तुम याद आए आज फिर_
सुबह उठते ही गरम चIय के साथ,
जब जीभ जल गयी थी,
पेपरवाले ने ज़ोर से फेंका अख़बार जब,
मुह्न पर आकर लगा था ज़ोर से,
बाथरूम मैं जाते वक़्त,
जब मेरा पैर भी दरवाज़े से उलझ गया था,
फिर सब्ज़ी काटते वक़्त जब उंगली काट बैठी थी,
नहाते वक़्त उसी कटी अंगुली में जब साबुन लगा था,
हाँ याद आए तुम तभी, प्रेस ने भी हाथ जला दिया था.
और बरसात से अकड़ा दरवाज़ा भी बंद नही होता था,
तुम याद आए______________
हर चुभन के साथ.....
हर टूटन के साथ...........
हर चोट के साथ...........
दे गये ना जाने कितने और ज़ख़्म
याद दिलाने को अपनी
हर ज़ख़्म में उठती टीस के साथ.,...
ना नही--.
मेरी टीस से डरना मत
मेरी चुभन को सहलाना मत.
मेरे ज़ख़्मो को छूना मत
फिर तुम याद कैसे आओगे?
यूँ ही आते रहो मेरे ख़्यालो मैं
देते रहो नये ज़ख़्म,
पुराने को करो हरा,
बनेने दो इन्हे नासूर,
इनसे उठता दर्द, दिलाते रहे याद
तुम्हारी, यूँ ही हर सुबह.................
रंजू .....
16 comments:
बहुत संवेदनशील रचना ....
apno ke diye dard ko bakhoobi bayan kiya aapne...
apno ke diye dard ko bakhoobi bayan kiya aapne..
मेरी टीस से डरना मत
मेरी चुभन को सहलाना मत.
मेरे ज़ख़्मो को छूना मत
फिर तुम याद कैसे आओगे?
क्या बात है...एकदम अलग सी ...मासूम सी सोच
बढ़िया कविता
उफ़ …………दर्द ही मरहम बन गया जीने को इक बहाना मिल गया
भावो का सुन्दर समायोजन......
कैसा यह मन भरमा जाता,
जब याद तुम्हारी आती है..
Unki yaden bas ghav sahlane ke liye hi kyon ... Din ko khaas banane ke liye Bhi to ayen ..
Lajawab likha hai ...
सुंदर भाव
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 01-03 -2012 को यहाँ भी है
..शहीद कब वतन से आदाब मांगता है .. नयी पुरानी हलचल में .
वाह जी बहुत बढ़िया
कैसे कहाँ कोई याद आ जाये -बिलकुल सही हैं आप !
यूँ ही आते रहो मेरे ख़्यालो मैं
देते रहो नये ज़ख़्म,
पुराने को करो हरा,
बनेने दो इन्हे नासूर
waah, bahut sasakt rachna.behtreen prastuti ke liye badhai
बहुत ही सुन्दर भाव बेहतरीन रचना;-)
पल पल की संवेदना जताती बहुत ही सुंदर कविता. कृपया मेरे ब्लॉग पर आकर अनुग्रहीत करें
शिव प्रकाश मिश्र
http://shivemishra.blogspot.com
बहुत सुन्दर रचना.. मन को चुटी हुई.
आभार.
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