Friday, September 07, 2012

क्षितिजा

क्षितिजा( काव्य संग्रह )

क्षितिजा काव्य संग्रह
कवियत्री अंजू अनु चौधरी
मूल्य- रु 238
प्रकाशक- हिंद युग्म,
1, जिया सराय,
हौज़ खास, नई दिल्ली-110016
(मोबाइल: 9873734046)
फ्लिप्कार्ट से खरीदने का लिंक



किसी भी किताब के बारे में लिखना और फिर जिसने उस किताब को लिखा है और फिर उसके बारे में लिखना बहुत अलग अलग अनुभव होता है ..यह मैंने क्षितिजा के बारे में लिखते हुए अनुभव किया ....जब आप किताब पढ़ रहे होते हैं तो उस लिखने वाले के शब्दों से परिचित होते हैं ..पर जब आप उस से मिल कर लिखते हैं और लफ़्ज़ों के साथ साथ वह व्यक्तित्व  भी आपके जहन में होता है ..अपनी माटी  हरियाणा करनाल की अंजू जी से जब मिली तो उन्ही की  लिखी कई पंक्तियाँ जहन में कौंध गयी जो उनसे मिलने से पहले ही रात में क्षितिजा में पढ़ी थी ....बंधी हुई मुट्ठियों से फिसलती है
हर दिन की आखिरी  किरण
दे जाने को एक नई
सांझ जीवन की
उठती हुई इस क्षितिजा को ....बहुत अपनी सी लगी अंजू जी और बहुत मोहक सी उनकी वह मुस्कान जो अपने दबे होंठो में वह छिपाए रहती हैं ..अनकही सी जैसी कुछ भाषा कहते हुए ..:)
           क्षितिजा का अर्थ होता पृथ्वी की कन्या ...धरती की कन्या है तो उसका स्वभाव ही नारी युक्त है और वह नारी भाव से घिरी हुई है ..और अंजू जी की अधिकतर रचनाएं है भी नारी के भावों पर ..खुद अपने परिचय में वह कहती है कि" नारी के भावों को शब्द देते हुए उनकी प्रति क्रियाओं को सीधे सपाट शब्दों में अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है "और यह सच भी लगा कब "कस्तूरी" के विमोचन में "आधी रात का दर्द "उनकी कविता सुनी ..|  एक औरत के दर्द को जो उन्होंने लफ़्ज़ों में पिरो के जिस सहज भाव से सुनाया वह भुला नहीं जा सकता है |
         ज़िन्दगी का खालीपन यदि क्रियात्मक सोच "कविता "जैसी विधा में बदल जाए तो उस से बेहतरीन कुछ नहीं हो सकता है और सही कहा है अंजू जी ने कि इस वक़्त में लिखी गयीं कवितायेँ उनके बेहद करीब होती हैं |
उनके इस संग्रह में चलते हैं कविताओं के सफ़र पर ..जिनकी चुनिन्दा पंक्तियाँ उनके व्यक्तित्व का आईना लगी मुझे
अभी भी है यूँ
एक लम्बा
सफ़र तय करना
होगा नया सफ़र
होगी जिसकी
एक नयी मंजिल (फुटपाथ पर चलते हुए ) कविता का यह कहना ही यह एहसास करवा देता है कि सफर जारी है और अपने लफ़्ज़ों के दरमियान अपनी बाते हमसे कहता चल रहा है ...
आज वो घर कहाँ
बसते थे इंसान जहाँ
आज वो दिल कहाँ
रिसता था प्यार जहाँ
हर घर की दीवार
पत्थर हो गयी
दिल में सिर्फ बसेरा है गद्दारी का ..सही सच है यह ..हर घर की अब यही कहानी हो चुकी है ..घर कम और मकान अधिक नजर आते हैं ..जहाँ इंसान तो बसते हैं पर ..अनजाने से
पर प्यार का रंग यदि साथ हो तो ज़िन्दगी की तस्वीर बदल सी जाती है
उसके साथ चलते चलते
ये ज़िन्दगी इस मुकाम
पर पहुँच गयी ..
जहाँ मैं ...मैं न रह कर
हम हो गए
इस प्यार में ...
सात फेरे  से बंधी नयी ज़िन्दगी की पंक्तियाँ जब ली जाती है तो एक डर स्वाभाविक सा हर नयी नवेली के दिल में होता है उसी को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं अंजू जी ने अपनी इस रचना में ..
नयी राहों पर
उन संग कदम से कदम
मिलाने को
अब कर्तव्यों के संग
मैं भी तैयार हूँ
अपने हर अधिकार
को पाने को
ताकि ये रिश्ते की डोर कभी न
ढीली पड़ जाए मेरी किसी भी नादानी से ...पर जिसने हाथ थामा है वह भी कह रहा है बहुत स्नेह से ..
बड़े प्यार से
थाम कर हाथ मेरा
कहा --
मैं हूँ न तुम्हारे साथ
चलो तुम ..
धैर्य के पथ पर
मुश्किलों के रथ पर

