Saturday, October 27, 2012

सरगम

झरते रहे बदन से लफ्ज सांसो की सरगम पर  ..
रात यूँ तारों के साथ हौले  से ढलती रही .......

 बुनती रही सपनो की एक चाद्दर ,याद टूटी हुई 
कोई शमा जैसे पिघल के पल पल जलती रही 

हवा ने भी पलट लिया शायद रुख़ अपना 
कोई तस्वीर बन के फिर आईने  में ढलती रही 

देते कब तक नसीब को दोष अपने ए दोस्त 
हाथों   की लकीरें  थी ,बन के फिर मिटती रही 

कहा तो ना था हमने अपना फ़साना ज़माने को
फिर भी तेरे मेरे नाम की एक कहानी बनती रही !!

18 comments:

ashish said...

वाह , प्यारी सी खूबसूरत ग़ज़ल . सरगम जहन की .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बुनती रही सपनो की एक चाद्दर ,याद टूटी हुई
कोई शमा जैसे पिघल के पल पल जलती रही

यादों की कसक को कहती खूबसूरत गज़ल

डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' said...

और इसी तरह में तेरे भीतर जीती रही, खुद के भीतर मरते हुये...

अरुन अनन्त said...

बेहतरीन रचना

Meenakshi Mishra Tiwari said...

khoobsoorat nazm......

travel ufo said...

सुंदर लाइने

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

बुनती रही सपनो की एक चाद्दर ,याद टूटी हुई
कोई शमा जैसे पिघल के पल पल जलती रही
.
.
बेहतरीन

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

बेहतरीन

बुनती रही सपनो की एक चाद्दर ,याद टूटी हुई
कोई शमा जैसे पिघल के पल पल जलती रही

अव्यक्त said...

बहुत सुंदर पंक्तियाँ ....सार गर्भी भावनाओ को लिए हुए !!!!!!!

अव्यक्त said...

बहुत सुंदर पंक्तियाँ ....सार गर्भी भावनाओ को लिए हुए !!!!!!!

Vinay said...

Beautiful

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विभूति" said...

बेहतरीन भाव ...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह जी

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत खूब, तारों के साथ ढलती रात...

Aditya Tikku said...

utam

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

beautiful picture and composition too....!!!

सदा said...

देते कब तक नसीब को दोष अपने ए दोस्त
हाथों की लकीरें थी ,बन के फिर मिटती रही
वाह ... बेहतरीन

dinesh gautam said...

बड़ी प्रभावी रचना। आपने अपने अहसासों को सुंदर शब्द दे दिए हैं । पढ़कर डूब गया मैं उनमें