न जाने क्यों
ठहरे हुए पानी की तरह
मेरे लफ्ज़ भी काई से
कहीं मन में
ठिठक गए हैं ,
सन्नाटे की
आहट में
न कोई एहसास
न आंसुओं की
गिरती बूंदें
इसमें कोई
लहर नहीं बनाती
पर इस जमे हुए
सन्नाटे में
तेरे होने की
सरसराहट सी
एक उम्मीद जगाती है
की कहीं से प्रेम की
अमृत धारा
फिर से इन जमे हुए
एहसासों में
कोई लहर दे जायेगी
और फिर कोई
नयी कविता
पन्नो पर बिखर जायेगी !!!
ठहरे हुए पानी की तरह
मेरे लफ्ज़ भी काई से
कहीं मन में
ठिठक गए हैं ,
सन्नाटे की
आहट में
न कोई एहसास
न आंसुओं की
गिरती बूंदें
इसमें कोई
लहर नहीं बनाती
पर इस जमे हुए
सन्नाटे में
तेरे होने की
सरसराहट सी
एक उम्मीद जगाती है
की कहीं से प्रेम की
अमृत धारा
फिर से इन जमे हुए
एहसासों में
कोई लहर दे जायेगी
और फिर कोई
नयी कविता
पन्नो पर बिखर जायेगी !!!
16 comments:
फिर कोई
नयी कविता
पन्नो पर बिखर जायेगी !!!
वाह ... बहुत बढि़या भाव
फूटेगी अमृत धरा...भिगो डालेगी ....
सुन्दर भाव...
अनु
apni si lagi yah shabd mala.
ठहरा हुआ पानी और लफ्जों की काई ....... नीरवता में भी गूंजते एहसास ......
उम्मीद ... अमृत धारा की .... ज़रूर फूटेगी ...सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
इसी उम्मीद पर तो दुनिया कायम है।
लहरों का उमड़ना होता रहे, कविता यूँ ही बनती रहे..
और फिर कोई
नयी कविता
पन्नो पर बिखर जायेगी !!...वाह: बहुत सुन्दर कोमल भाव..
सुन्दर कृति!
और फिर कोई
नयी कविता
पन्नो पर बिखर जायेगी,,,,,
मन के भावों की सुंदर प्रस्तुति
MY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
!
thande pani ki tarah lafz.... ek dum alag sa laga padh kar....:)
aap sab me bahut hi alag likhte ho....!!
ek dum sadharan se shabd aapke rachna me jaan de dete hain..
बहुत सुन्दर उम्मीद जगाती रचना.
खामोशी में उनके होने का एहसास रहे तो आशा बंधी रह्रती है ... भाव प्रधान रचना ...
इमरोज का गहरा प्रभाव इस कविता में दिख रहा है पहले तो मुझे लगा कि इमरोज की कविता आपने पोस्ट की है फिर आपका नाम देखा। एक बार अज्ञेय ने भी तो कहा था न, कि महान कवि हमारे पुरखे हैं हमें परंपरा में शब्द दे जाते हैं जिन्हें गढ़ते हैं हम फिर से, फिर फिर से
बहुत खूब....
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