बसंती ब्यार सा
खिले पुष्प सा
उस अनदेखे साए ने
भरा दिल को
प्रीत की गहराई से,
खाली सा मेरा मन
गुम हुआ हर पल उस में
और झूठे भ्रम को
सच समझता रहा ,
मृगतृष्णा बना यह जीवन
भटकता रहा न जाने किन राहों पर
ह्रदय में लिए झरना अपार स्नेह का
यूं ही निर्झर बहता रहा,
प्यास बुझ न सकी दिल की
न जाने किस थाह को
पाने की विकलता में
गहराई में उतरता रहा,
प्यासा मनवा खिचता रहा
उस और ही
जिस ओर पुकारती रही
मरीचिका ...
पानी के छदम वेश में
किया भरोसा जिस भ्रम पर
वही जीवन को छलती रही
फ़िर भी
पागल मनवा
लिए खाली पात्र अपना
प्रेम के उस अखंड सच को
खिले पुष्प सा
उस अनदेखे साए ने
भरा दिल को
प्रीत की गहराई से,
खाली सा मेरा मन
गुम हुआ हर पल उस में
और झूठे भ्रम को
सच समझता रहा ,
मृगतृष्णा बना यह जीवन
भटकता रहा न जाने किन राहों पर
ह्रदय में लिए झरना अपार स्नेह का
यूं ही निर्झर बहता रहा,
प्यास बुझ न सकी दिल की
न जाने किस थाह को
पाने की विकलता में
गहराई में उतरता रहा,
प्यासा मनवा खिचता रहा
उस और ही
जिस ओर पुकारती रही
मरीचिका ...
पानी के छदम वेश में
किया भरोसा जिस भ्रम पर
वही जीवन को छलती रही
फ़िर भी
पागल मनवा
लिए खाली पात्र अपना
प्रेम के उस अखंड सच को
सदियों तक तलाशता रहा !!!ढूंढ़ता रहा ........
{चित्र गूगल के सोजन्य से }