Saturday, September 22, 2012

हम है मीर


हम है मीर (हाइकु -संग्रह)
मधु चुतर्वेदी
मूल्य- रु ९९
प्रकाशक- हिंद युग्म,
1, जिया सराय,
हौज़ खास, नई दिल्ली-110016
(मोबाइल: 9873734046)
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सत्रह वर्ण
भरते हाइकु में
अर्थ का स्वर्ण

मधु जी द्वारा रचित यह हाइकु के बारे में लिखा उनके हाइकु संग्रह के बारे में खुद ही बात करने लगता है
मधु जी के संग्रह के बारे में लिखते हुए कुछ जानकारी इस विषय की भी ले लेते हैं .हालाँकि हिंदी साहित्य से अब यह अपरिचित नहीं रह गयी है ..फिर भी कई लिखने वाले पूरी तरह से इस विधा से परिचित नहीं है ..
हाइकु हिंदी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में 'हाइकु' नवीन  विधा है। हाइकु मूलत: जापानी साहित्य की प्रमुख विधा है। आज हिंदी साहित्य में हाइकु की भरपूर चर्चा हो रही है। हिंदी में हाइकु खूब लिखे जा रहे हैं और अनेक पत्र-पत्रिकाएँ इनका प्रकाशन कर रहे हैं। निरंतर हाइकु संग्रह प्रकाशित हो रहे हैं। यदि यह कहा जाए कि वर्तमान की सबसे चर्चित विधा के रूप में हाइकु स्थान लेता जा रहा है तो अत्युक्ति न होगी। जापानी हाइकु कवि बाशो ने कहा है, "जिसने जीवन में तीन से पाँच हाइकु रच डाले, वह हाइकु कवि है। जिसने दस हाइकु की रचना कर डाली, वह महाकवि है।"हाइकु कविता आज विश्व की अनेक भाषाओं में लिखी जा रही हैं तथा चर्चित हो रही हैं।  हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।  हाइकु के लिए हिंदी बहुत ही उपयुक्त भाषा है।थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कहना आसान नहीं है। हाइकु लिखने के लिए बहुत धैर्य की आवश्यकता है।हाइकु काव्य का प्रिय विषय प्रकृति रहा है। हाइकु प्रकृति को माध्यम बनाकर मनुष्य की भावनाओं को प्रकट करता है। हिंदी में इस प्रकार के हाइकु लिखे जा रहे हैं। हाइकु विधा दिखने में जितनी सरल है उतनी ही लिखने में मुश्किल एक दम से आये विचार को को सत्रह वर्णों में लिख देने की कला कम नहीं होती है .और इस मुश्किल काम को मधु जी ने अपने हाइकु संग्रह हम हैं मीर में बखूबी कर दिखाया है ...
             'हम है मीर'  पुस्तक का लोकार्पण हिंदी के मशहूर  कवि एवं कविता-मंच के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. कुँअर बेचैन ने किया। इस पुस्तक का प्रकाशन हिंद युग्म ने किया है। इस हाइकु-संग्रह में कवयित्री डॉ. मधु चतुर्वेदी के 501 हाइकु संकलित हैं।और सभी बहुत ही मनमोहक है ..खुद मधु जी के शब्दों में "मैंने हाइकु में तुकान्त दे कर अपनी काव्य संस्कृति परम्परा को वाशो के साथ जोड़ने का प्रयास किया है वाशो और कबीर की आत्मा को एकमेक करने की अपनी परिकल्पना को एक साथ साकार करने का प्रयास है  मुझे विश्वास है कि दोनों हो महाकवियों की आत्माएं मुझे इस के लिए आशीष देंगी|"
हाइकु मूलरूप से प्रकृति की कविता हॅ। एक अच्छे हाइकु में ऋतुसूचक शब्द आना चाहिए। लेकिन सदा ऐसा हो, यह जरूरी नही। हाइकु, प्रकृति तथा प्राणिमात्र के प्रति प्रेम का भाव मन में जगाता है। अत: मानव की अन्त: प्रकॄति भी इसका विषय हो सकती है हिन्दी में हाइकु लिखने की दिशा में बहुत तेजी आई है।  मधु जी ने भी अनेक ऐसे हाइकु लिखे हैं जो प्रकृति से जुड़े हुए हैं
यह गोल चंदा
रात की हथेली पे
चांदी का सिक्का

