दो अलग रंग .....
१)
एक मृगतृष्णा
एक प्यास..
को जीया है
मैंने तेरे नाम से
दुआ न देना
अब मुझे..
लम्बी उम्र की
और ..........
न दुबारा...
जीने को कहना
२)
बंधने लगा
बाहों का बंधन..
मधुमास सा
हर लम्हा हुआ..
तन डोलने लगा
सावन के झूले सा..
मन फूलों का
आंगन हुआ..
जब से नाम आया
तेरा ,मेरे अधरों पर
अंग अंग चंदन वन हुआ |
रंजना (रंजू ) भाटिया
१)
एक मृगतृष्णा
एक प्यास..
को जीया है
मैंने तेरे नाम से
दुआ न देना
अब मुझे..
लम्बी उम्र की
और ..........
न दुबारा...
जीने को कहना
२)
बंधने लगा
बाहों का बंधन..
मधुमास सा
हर लम्हा हुआ..
तन डोलने लगा
सावन के झूले सा..
मन फूलों का
आंगन हुआ..
जब से नाम आया
तेरा ,मेरे अधरों पर
अंग अंग चंदन वन हुआ |
रंजना (रंजू ) भाटिया
17 comments:
खूबसूरत भावमय प्रस्तुति.
'दो रंग कुछ अलग से' बहुत
कुछ कह गए हैं.
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार,रंजना जी.
समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
सशक्त और सार्थक प्रस्तुति!
दोनों ही रंग गजब के .... बहुत सुंदर
रचना के दोनों रंग अच्छे लगे,,
बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
दो अलग अलग मौसम जैसे..
एक मृगतृष्णा
एक प्यास..kaha se kaha le jati hai...
बहुत बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
भावप्रबल ...बहुत सुंदर रचनायें ...
शुभकामनायें.
मृग तृष्णा में भटकता प्रेम जब इससे बाहर निकलता है तो न जीने का हौसला रहता है न मरने का जज्बा...बहुत सुन्दर...
mere dard me bhi dua hai aapke liye:))aapki lambi jindagi ke liye...
aapka andaj ek dum alag .... bahut khubsurat....
रचना के दोनों रंग अच्छे लगे
बहुत ही सुन्दर रचना...
बहुत अच्छी...
:-)
बहुत गहरा डुबाया...उम्दा!!
रंजना जी
कविता के दोनों रंग बेहद खूबसूरत हैं.
सशक्त और सार्थक प्रस्तुति!..बहुत सुन्दर..
अंग अंग चंदन वन हुआ, क्या खूब बहुत प्यारी कविताएं ।
प्रेम के मधुर क्षणों को जीती सुन्दर रचना ... भावमय प्रस्तुति ...
Post a Comment