Friday, July 27, 2012

अर्पिता .....पुस्तक समीक्षा

अर्पिता (कविता-संग्रह)
कवयित्री- सीमा सदा
मूल्य- रु 200
प्रकाशक- हिंद युग्म,
1, जिया सराय,
हौज़ खास, नई दिल्ली-110016
(मोबाइल: 9873734046)
फ्लिकार्ट पर खरीदने का लिंक
अर्पिता .....

सीमा सिंघल जी का यह काव्य संग्रह मुझे पुस्तक मेले में शैलेश भारतवासी द्वारा मिला ...तब से अब तक मैंने इस काव्य पर समीक्षा करने लिए खुद को कई बार तैयार किया ..पर यह काव्य संग्रह ऐसा काव्य संग्रह नहीं है कि एक बार में पूरा पढ़ कर इस पर कुछ लिख दिया जाए ...इस में लिखी हर रचना अपने में आत्मस्त कर लेती है और धीरे धीरे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है ...सीमा जी का लिखा हुआ सबसे पहले मैंने उनके ब्लॉग लाडली में पढा उस ब्लॉग पर उनकी लिखी पंक्तियाँ "मन को छू लेते हैं अक्‍सर वो पल, जब कोई नन्‍हीं कली आपके जीवन, में लाती है खुशियां अनगिनत .. आंगन में बहारें होती हैं हर तरफ बस एक रागिनी होती है जो मन को भावविभोर कर देती है बिटिया जीवन को .."उनका बेटियों के प्रति संवेदनाओं को दर्शा दिया ...और फिर तब से उनके लिखे को लगातार पढने का सिलसिला चल पढ़ा .और जब उनका यह प्रथम काव्य संग्रह हाथ में आया तो दिल को बहुत ही ख़ुशी हुई ..शायद उतनी ही जितनी खुद सीमा जी को यह अपने हाथ में पहली बार लेते हुए हुई होगी ..क्यों कि  मेरा मानना है की   ज़िन्दगी की हर पहली बात बहुत ही ख़ास और बहुत ही प्रिय होती है ..और खुद के  लेखन का पहला संग्रह तो प्रथम शिशु की ही तरह मासूम होता है ..जो आगे लिखने के साथ साथ निरंतर और भी परिपक्व होता जाता है ।
          
        सीमा जी अपने ब्लॉग  को सदा के नाम से लिखती है ...और लिखी रचनाये मुझे इनके नाम की तरह सहज और सदाबहार सी लगी ..अब आते हैं अर्पिता इनके काव्य संग्रह पर ..सीमा जी की लिखी हुई रचनाये अधिकतर छंद मुक्त हैं जिस में ज़िन्दगी से जुडी सच्चाई से जुडी बातें हैं जो आम ज़िन्दगी में सहज घटती है और उतनी ही सादगी से यह इस में ब्यान है ....पहली ही रचना .फिर से जी लूँगी ..में सीमा जी ने सहजता से बेटी के रूप में खुद के बचपन को फिर से जी लेने की बात बहुत ही सहजता से लिख दी है जिस में अपने बचपन को ढंग से न जी पाने की शिकायत भी आ गयी है
मैं अपना बचपन
फिर से जी लूँगी
तू आ जायेगी तो
मिल जायेंगे सारे झगड़े

...पढ़ते पढ़ते पाठक खुद भी इसी बात से खुद को जुडा हुआ पाता है ...

            सीमा जी के इस काव्य संग्रह को मैंने पढ़ते हुए चार हिस्सों में बँटा हुआ पाया ..पहला हिस्से इस पुस्तक संग्रह में माँ के प्रति समर्पित लगा ..बहुत ही भावपूर्ण तरीके से इन्होने माँ से जुड़े रिश्ते को हर तरीके से व्यक्त किया है
माँ लगता है ईश्वर ने
दुआओं की पोटली
तुम्हारे साथ भेजी है
जिसको तुम
सिर्फ अपने
बच्चो के लिए ही

खोल सकती हो ..

