मूल्य- रु २००
प्रकाशक- हिंद युग्म,
1, जिया सराय,
हौज़ खास, नई दिल्ली-110016
(मोबाइल: 9873734046)
फ्लिप्कार्ट पर खरीदने का लिंक
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सपने जो उतरते हैं जागती आँखों में ..वह सपने अक्सर बुलंदियों को छू लेते हैं ...सपने श्याम श्वेत ..सपने रंग बिरंगे ..सपने सच्चे झूठे ,सपने अपनी बात कहते अपने अर्थ बुनते ..बस आँखों में समाये रहते हैं और एक नदी की तरह ज़िन्दगी को बहाव देते रहते हैं ..थमना इनका काम नहीं ..थम गए तो यह ज़िन्दगी भी थम जायेगी ...तसव्वुर ही तो है ..जो हमारे हर ख्याल को एक मुकाम दे जाता है ..और अपनी ही दुनिया में बसा लेता है ..निशा महाराणा जी का काव्यसंग्रह ...जागती आँखों के सपने एक ऐसे ही तसव्वुर से निकले ख्याल है जो उन्होंने बुने .समेटे और इस में कई रंगों में कई अर्थों में खिला दिए अपने लफ़्ज़ों से ..अपनी लिखी भावनाओं से और वह पढने वाले के साथ चलते गए एक नया सपना ....
निशा जी ने यह सपना तब देखना शुरू किया जब वह एक छोटी सी लड़की थी और वह सपने डायरी के पन्नो में कैद होते गए .लड़की अपनी सब जिम्मेवारियों को निभाती आगे बढती गयी और सपने फिर पूरे हुए एक ऐसी सुबह के शब्दों मेंकल्पना के रथ पर सवार /
उम्मीदों के बादलों के पार /
एक मंजिल मिल जाएगी /
वो सुबह कभी तो आयेगी ..और वह सुबह जागती आँखों से उनके सामने आ गया .
सपना ही तो है जो बिना टिकट के कभी हंसाता ,कभी रुलाता है ..यही भाव नजर आते हैं .उनकी लिखी रचना मेरा सपना में ..
आज क्या होने वाला है
सही सही बतलाता
कल क्या होने वाला है
उसको भी नहीं छिपाता
कोई बता सकता है ?
और सपनो को जब पर लगे तो वह तितली सा उड़ने लगता है और उसकी पंख और उसकी चाल मतवाली को देख कर मन गा उठता है
तू मेरी बन जा आली
थोडा थोडा रंग बचा कर
मुझको तू दे जाना
और कभी तितली अपने अतीत में चली जाती है और कहती है
फिर क्यों ?फिर क्यों ?
बेटियाँ पराई होती है ?
पर जीवन का यही सत्य है
तितली रानी इसे जानती है
नए बागों को नए घरों को संवारना जानती है .....और वही तितली बेटी की विदाई बेला में दुआ देती है
याद न आये तुमको मेरी
प्यार मिले तुझको इतना
जितना सागर में जल है
जितना सूरज में दम है
और घर कैसा हो वह यह बताना भी नहीं भूलती .
छोटा सा इक घर हो
प्यारा सा परिवार
परम आनंद की ज्योति हो
न हो वहां आग
प्यार सिर्फ प्यार का
जलता रहे चिराग
बेटी तो पराई हो गयी ...पर माँ का इन्तजार अब शुरू हो जाता है ...उसके आने को देखने को आँखे तरसने लगती है ..अजीब है माँ भी खुद ही बेटी को दूसरे घर भेजने की जल्दी और खुद ही फिर उदास ...पर अब बेटी तो अब दूसरे घर की है जो कहती है ..
इन्तजार मत करना वरना
शोकमय हो जाऊँगी
काम ख़त्म होते ही माँ
मैं तुमसे मिलने आऊँगी..