सुन कर बौराए  दिल ने कहा ..

 उसकी आँखों की मौन स्वीकृति ने
मुझे उस खुदा का मुजरिम बना डाला
क्यों कि उसकी इबादत से पहले
मैंने सजदा अपने प्यार का
अपने  हुस्ने -ए- यार का कर डाला
अंजू जी रचनाओं में प्रेम .इन्तजार ,,कुदरत ,विरह और आक्रोश सभी रंग शामिल हैं ...और सभी रंग बहुत साफ़ लफ़्ज़ों में साफ़ भावों में मुखिरत हुए हैं कलम की जुबान से ...पर अधिकतर रचनाओं में नारी मन की छाप है और नारी मन की ही बात ..स्त्री एक सोच भी है और स्त्री खुद ही उस सोच के लफ्ज़ भी ..कई रंग अपने में समेटे हुए अंत तक आते आते वह दोहरा जाती है ..कहीं बंधी है कहीं अब भी घुटी हुई सी है .अंजू जी के इस काव्य संग्रह के शुरू के पन्नो पर जब एक पुरुष यह बात खुल कर कहता है तो मन बरबस वाह करने को कह उठता है ..डॉ वेद व्यथित ने लिखा है कि "नारी समपर्ण भाव ही उसके दुःख का कारण बन जाता है जबकि पुरुष इस का भरपूर लाभ उठाना अपना अधिकार मान कर नारी ह्रदय  को अपने मनोरंजन की  वस्तु मान कर उपयोग करता है "
सच है यह बिलकुल औरत के दिल के यही भाव उनकी रचनाओं में सिमट गए हैं ...
मैंने अपनी आप को
शब्दों में ढाल लिया है
खुद को माया जाल
में फांस लिया
देख और समझ
कर भी सच्चाई से
मुहं मोड़ लिया
खुद को जीने के लिए
अस्तित्व की लड़ाई में
दिल पर नश्तर हजार लिए .....मैं और तुम कविता से
बचपन के झरोखे से ...
कच्ची अम्बी
झुकती डाली
डाल पे कूकती
कोयल काली काली
शरारत में
आम तोड़ता
बचपन हमारा .............इस संग्रह में कई रचनाएं उनकी बहुत ही हैरान कर देने वाली हैं ..नए प्रयोग सी ..जैसी कि यह मैं शब्द हूँ ...
शब्द व्यर्थ ,शब्द अनर्थ ,शब्द मौन ,शब्द गूंज ...शब्द ही आत्मविश्वास इस जीवन का ...सही में बहुत ही सच्ची अच्छी रचना है यह ..और भी जिनके नाम मैं ख़ास कर लेना चाहूंगी ...चाय का कप ..भविष्य की रिहर्सल ,हे !गौतमबुद्ध ..आदि उनकी इस संग्रह में उल्लेखनीय रचनाएं हैं ..जिसको पढ़े बिना इस संग्रह के बारे में अधूरा सा था ........
       अंजू जी के इस काव्य संग्रह की समीक्षा बहुत जगह आ चुकी है .बहुत सी रचनाओं का ज़िक्र मैंने इस में कर भी दिया है कुछ आप अन्य जगह भी पढ़ चुके होंगे ...इस लिए इन में छपी रचनाओं के बारे में अधिक बाते न कर के यह बताना जरुरी है कि यह संग्रह पढने लायक है संजोने लायक है .मुझे यह किताब देर से मिली .. इस संग्रह का विमोचन अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला, प्रगति मैदान, नई दिल्ली में हुआ था जा भी नहीं पाई थी ..अब इसको पढ़ कर और अंजू जी से मिल कर इस पर कुछ लिखना अच्छा लगा ..सबसे अधिक इसका आवरण बहुत ही सुन्दर है ..हरे रंग में लिपटा हुआ स्त्री मन को परिभाषित करता हुआ |अपने इस संग्रह के कारण अंजू जी को महात्मा फ़ूले टैलेंट रिसर्च अकादमी द्वारा और  महादेवी वर्मा कवियत्री सम्मान दिया गया है .और भी कोई सम्मान मिले हो तो मैं जान नहीं पायी हूँ ..बहुत बड़ी उपलब्धि है  यह अंजू जी के सफ़र के शुरुआत में ही ..अभी इन्होने कस्तूरी संग्रह का संपादन किया है मुकेश कुमार सिन्हा जी के साथ मिल कर ..वट वृक्ष पत्रिका की सह -संपादिका भी हैं ...बहुत सरल स्वभाव की यह लेखिका अपने लफ़्ज़ों से अपने चमत्कारिक व्यक्तित्व से हर किसी को अपना बना लेने का हुनर जानती है ...अपने लिखे इन शब्दों का अंत ..मैं उन्हीं की लिखी पंक्तियों से करना चाहूंगी ...जिनसे उनके आने वाली ख्वाइश जाहिर होती है
भीतर कहीं बहुत गहरे
छटपटाहट है ..
खुद -को खुद से मुक्त करवाने की
आकाश की कितनी उंचाई
मैंने नापी है
धरती पर कितनी दूरी तक
बाहें पसारी है
एक सुनहरे उजाले के लिए
निरंतर अब आगे बढ़ रही
एक नयी रोशनी के साए में
खुद को एक राह देने के लिए | ..आप इसी उम्दा सोच के साथ अंजू जी आगे बढे और आसमान की उंचाई को छू लें .अमीन !!

