूर्णाहुति इसमें ,तुम्हारी
या मेरी मृगतृष्णा बन जायेगी ?सवाल वाजिब है ..और बहुत गहरा भी ..
रोशी अग्रवाल की रचनाएँ लिखी तो अच्छी है ..पर कहीं कही कहीं बहुत सपाट सी हैं .पढने में कुछ अलग हैं और प्रस्तुत करने का ढंग एक कहानी सा लगा ....कविता कम और बाते कहती सी अधिक लगी इन की रचनाएं .
विश्वजीत सपन ..इस संग्रह में बहुत सी विवधिता लिए से बहुत कम शब्दों में बहुत गहरी बातें सुनाते हुए लगे ..इनकी क्षणिकाएँ .हाइकु .मुक्तक बहुत ही बेहतरीन हैं इस संग्रह में ...
तुम तो जालिम हो
सामने आ कर गुजर जाती हो
कभी सोचा है तुमने
उस दिल का क्या होगा
जिसपे चल कर गुजर जाती हो
या यह ..करवट ले /नींदे तोड़ जाती हैं /यादें मुझको ....और एक हाइकु ..बहुत ही बढ़िया बात ...चुभन देता /अत्तित का दामन /छोड़ता नहीं !
सुमन मिश्रा ..की रचनाओं में मरीचिका पर लिखे हाइकु बहुत बढ़िया लगे ..बिलकुल मृगतृष्णा संग्रह को शब्द देते हुए ..
जल तलाश
तलाव कहीं पर हो
जीवन वहीँ !
सही कहा ..यही तो है सच ..इनकी बाकी रचनाएं अच्छी है ..कुछ तो बहुत ही गहरे भाव में उतरी हैं ..कहीं मन पंख सा उडता ,कहीं पत्थर सा भारी है ..में लिखी यह पंक्तियाँ
ये इश्क भी अजब बात है ,जब दूर है तब पास है
रिश्तों की अहमियत ही क्या किस किस को कहे ख़ास है
हेमंत कुमार दुबे की रचनाओं में प्रमुख रचना उनकी मृगतृष्णा ,तुम्हारे ख़त बहुत बेहतरीन लगी ..देश भक्ति पर लिखी इनकी रचनाएं जोश से दिल को भर देती हैं .सामजिक विषयों में नारी और जीवन संगिनी ने भी प्रभवित किया है
हर सुख दुःख की साथी
मेरी अन्तरंग सखी हो तुम
मन प्राण का आधार हो
जीवन संगिनी हो तुम ....सही परिभाषा है हमसफर की ...
जब इतने सारे लिखने वाले एक संग्रह से जुड़ते हैं तो विविधता हर रचना में आ जाती है ..इतने विचार अलग भाव और अलग लिखने के अंदाज़ ..जो कहीं कहीं बहुत बेहतरीन लगते हैं और कहीं कहीं खटक जाते हैं ....एक साथ संग्रह लाने में बहुत से वो लफ्ज़ .वो नाम और वो व्यक्तित्व भी पढने को मिल जाते हैं जो अनजान थे अब तक लेखन की दुनिया से ...यह अच्छा भी है और हिंदी भाषा के लिए बेहतरीन भी ..और मुझे लगता है कि इस में हर लिखने वाला खुद ही अपने लिखे को आँक सकता है कि वह कहाँ पर बेहतर है कहाँ कम है ....इन लिखी रचनाओं में आधुनिक जीवन की भागदौड़ के बिम्ब मौजूद है ...काव्य -कला चूँकि एक कुदरत का वरदान है और कोई नहीं जानता कि कब और किसके अंतर्मन रूपी कलश में "वो "कृपा उड़ेल दे और वो हमें इसी तरह संग्रह में पढने को मिलता रहे इस के लिए सम्पादक को धन्यवाद देना चाहिए जिन्होंने नए लिखने वालों को मन और ह्रदय में विचार ,भाव ,सम्वेंदना और अनुभूति के भाव इस संग्रह में पिरोये हैं वह जीवन के सच से परिचय करवाते हैं ठीक इसी संग्रह से ली गयी इन्ही पक्तियों सा सच ......
मन दौड़ता जाता है
वासनाओं के संग
गर्म रेतीले संसार में
जल के भ्रम में
जो मिलता नहीं
खो जाता है ....खो के फिर फिर मिलना ही जीवन कहलाता है और
पथिक मन
दूरियाँ तय कर
मरीचिका थी ..!!सुन्दर साज सज्जा से सजी साहित्य प्रेमी संघ के दस रचनाकारों की यह तृष्णा अपने कवर पेज पर दौड़ते हुए मृगों के साथ तलाशती मरीचिका आपके दिल को जरुर मोह लेगी |
10 comments:
बहुत ही प्यारी समीक्षा की है हम भी बह गये आपके साथ ……सभी को हार्दिक बधाई।
बहुत बढ़िया समीक्षा है..आप सभी को हार्दिक बधाई।
बहुत ही अच्छी समीक्षा की है आपने ... आभार इस प्रस्तुति के लिये
सुन्दर और प्रभावी समीक्षा।
मृगतृष्णा (कविता-संग्रह) की बेहतरीन समीक्षा के लिये,,,बधाई रंजना जी,,,,,,
MY RECENT POST: माँ,,,
मृग मरीचिका की बहुत सुंदर समीक्षा । हम भी जल की तलाश में प्.ासे मृग की तरह ऊपरी रंगों में भटक कर रह जाते हैं जब कि जो हमें चाहिये हमारे पास ही निकट ही होता है ।
प्रभावशाली समीक्षा .....के लिए आपको बधाई रंजना जी
सत्यम जी को बधाई
रँजना जी,
आप समीक्षा लिखने मेँ निपुण हो गई हैँ अब आप इसे बिधा को प्रोफेशन रूप मेँ अपना लीजिये और वाकायदा समीक्षा लिखने की फीस वसूलिये. सुंदर समीक्षा के लिये बधाई.
बहुत ही सुंदर और प्रभावशाली समीक्षा...हमेशा की तरह...रंजना जी....आपकी समीक्षा पुस्तक के प्रति पाठकों की जीज्ञासा को सौगुणी बढ़ा देती है.....आपके जादुई शब्द....नयी भावनाओं के कलेवर में प्रस्तुत पुस्तक को और भी ज्यादा रंगीन बान देते है...धन्यवाद।
बहुत,बहुत धन्यवाद अंजू जी
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