माँ से जुडी हर कविता बहुत ही भावुक कर देती है और हर शब्द यही कहता प्रतीत होता है माँ कैसे तुम्हे एक शब्द मान लूँ/दुनिया हो मेरी पूरी तुम ....माँ से जुडी हर अभिव्यक्ति हर पढने वाले पाठक को अपनी ही बात कहती हुई लगती है ।
             सीमा जी के इस काव्य संग्रह में दूसरा हिस्सा यादों से जुडा हुआ है ....याद पर लिखी इनकी लिखी इस काव्य संग्रह में श्रृंखला वाकई यादों की बस्ती में ले जाती है ...यादों के रंग में डूब जाता है ...यादे मन से जुडी रहती हैं /मन इनसे जुडा रहता है /हर ख्याल से जुडी होती है एक याद ..कभी बचपन /कभी जवानी .अपनों और बेगानों की ..सच ही तो है .यह यादें ही हमें ज़िन्दगी में खट्टे मीठे अनुभव कराती रहती है ...याद इक न रुकने वाला सिलसिला जिस पर किसी का जोर नहीं चलता है ....यादें जो गुमसुम भी कर देती है .आँखों में आंसू भी भर देती है और कभी खिलखिलाने मुस्कराने पर विवश कर देती है ....पर कहीं कहीं यह यादें बोझिल सी भी प्रतीत होने लगती है और विचारों में एक रुकावट सी बनाने लगती है ।
                 इस काव्य संग्रह के तीसरे हिस्से के रूप में मैं इसको सामाजिक चेतना ,देशभक्ति से जुडा हुआ पाती हूँ ..एक कवियत्री होने के नाते वह इस विषय से अछूती रह भी कैसे सकती है ...इस विषय पर उनकी कलम बहुत सशक्त हो कर चली है "दो बूंद "कविता इसका बहुत सुन्दर उदाहरण है .....  रिश्तों के रंग न बढ़ते हैं / न घटते हैं /वो तो उतना ही उभरते हैं .जितना हम अपनी मोहब्बत का रंग उन में भरते हैं ......आज के समय की यह बहुत बड़ी सच्चाई है ...जो उनकी लिखी इस तरह की रचनाओं में उभर कर आई है ....और देशभक्ति से जुडी उनकी गजल पढ़ते ही दिल में एक उमंग का संचार हो जाता है ..न ये तेरे न मेरा है भारत हर हिन्दुस्तानी का/रंग रंग के खिलते फूल जहाँ ये है वो चमन

                इस के चौथे हिस्से को गजल और कुछ दिल से जुडी भावनाओं से जुडा पाते हैं ....जवाब देने तक ...तेरी शिकायत ..कैसा है यह प्यार ..और मेरा नाम मत लिखना ने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया ...हथेली पर तुम मेरा नाम मत लिखना /कोई पढ़ न ले /बंद कर लोगी मुट्ठी को सबसे छिपाओगी ..बहुत ही मासूम और सादगी से भरी पंक्तियाँ है जो अनायास ही पढ़ते ही एक मुस्कान भी चेहरे पर ला देती है ..
गजल वाला भाग इस काव्य संग्रह का सबसे अहम् हिस्सा है ..जहाँ एक से बढ़ कर एक शेर अपनी बात अपने ही अंदाज़ में कहते हैं ..टूटना शुभ होता है कांच का ...बेहतरीन गजल कही जा सकती है इस संग्रह में सीमा जी की .बाकी गजले में अपने आप में मुकम्मल है ...जो अपनी सरलता से पाठक के दिल में घर कर लेती है ...चंद रोज़ का मुसाफिर है हर आदमी यहाँ /जिसने जो दिया उसको वही तो मिला है ....हर पढने वाला इस तरह के लिखे से खुद को जोड़ लेता है ..अमृता प्रीतम जी पर लिखी अमृत की बूंदों सी ..इमरोज़ की यादों में समाई अमृता की सही तस्वीर को ब्यान करती है ..और तेरे ख्यालों में सदा देते रहे दस्तक वारिस शाह /किसी के ख़्वाबों में अमृता तू भी तो आई होगी ..ने तो मुझे इस में अपने होने का एहसास करवा दिया ..
           बस इस संग्रह में जो एक बात खली वह यह कि कविताओं को यदि गजल और यादों के हिस्से की तरह माँ और बाकी कविताओं को भी कुछ अलग से स्थान दिय होता तो पढ़ते पढ़ते जो एक गति थम जाती है वह न थमती ..जैसे हम उनकी एक रचना "ख्यालो में घर कर गए" पढ़ के उस में डूब ही रहे होते हैं तो अगली रचना फिर से माँ पर आ जाती है फिर उस से अगली "कैसा है यह प्यार ."..यह पढने में कहीं अटका सी देती है ...यह मेरा ख्याल हो सकता है .बाकी हो सकता है कि किसी अन्य पाठक को पढ़ते हुए न लगे ....सीमा जी का यह प्रथम काव्य संग्रह अभी उनके लिखे की प्रथम सीढ़ी है ..जो निरंतर आगे बढ़ने की और अग्रसर है | जैसे जैसे उनका लेखन आगे बढेगा वैसे वैसे इस में और भी निखार देखने को मिलेगा ...वैसे भी हर किसी का लेखन उसकी अपनी भावनाओं का आईना होता है जिस में हम खुद को लिखने वाले के साथ देख सकते हैं ,वैसे ही यह काव्य संग्रह सरल सहज और बहुत मनमोहक है जो आपके बुक शेल्फ की शोभा को और भी बढ़ा देगा और अपने अन्दर समेटी बहुत सी रचनाओं के साथ साथ खुद को भी परखने का मौका देगा ..इस के सुन्दर नीले उपरी आवरण के रंग में आप खुद को भी असीमित भावनाओं के समुन्द्र में डूबता पायेंगे और अर्पित हो जायेंगे इस अर्पिता के प्रति!
रंजना (रंजू ) भाटिया 

26 comments:

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत सुन्दर समीक्षा है रंजना जी. आपको और अर्पिता जी को बधाई.

