ऐ ज़िन्दगी ....
कभी तू .....
कभी तू .....
पढ़ लिया करती थी
मेरे उन अनकहे सफों को भी
जो आँखों के कोनो में
सिमट कर बिखर जाया करते थे
समेट लेती थी तब उन्हें
अपने इस अंदाज़ से
कि दिल के हर कोने के
अँधेरे ,उजाले में
बदल जाया करते थे
बदलते मौसम के
बिखराव की तरह
रोज़ पीले गिरते पत्ते
हरियाले और नयी कलियों की
उम्मीद में सज जाया करते थे
सोचती हूँ अब ....
तू मिले जो कहीं
तो तुझसे पूछूँ
मेरे उन अनकहे सफों को भी
जो आँखों के कोनो में
सिमट कर बिखर जाया करते थे
समेट लेती थी तब उन्हें
अपने इस अंदाज़ से
कि दिल के हर कोने के
अँधेरे ,उजाले में
बदल जाया करते थे
बदलते मौसम के
बिखराव की तरह
रोज़ पीले गिरते पत्ते
हरियाले और नयी कलियों की
उम्मीद में सज जाया करते थे
सोचती हूँ अब ....
तू मिले जो कहीं
तो तुझसे पूछूँ
छोडे थे हमने जो फासले
खुशगवार लम्हों के ...
प्यार की सोगातों के ...
और मदभरी शिकायतों के ..
वो ठिठके हुए हैं
आज भी किसी
रुकी हुई झील की तरह
क्या आज भी ...??
दो किनारों पर खड़े हम
एक एक कदम बड़ा कर
कम कर सकते हैं इन एहसासों को ?
जम गए हैं जो किसी बर्फ की तरह
क्या आज भी
उन भावनाओं को ,
खुशगवार लम्हों के ...
प्यार की सोगातों के ...
और मदभरी शिकायतों के ..
वो ठिठके हुए हैं
आज भी किसी
रुकी हुई झील की तरह
क्या आज भी ...??
दो किनारों पर खड़े हम
एक एक कदम बड़ा कर
कम कर सकते हैं इन एहसासों को ?
जम गए हैं जो किसी बर्फ की तरह
क्या आज भी
उन भावनाओं को ,
संवेदनाओं को ..
एक दूजे के छूने से
पिघला सकते हैं ??
रंजू .........एक दूजे के छूने से
पिघला सकते हैं ??
17 comments:
क्या आज भी ...??
दो किनारों पर खड़े हम
एक एक कदम बड़ा कर
कम कर सकते हैं इन एहसासों को
बेहतरीन सुंदर प्रस्तुति ,,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
ऐ ज़िन्दगी ....
कभी तू .....पढ़ लिया करती थी
मेरे उन अनकहे सफों को भी
जो आँखों के कोनो में
सिमट कर बिखर जाया करते थे ..... बहुत सुन्दर भाव लाजवाब प्रस्तुति..
ऐ ज़िन्दगी ....
कभी तू .....पढ़ लिया करती थी
मेरे उन अनकहे सफों को भी
भावमय करते शब्दों का संगम ... बेहतरीन ।
poochh kar dekhte hai shaayad jawaab aaye
ए जिंदगी तू पहली कित्ती खुशगवार थी...:)
अब इतनी दर्द क्यूं देती है...:)
aapki rachnaon ka jabab nahi... har shabd bolte hain.. !
ऐ ज़िन्दगी ....
कभी तू .....
पढ़ लिया करती थी
मेरे उन अनकहे सफों को भी ...
जिंदगी की थाती में जाने क्या क्या दबा रहता है जो वो पढ़ भी पाती है और व्यक्त भी कर पाती है ... पर समय के बदलाव में वो एक सी नहीं रह पाती ...
काश वे दिन फिर याद आयेंगे।
खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात..
वो ठिठके हुए हैं
आज भी किसी
रुकी हुई झील की तरह
बहुत ही संवेदनशील रचना...
bahut hi accha likha
Thanks
Visit My blog
http://drivingwithpen.blogspot.in/
बड़े रंग बदलती है ज़िंदगी
जिंदगी से पूछती कुछ अनकही बाते ...
मदभरी शिकायतें!
बहुत खूब!
अनकहे सवालों के उत्तर की प्रतीक्षा में लिखी कविता
भावपूर्ण अभिव्यक्ति है.
रिश्तों में जमी बरफ स्नेह की गरमी से ही पिघलेगी ।
बहुत ही संवेदनशील रचना...भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
क्या आज भी
उन भावनाओं को ,
संवेदनाओं को ..
एक दूजे के छूने से
पिघला सकते हैं ??
......बेहतरीन अंदाज़ !!!
Post a Comment