रेत के समन्दर सी है यह ज़िन्दगी
तूफ़ां अगर आ जाए बिखर जाए ज़िन्दगी।
अश्रु के झरने ने समन्दर बना दिया
सागर किनारे प्यासी ही रह जाए जाए
यह पंक्तियाँ है डॉ रमा दिवेद्दी जी की ..रेत का समंदर ...उनका दूसरा काव्य संग्रह है ...रेत के के समान छोटे छोटे लफ़्ज़ों से बड़ी बात कहता हुआ समन्दर सा विस्तृत . जिस में हिंदी काव्यधारा की हर विधा शामिल है...... माया श्रृंखला ,मुक्तक ,छंद मुक्त कवितायें ,क्षणिकाएं और हाइकु इस में हैं ...उन्होंने अपनी कविताओं में जीवन के अनदेखे ,अनजाने और अनचीन्हे सत्य को दिखाने की कोशिश की है ..
न हो जहाँ बैर भाव ऐसी प्रीत पायें सब
दिल में खिले गुलाब ऐसी प्रीत पा जाएँ
रमा जी ने हर विषय पर गीत लिखे हैं ..नए साल पर प्यार के ढाई आखर पर मानव कल्याण पर ..
नए साल के स्वागत पर लिखती हुई वह कहतीं हैं ...
झूमता हुआ नया साल फिर से आया
एक वर्ष भी बीत गया ,नया वर्ष फिर आया है
कितना खोया ,कितना पाया ?गणित नहीं लग पाया है ..
इस में साथ साथ बीतती ऋतुओं का भी जिक्र है ..
गोरी हुई दीवानी है
पनघट को जानी मानी है
गगरी भरी छलकाई झूम झूम के
आया बंसत झूम के आया बसंत ..बसंत है तो गर्मी का भी ज़िक्र बखूबी है ...
तन जलता
मन बहुत मचलता
दिन निकले कैसे
शुष्क नदी में
मीन तडपती
बिन पानी जैसे
ताल तलैया सब सूख गये हैं
पोखर सब सिमटे ..
गर्मी ऋतू वाकई इस तरह से ही तपा देती है .....तपा तो प्रेम भी देता है और उसी के हर रूप को रमा जी ने बखूबी अपने लफ़्ज़ों में उतारा है .........कि प्यार में जो तपने का मिटने का जो होंसला नहीं रखते वे खुदा से भी प्यार नहीं कर सकते हैं ..
इश्क में मिट जाने का गर इल्म नहीं आया ,
खुदा से ऐसे लोग प्यार नहीं करते
प्यार है तो दर्द का नाम भी साथ ही है ....और शिकायत भी ज़िन्दगी से
चाही नहीं थी दौलत
चाहे न हीरे -मोती
इक यार की तमन्ना
ख्वाइश यही थी दिल की
न मिल सका वस्ल ऐ यार कोई
ज़िन्दगी बस यही शिकायत है मुझे तुझसे
इस संग्रह में माया श्रंखला भी है ...जो दुनिया में घटने वाली आज और कल को जोड़ कर किसी और ही माया की दुनिया में ले जाती है यहाँ महाभारत के साथ जोड़ कर आज के समय के साथ भी इसको जोड़ना बहुत ही सही लगता है
अश्रु भी बिक जाते हैं /माया के दरबार में
चीखो का कितना मूल्य हैं ?साँसों के व्यापार में
इस के अलावा इन्होने क्षणिकाएं बहुत सुन्दर लिखी है मृत्यु पर आज के समाज की एक सच्चाई सामने लायी है ..
ऐसे भी लोग देखें हैं ,हमने
गए थे मातम को बांटने ,
घंटी बजाई ,दरवाज़ा खुला
देखा ....
सामने वाले टी वी देखने में व्यस्त है |
आज का समाज वाकई बहुत तेजी से बदल रहा है ..वह रमा जी के लिखे में बहुत खूबसूरती से उभर कर आया है |
इस के आलावा इस संग्रह में एक हाइकु का पन्ना भी है ..जिस में भी सच्ची बात है जीवन की ..
आधुनिकता
नीलामी
संबंधों की
खुली दुकान ..
और पढ़िए ..एक सच ..
सभ्य इंसान
असभ्य हरकतें
युग का सच
रमा जी की लेखनी में बहुत दम है ,हर बात को उन्होंने बहुत ही सुन्दर ढंग से कहा है |हालंकि यह नहीं कह सकते कि कोई कमी नहीं है ..राकेश खंडेलवाल ने उनके लिए लिखते हुए कहा है कि ...उनकी गजलों में विद्दतजनों को बहर,रदीफ़ ,और काफिये में भले ही कमी दिखाई दे .परन्तु उनके लिखने की भावनाओं में कमी नहीं है ."सही बात है यह ..|रमा जी से मैं मिली हूँ और उनके मिलने में ही एक सकारात्मक उर्जा महसूस होती है वही उनके इस संग्रह को पढ़ कर हुई ...वह निरंतर आगे बढे और उनकी कलम से हम नित्य नयी बात पढ़ सके इसी दुआ के साथ उन्हें बहुत बहुत शुभकामनाएं ..
9 comments:
बहुत सुंदर समीक्षा है
बहुत बढ़िया...
सुन्दर एवं निष्पक्ष समीक्षा के लिए आपको बधाई रंजना जी.
रमा जी को शुभकामनाएं एवं बधाई.
अनु
रेत का समन्दर (कविता-संग्रह)की सार्थक समीक्षा,,,,,
RECENT POST -मेरे सपनो का भारत
बहुत ही सशक्त एवं उत्कृष्ट समीक्षा ... रमा जी को बधाई आपका आभार इस प्रस्तुति के लिए
बढिया समीक्षा
बहुत सुंदर समीक्षा है
सुन्दर समीक्षा, हमारी भी शुभकामनायें।
bahut hee badhiyaa!!
बहुत सुंदर समीक्षा है..
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