Wednesday, June 27, 2012

दो रंग कुछ अलग से

दो अलग रंग .....

१)
एक मृगतृष्णा
एक प्यास..
को जीया है
मैंने तेरे नाम से
दुआ न देना
अब मुझे..
लम्बी उम्र की
और ..........
न दुबारा...
जीने को कहना

२)
बंधने लगा
बाहों का बंधन..
मधुमास सा
हर लम्हा हुआ..
तन डोलने लगा
सावन के झूले सा..
मन फूलों का
आंगन हुआ..
जब से नाम आया
तेरा ,मेरे अधरों पर
अंग अंग चंदन वन हुआ |

रंजना (रंजू ) भाटिया

17 comments:

Rakesh Kumar said...

खूबसूरत भावमय प्रस्तुति.
'दो रंग कुछ अलग से' बहुत
कुछ कह गए हैं.

सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार,रंजना जी.

समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर आईएगा.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सशक्त और सार्थक प्रस्तुति!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

दोनों ही रंग गजब के .... बहुत सुंदर

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

रचना के दोनों रंग अच्छे लगे,,
बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,

MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,

प्रवीण पाण्डेय said...

दो अलग अलग मौसम जैसे..

दर्शन कौर धनोय said...

एक मृगतृष्णा
एक प्यास..kaha se kaha le jati hai...

Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

Anupama Tripathi said...

भावप्रबल ...बहुत सुंदर रचनायें ...
शुभकामनायें.

स्वाति said...

मृग तृष्णा में भटकता प्रेम जब इससे बाहर निकलता है तो न जीने का हौसला रहता है न मरने का जज्बा...बहुत सुन्दर...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

mere dard me bhi dua hai aapke liye:))aapki lambi jindagi ke liye...
aapka andaj ek dum alag .... bahut khubsurat....

vandana gupta said...

रचना के दोनों रंग अच्छे लगे

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही सुन्दर रचना...
बहुत अच्छी...
:-)

Udan Tashtari said...

बहुत गहरा डुबाया...उम्दा!!

Pawan Kumar said...

रंजना जी
कविता के दोनों रंग बेहद खूबसूरत हैं.

Maheshwari kaneri said...

सशक्त और सार्थक प्रस्तुति!..बहुत सुन्दर..

Asha Joglekar said...

अंग अंग चंदन वन हुआ, क्या खूब बहुत प्यारी कविताएं ।

दिगम्बर नासवा said...

प्रेम के मधुर क्षणों को जीती सुन्दर रचना ... भावमय प्रस्तुति ...