अजीब है यह मन
गुलदस्ते में सजे
इन नकली फूलों को यूँ
रोज़ दुलारता है
और उस पर..
जमी धूल को
इस गहराई से पोंछता है
कि शायद कभी यूँ
छूने भर से जी उठे
:
ठीक वैसे ही जैसे
मेरे तुम्हारे बीच के
मुरझाये हुए
पर सजे हुए से रिश्ते ...........
रंजू .................
16 comments:
बहुत सुन्दर....गहन अभिव्यक्ति..
ठीक वैसे ही जैसे
मेरे तुम्हारे बीच के
मुरझाये हुए
पर सजे हुए से रिश्ते ...........
सुंदर
अद्भुत है, मुरझाए हुए रिश्तों को भी सजा कर रखना।
सशक्त रचना
रिश्तों को यूँ ही संभाल के चलना होता हैं ...
रिश्ते तो मन की छुअन से अनुप्राणित हो जाते हैं।
मन की अजीबो- गरीब स्थति ..कभी मृतप्राय कभी जीवित ...
रिश्तों में बनावट खोखला कर देती है उन्हें.....
सुन्दर रचना.
अनु
khoobsurat rishte
वाह ...बहुत ही बढि़या।
ये रिश्ते जरूर जी उठेंगे अगर चिंगारी बाकी है ... कागज़ के फूल तो वैसे ही रहेंगे ... गहरी सोच है ...
blog pe aake bahut acha laga...ati sundar rachna...badhai..!!
रिश्ते सदा के लिए कभी नहीं मुरझाते ...
मेरी पहली टिप्पणी लगता है स्पैम में चली गयी ... कमेन्ट बोक्स में जा के आप "स्पैम नहीं" कों क्लिक करें ... टिप्पणियाँ कमेन्ट में वापस आ जायंगी ...
ठीक वैसे ही जैसे
मेरे तुम्हारे बीच के
मुरझाये हुए
पर सजे हुए से रिश्ते ...........
यथार्थ को कहती गहन अभिव्यक्ति
इन्सानी रिश्ते कागज के फूल नही सच्चे फूल हैं मुरझा सकते हैं पर नमी पाकर फिर खिल उठेंगे .
सुंदर अभिव्यक्ति ।
शायद रिश्तों की यही सच्चाई है और खूबसूरती भी यही है
मुरझाए रिश्तों से भी सजा लेते हैं दुनिया!
बहुत खूब!
Post a Comment