और यह खूबसूरत चित्रण

फुला गुलमोहर
सांझ पर ज्यों
उतरी दोपहर
हाइकु में अब समाज में जो भी कुछ हो रहा है उस पर भी लिखा जा रहा है |मधु जी के हाइकु भी आज के समाज के प्रतिबिम्ब है
तोड़ दे मौन
कोई छांट दे कोहरा
वो कोई कौन ?
समाज है तो राजनीति भी है  उस पर भी मधु जी कलम खूब चली है
ये गणतंत्र
गणना पर टिका
संख्या का तंत्र
आज की भारतीय राजीनति पर भी खूब कहा है मधु जी ने
ओ धर्मराज
क्या दुष्कर्मियों को ही
मिलेगा ताज
मधु जी दर्शनशास्त्र से भी जुडी हुई है ..उसका प्रभाव भी उनके हाइकु लिखने में आया है
मन के तार
ही सुख या दुःख के
होते आधार
और जन्म मृत्यु के लिए बहुत सही कहा है उन्होंने
आत्मा अमर
फिर क्यों सताता है
मृत्यु का डर
मधु जी ने गीत दोहा कविता गजले सभी अपमी कलम से उतारी हैं और वह प्रेम की  कवियत्री भी मानी जाती है |जब सब विधा में उनकी कलम से यह प्रेम गीत गाया है तो यहाँ कैसे वह इस हाइकु विधा में चुक सकती है
प्रिय की गली
ऊँची नीची टेढ़ी भी
लगती भली
प्रेम का रास्ता बहुत ही अनूठा है उस में प्रेम ही मुख्य रहता है इस बात को उन्होंने बहुत सुन्दर ढंग से कहा है
ओ मनमीत
हम दोनों ही हारे
जीती है प्रीत
सबसे अच्छा हाइकु मुझे इस में उनका रति प्रेम पर लगा
चांदनी रात
बहकते जज्बात
प्रेम उत्पात ...
कम शब्दों में कह दी सारी बात ...बहुत ही मनमोहक है यह विधा जो आसानी से अपनी बात यूँ कह जाती है
पी मकरंद
भंवरे ने सुनाया
तृप्ति का छंद
इसी में उनका ढाई आखर खंड भी है जो बहुत बहुत सुन्दर है उसका हर हाइकु बहुत ही बेहतरीन लिखा गया है
ढाई आखर
राधा के मन ,गए
संतोष भर
मधु जी ने इस हाइकु संग्रह को कई खंडो में बांटा है और हर खंड का नाम भी हाइकु विधा में है
नभ को फांद,
नीम की डाली पर
अटका चाँद     .............इस में कुदरत और पर्यावरण पर लिखा बेहद रोचक है ...                       