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत बढ़िया समीक्षा....
आपका बहुत बहुत शुक्रिया...
सीमा जी को बधाई और शुभकामनाएं.
अनु

मुकेश कुमार सिन्हा said...

मैंने इस पुस्तक को शैलेश जी के कमरे में देखा था, और कौतुहल वश कुछ पन्ने उलटे थे, और पढ़े भी... सच में बेहतरीन लगा था!! पठनीय !!
अब उसके लए ये समीक्षा ये बता रही है की क्यूं नहीं उस पुस्तक को लेकर मैं आया.....
रंजू जी आपकी लेखनी का जबाब नहीं ... किसी को बेहतरीन बनाने के इए आपका तारिका बेहद भाया और कारगर लगा...
मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना है ...
आभार!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुंदर समीक्षा .... आपको और सीमा जी को बधाई

रश्मि प्रभा... said...

आपकी कलम से समीक्षा सीमा के संग्रह का सम्मान है और यह सम्मान बताता है कि अर्पिता ख़ास है ...

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही सुन्दर समीक्षा .. किताब पढ़ने की जिज्ञासा जगा दी है आपने ...

शैलेश भारतवासी said...

रंजना जी,

आपने बहुत ही कुशलता से अर्पिता की विशेषताओं को गिनाया है। एक समीक्षा पाठकों के समक्ष किसी भी किताब की विशेषता और कमी को समग्रता से उजागर करे, इससे अधिक भला क्या चाहिए।

अच्छा लगा।

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर व सटीक समीक्षा …………आप दोनो को बधाई

Prakash Jain said...

Badhiya samiksha....

Pehle Rashmi ji ke kavya sankalan ke baare mein padha jiski samiksah Seema sada ji ne ki thi aur ab unke kavya sankalan ke baare mein...

Sab ek se badhkar ek hai yahan to..haha

Badhai

Anonymous said...

Straight to the point and well written! Why can't everyone else be like this?

Anju (Anu) Chaudhary said...

बेतरीन समीक्षा

shikha varshney said...

विस्तृत और अच्छी समीक्षा रंजू जी बधाई स्वीकारें. सीमा जी को भी बधाई.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत ही सधी हुयी और सुंदर समीक्षा ..... सदा जी की रचनाएँ बहुत प्रभावित करती हैं

Arvind Mishra said...

इतनी सुन्दर समीक्षा पाकर पुस्तक गौरवान्वित हुयी है

Maheshwari kaneri said...

आपको और अर्पिता जी को बधाई. बहुत सुन्दर समीक्षा है रंजना जी.

Shanti Garg said...

बहुत ही सुंदर समीक्षा ...
हार्दिक बधाई !!

शिवनाथ कुमार said...

बहुत ही सुंदर समीक्षा ..
आभार !
सीमा जी को बधाई व शुभकामनाएँ !

अनामिका की सदायें ...... said...

ham sada ji ko sada hi padhte rahte hain. unke is pahle prakashan par unhe bahut bahut badhayi. aur aapne jo sameeksha ki kautuhal ho jata hai is pustak ko paa lene aur padh lene ka.

प्रवीण पाण्डेय said...

अत्यन्त प्रभावी समीक्षा..

संजय भास्‍कर said...

सदा जी के कविता संग्रह की बहुत सुन्दर समीक्षा की है आपने रंजना जी!

संजय भास्‍कर said...

आपको और सीमा जी को बधाई

संजय भास्‍कर said...

रंजना जी एक समीक्षा यहाँ भी पढ़े
आकांक्षा का दर्पण सदा की " अर्पिता " -- संजय भास्कर
http://sanjaybhaskar.blogspot.in/2012/06/blog-post.html#links

रचना दीक्षित said...

बहुत सुन्दर समीक्षा रंजना जी.

सीमा जी को बहुत बधाई.

सदा said...

आपकी कलम से ''अर्पिता'' की समीक्षा ने मुझे नि:शब्‍द कर दिया
आभार सहित

सादर

सीमा

हरकीरत ' हीर' said...

बहुत सुंदर समीक्षा .... आपको और सीमा जी को बधाई ...!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
श्रावणी पर्व और रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!