बेटी भी कहाँ भूल पाती उसको भी गुजरा ज़माना याद आता है और दिल में कसक भर जाती है
थोड़ी सी चाहत है
जैसा सुख पाया मैंने
वो मेरे बच्चो को मिले
जिस से उनका बचपन भी
फूल बन कर खिले |
निशा जी के जागती आँखों में सपनो के रंग अनगिनित है ..इस में देश की बात भी है स्वराज बनाम रामराज्य .देशप्रेम आदि जैसी रचनाओं के द्वारा ..और रिश्तो का संसार ,बाबूजी ,हम दोस्त बने जैसे अनूठे रंग भी है ..आखिर में मैंने देखा है तो जैसे उन्होंने जीवन के सब रंग बिखेर दिए हैं ..दुःख सुख की बात गिरगिट की तरह रंग बदलने की बात..महुए के चुपचाप टपकने की बात आदि देखने की बात वाकई देख के पढ़ के दिल को असली रंग से परिचित करवा ही देती है ..
संग्रह अच्छा है ..शीर्षक बहुत ही आकर्षित करता है | जिन कविताओं से आपका परिचय करवाया वह इस में सबसे अच्छी रचनाये मानी जा सकती है ..बाकी कुछ रचनाएं बहुत गंभीर और बोझिल सी हैं ...जो अपनी बात कहती तो है पर समझा नहीं पाती है इस लिए अक्सर ताल मेल टूट सा जाता है ...और रचना वहीँ अधूरी सी रह जाती है .कहीं कहीं किसी रचना में बहुत साधारण सी बात को ही बहुत विस्तार दिया गया है जो बहुत अधिक रोचक नहीं लगा है ...फिर भी यह जागती आँखों के सपने हैं ..जो दिल को आपके कुछ क्षण तो खो देते हैं अपने ही रंग में आखिरी लिखी इस कविता के साथ ...
यह है मेरे सपने
नहीं है मकडजाल
सफलता के फल लगेंगे
इन्द्रधनुषी रंग बिखरेंगे
यथार्थ का ये सपना बोया
न है कोरी कल्पना
जरुर पूरे होंगे ,मेरी
जागती आँखों के सपना ...............
11 comments:
बहुत ही अच्छी समीक्षा ... निशा जी को बहुत-बहुत बधाई ... आपका आभार
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
निशा जी को बहुत-बहुत बधाई
आपने बहुत ही अच्छी समीक्षा की है बहुत-बहुत आभार
सुन्दर समीक्षा, सपने पूरे हों..
आई थी आपकी कवितायेँ लेने ...यहाँ देखी एक और समीक्षा .....:))
बहुत ही कठिन काम है ये ....
बधाई कवयित्री को ....!!
(हाँ शीर्ष ठीक कर लें )
कवियत्री डॉ निशा महाराणा की जागती आँखों का सपना-अच्छी सारगर्भित समीक्षा !लेखिका प्रकाशक और कृति -समीक्षाकार सभी प्रशंसा के पात्र हैं!
जागती आँखों के ये सपने और आपकी समीक्षा लाजवाब हैं दोनों ... बधाई हो निशा जी को ...
निशा दी को बधाई और आपको भी इस समीक्षा के लिये ।
खूबसूरत प्रस्तुति
आज दिन भर भटकते रहे इस ब्लॉग में ... चलते चलते डेड एंड तक पहुंचे ... लौटने को हुए तो चन्द्रकान्ता का तिलिस्म टूट गया ...
और जासूसी दुनिया के विनोद , कासिम मिलते रहे ...
कुछ दूसरों का पीछे छूटता रहा ... एक चेहरा मुस्कुराता सा आगे बढ़ने लगा ... मुजद्दिद नियाजी ...आवाज़ की दुल्हन ... सलाम मछ्ली शहरी और ... जाने किसकी जिंदगी का नगमा ए बेताब हूँ ... और मेहदी हसन , तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये ... कब लौटेंगी साहब ...
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