Monday, September 10, 2012

आवारा ख्याल ४


पूर्वा भाटिया

 भूलभुलैया ............
भटकते हुए रास्ते
और तलाश उस मंजिल की
जो मिल जाये तो
मोक्ष ..
और न मिले तो
कब्र गाह ....

 *******************
पूर्वा भाटिया

भूलभुलैया 
लखनऊ के
एक किले के अन्दर
बनी दीवारों के बीच बनी
उन रास्तों सी हैं
जो खुद में घुमाते हुए
उन बातों का एहसास
करवा देती हैं
कि ज़िन्दगी
की पूरी किताब
बस इन्ही रास्तों सी है
जहाँ कुछ जगमगती है
रोशनी तो
रास्ता मिल जाता है
वरना मिले हुए अंधेरों में
हर रास्ता सिर्फ तन्हा
और भटकता हुआ
ही अंत पाता है ....
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पूर्वा भाटिया

 भूलभुलैया
की मोटी दीवारों के बीच का आवारा ख्याल ..... 


धीमी धीमी सी
आवाजों की सरगोशी
और महज कुछ पल
दूर होने का एहसास
बहुत रूमानी कर देता है
दिल को यह ख्याल ही
कि काश ऐसा कुछ
तेरे मेरे दिल की धडकनों
के बीच में भी
जुडा हुआ होता ?

अवध की इन इमारतों की ख़ास बात यही है कि इन इमारतों में जो पोरेसिटी होती  है उसी के चलते दीवारों के कान होते है वाला मुहावरा भी मशहूर हुआ और भूल  भुलैया में दीवार के एक छोर पर कोई कागज फाड़े तो तो दूसरे छोर पर आवाज  सुनी जा सकती है इसकी दीवारों के बीच छुपे हुए लम्‍बे  गलियारे हैं, जो लगभग 20 फीट मोटी हैं। यह घनी, गहरी रचना भूलभुलैया कहलाती  है और इसमें केवल तभी जाना चाहिए जब आपका दिल मज़बूत हो। इसमें 1000 से  अधिक छोटे छोटे रास्‍तों का जाल है जिनमें से कुछ के सिरे बंद हैं और कुछ  प्रपाती बूंदों में समाप्‍त होते हैं, जबकि कुछ अन्‍य प्रवेश या बाहर  निकलने के बिन्‍दुओं पर समाप्‍त होते हैं। , यदि आप इस भूलभुलैया में खोए बिना वापस  आना चाहते हैं तो गाइड साथ रखे ..हम खो गए थे ...गाइड ने हमें ढूंढा:)।जानकारी गूगल और गाइड के माध्यम से ..फोटोज पूर्वा भाटिया .और आवारा ख्याल मेरे बावरे मन की उड़ान के माध्यम से :)
आवारा ख्याल ३

16 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरती से उकेरे खयाल ....

भूलभुलैया सिखाती है हमेशा ऊपर चढ़ना ,कदम हमेशा ऊपर जाने की सीढ़ी पर बढ़ाओ तो कभी नहीं गुम होगे ....36 साल पहले जब बड़ा इमामबाड़ा देखा था यह बात हमें वहाँ के एक गाइड ने ही बताई थी ....ऊपर चढ़ते हुये आखिर में छत पर पहुँच जाएँगे और वहाँ से सीधे सीढ़ी नीचे बाहर निकलने की मिल जाएगी :):)

Saumya said...

bhoolbhulaiya si ye zindagi bhi to hai...good one :)

दिगम्बर नासवा said...

वैसे दोनों के बाद क्या जीवन है ... ये भी तो रहस्य ही है आज तक ... मोक्ष या कब्रगाह ... आगे ..?

ashish said...

अच्छा हुआ आप मिल गई नहीं तो इतनी सुन्दर कविता भूलभुलैय्या में गुम हो गई होती . पूर्वा की फोटोग्राफी और आपकी कविता दोनों ही बहुत सुन्दर.

vandana gupta said...

ये तो सुना है भूलभुलैया से बाहर आना आसान नही होता किसी जानकार के बिना …………आज आपने तो बता ही दिया :) खुद पर परख कर ।

Maheshwari kaneri said...

सुन्दर भाव पूर्ण रचना..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मिलकर भी बिछुड जाना,ये जीवन का पहिया है
रास्ता तन्हा रह जाता,जीवन की भूल भुलैया है,,,,,,

खूबशूरत प्रस्तुति के लिये,,,,बधाई रंजना जी,,,

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सदा said...

मन को छूते शब्‍दों का संगम ...

Sanju said...

nice presentation....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.

संजय भास्‍कर said...

सुंदर रचना और सुंदर शीर्षक :-)

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत बढ़िया....
रचनाओं की जुगलबंदी फोटो के साथ...
सुन्दर!!!

सस्नेह
अनु

प्रवीण पाण्डेय said...

भूलभुलैया, बढ़ते जाना,
मोड़ बड़े हैं, प्रश्न खड़े हैं।

Udan Tashtari said...

मेरे बावरे मन की उड़ान ...ये उड़ान भी खूब रही...वाह!

hindugoonj said...

http://jhindu.blogspot.in/2012/07/blog-post.html

वन्दना अवस्थी दुबे said...

अच्छा लग रहा है तुम्हारे साथ फिर से भूल-भुलैया में घूमना....

Anju (Anu) Chaudhary said...

खूबसूरती से लिखी गई कविता और आपके विचार ...सादर