दीपक तले
युगों से निरंतर
अँधेरा पले............................इस में मुहावरे और लोकोक्ति को सुन्दर नए ढंग से हाइकु में पिरोया गया है
ढाई आखर
पढ़े सुने प्रेम के
ज्ञानी  हो नर ..ढाई आखर है तो वह प्रेम से ही पगे हुए होंगे ..जो दिल को मोह लेते हैं ..
आदि हर खंड अपनी बात बहुत अच्छे से पाठक तक पहुंचा देता है |परिवार से जुड़े हाइकु भी सही में रिश्ते को पूरे परिभाषित कर देते हैं ..माँ की दुआ /जो था असंभव/संभव हुआ .....और दादी के प्यार के तो क्या कहने ...दादी का प्यार /मूल से भी अधिक /ब्याज का भार ...बेटियाँ तो जान होती है किसी भी रिश्ते की किसी भी परिवार की ...बेटी का प्यार /आँगन में झरता /हरसिंगार
 मधु जी ने इस के अलावा कई मुहावरों और लोकोक्ति पर भी हाइकु रच दिए हैं
..आँख के अंधे /नाम नयन सुख /गोरखधंधे ........अँधा जो बांटे /रेवड़ी ,फिर फिर /अपने छांटे..कौन बचाए ..यह एक नया प्रयोग है जो बहुत अच्छा लगा पढने में ....उनके इस संग्रह में हाइकु के अलावा डमरू भी संकलित किये गए हैं हाइकु में जैसे पांच सात पांच अक्षर होते हैं डमरू के पहली और तीसरी में सात सात और दूसरी में पांच अक्षर होते हैं ..जैसे छज्जे पर कबूतर /गूंजता घर / गुटर गूं गुटर /
मधु जी के कुछ हाइकु तुकांत में भी हैं ...आँखों का जल /उमड़ा छल छल /बहा काजल ......अलंका
रों का सुन्दर प्रयोग किया गया है यमक अलंकार जिस में प्रमुख है ..जिस से नए नए अर्थ निकल कर आते हैं ...प्यासी धरती /दरकी ,कब तक /धेर्य धरती ..इस में धरती के मायने अलग अलग हैं ...
उनके पहले पन्ने पर डॉ कुअंर बैचेन ने बहुत ही अच्छा लिखा है मधु जी के इस हाइकु संग्रह के बारे में ऊँचे दर्जे के आई क्यू वाले हाइकु का गुलदस्ता है यह संग्रह .जिस में भाषा ,बिम्ब .प्रतीक ,समाज राजनीति आदि सब एक सात दिखाई देते हैं ..इसको पढ़ कर पढने वाला वाह किये बिना नहीं रह सकता है ...वहीँ डॉ राहुल अवस्थी जी ने कहा है कि अलग विषयों पर उनके लिखे यह हाइकु उनकी लेखनी की सफलता है ..और यदि ऐसे ही कुछ साहित्यकार हाइकु लिखने वाले हिंदी साहित्य को मिलते रहे तो बल्ले बल्ले है इस विधा की ...वहीँ मधु जी जो पहले हाइकु विधा से अधिक परिचित नहीं थी डॉ कुंवर बैचेन का हाइकु संग्रह पर्स पर तितली पढने के बाद हाइकु लिखने से जुड़ गयी ..और नतीजा यह संग्रह हमारे सामने हैं
मैं भी अभी इस विधा से पूर्ण रूप से लिख नहीं पायी हूँ ..पर इस संग्रह को पढने के बाद बहुत कुछ सीखा है मैंने इस संग्रह से ..और बहुत मजेदार कक्षा की तरह लगे मुझे इसके पाठ पढने और सीखने में ....यदि आप भी इस विधा को सही से समझना लिखना पढ़ना चाहते हैं तो इस संग्रह को पढना न भूलें ..और अंत में कुछ मधु जी के हाइकु जिन से मैं बहुत प्रभावित हुई ..
ये पेट की अगन
कूड़े से चिंदी
बीनता बचपन
सारा विष पी लिया
प्रदूषण का
नदी को है पीलिया
होंठ क्या खुले
कजरारी आँखों में
सपने धुले ...अदभुत संग्रह अदभुत विधा और अदभुत मधु जी लिखने वाली ..      

14 comments:

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर समीक्षा

सदा said...

आपकी कलम से एक और उत्‍कृष्‍ट समीक्षा बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ..आभार

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

'हम है मीर' पुस्तक की बेहतरीन समीक्षा,,,,
मधु चुतर्वेदी जी से परिचय कराने के लिये आभार,,,,

RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का

प्रवीण पाण्डेय said...

हाईकू ने अभिव्यक्ति को एक नया रूप दिया है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!

Prem Farukhabadi said...

saraahneey sameeksha. aisi sameeksha kisi ke vyaktitv mein nikhaar laati hai. Badhai!!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह जी आपने तो बहुत अच्‍छी समीक्षा कर दी

निवेदिता श्रीवास्तव said...

संतुलित और अच्छी समीक्षा .....

Arvind Mishra said...

समीक्षा अच्छी है और इस कृति से साझा कराने को आभार!

दिगम्बर नासवा said...

जबरदस्त .... बहुत ही प्रभावी हैं ये हाइकू ...
और आपने अब समीक्षा में महारत हांसिल कर ली है ... बहुत खूब ...

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

सुंदर व सार्थक समीक्षा !
~सादर!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

बहुत ही सुंदर समीक्षा,वाह !!

virendra sharma said...

जितना सुन्दर संग्रह उतनी ही कसावदार अहज़ भोली सी समीक्षा .सत्रह वर्ण का बंद /बंदिश कहलाती है हाइकु .

ram ram bhai
रविवार, 23 सितम्बर 2012
ब्लॉग जगत में शब्द कृपणता ठीक नहीं मेरे भैया ,

http://veerubhai1947.blogspot.com/

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

so very deep thought...!!