9 comments:

Asha Joglekar said...

सुंदर समीक्षा । अंजू जी को बधाई । आपको भी ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी कलाम से अंजु जी का और उनकी पुस्तक का परिचय बहुत बढ़िया लगा ... आभार

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बढ़िया समीक्षा है रंजू.......पढनी होगी ये किताब अब :)

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत अच्छी समीक्षा रंजू जी....
आपका शुक्रिया....
और अंजू जी को अनंत शुभकामनाएं..
सस्नेह
अनु

vandana gupta said...

रंजू जी आपने बहुत ही खूबसूरत समीक्षा की है ।

दिगम्बर नासवा said...

अनु जी की इस खूबसूरत किताब से मिलवाने का आभार ....

Naveen Mani Tripathi said...

bahut hi sundar post anju ji ,,,,,bilkul jevan ke mahtvpoorn tathyo ka steek rekhankan kiya hai ap ne ....abhar.

प्रवीण पाण्डेय said...

अत्यन्त स्तरीय समीक्षा..

Anju (Anu) Chaudhary said...

रंजू जी आपसे मुलाकात तो कभी नहीं भूलूंगी ...और अब ये समीक्षा ...मेरे लिए यादगार हैं
आभार आपका ...इस खूबसूरत समीक्षा के लिए