Monday, July 16, 2012

आक्रोश

होंठो की चुप्पी में
दफ़न है
बर्फ हुए जज्बात
पथरी हुई आँखों में
ठिठके हुए सूखे हुए
बीते हुए मौसम के साए
वो गीत जो कभी
गुनगुनाये नहीं गए
पर न जाने क्यों
अब वह लावे से
धधकते सब हदें
पार कर देना चाहते हैं
और झर झर बहते
आक्रोश के रूप में बरसना चाहते हैं....


रंजू भाटिया 

11 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वो गीत जो कभी
गुनगुनाये नहीं गए
पर न जाने क्यों
अब वह लावे से
धधकते सब हदें
पार कर देना चाहते हैं

बहुत खूब .... लावा कभी तो बहेगा

सदा said...

गहन भाव लिए सशक्‍त लेखन ...आभार

ताऊ रामपुरिया said...

अत्यंत सशक्त एवम प्रभावी रचना, शुभकामनाएं.

रामराम.

Arvind Mishra said...

कूल मैंम कूल ..मैं तो घबरा ही गया हूँ -ज्वालामुखी से धुंआ निकलते देख -बड़ी सम्प्रेश्नीय कविता है !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...




वो गीत जो कभी
गुनगुनाये नहीं गए

आऽऽहऽऽऽ…
सचमुच बड़ी पीड़ादायक होती है ऐसी स्थिति …

आदरणीया रंजना 'रंजू भाटिया' जी
गीत प्रस्फुटित होने दें … लेकिन…
झर झर बहते आक्रोश के रूप में बरसना एक बार … बस एक बार स्थगित करदें न ! प्लीज़ … … …

*भावपूर्ण सुंदर रचना !!*
कुछ नये गीतों की प्रतीक्षा में…
मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार

Maheshwari kaneri said...

बहुत ही प्रभावी रचना, शुभकामनाएं.

दिगम्बर नासवा said...

इस लावे को बह जाने देना चाहिए ... बाहर निकाल देना चाहिए ... नहीं तो खुद को ही जला के राख कर देते हैं ये लावे ... शशक्त रचना ...

प्रवीण पाण्डेय said...

शब्द सब हलाहल पीने में सक्षम हैं, लावा शब्दों में ही बह जाने दें।

अनामिका की सदायें ...... said...

laava jitni jaldi beh jaye acchha hai. varna vo bahut kuchh khaak kar deta hai.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

sundar rachnaa!

Ramakant Singh said...

होंठो की चुप्पी में
दफ़न है
बर्फ हुए जज्बात
beautiful lines with great feelings
and emotions