Wednesday, January 25, 2012

खोये हुए पल

बीते वो लम्हे
जो सुख से भरे थे
हरियाले से वह पत्ते
अब क्यों पीले पड़ चले हैं
पर अब भी याद है
उन पलों की सोंधी सोंधी
जब सिर्फ़ तुम्हारे छूने भर से
देह तपने लगती थी
लगती थी तपते होंठों  की मोहर जब
कभी गर्दन और काँधे पर
तो झनझना के देह थिरक उठती थी

उठने लगती थी ऐसी हिलोरें
दोनों तरफ़ जैसे
कोई नदिया मचल के उमड़ती थी

पर आज वही है हम दोनों
साँसे भी वहीँ है
काँधे पर ठहरा है
कोई पुरानी याद का बोसा
और तेरी मेरी उलझी यादे कई हैं
पर न जाने कहाँ खो गया
वह स्पंदन
न जाने वह मिलने की
खुशी कहाँ गुम हुई है  

सोख लिया सब रस
इस जीवन नदिया से
हमारी भागती दौडती जरूरतों ने 
और जीवन का वह अनमोल पल
कहीं छिटक कर खो गया है ...

19 comments:

Nirantar said...

ummeed mein kai rishte bojh ban jaate hein
pahle baar aapkaa blog dekhaa achhaa laga

vidya said...

बहुत सुन्दर...
वक्त ने किया...क्या सितम!!!

Anonymous said...

लगती थी तपते होंठी की मोहर जब
कभी गर्दन और काँधे पर
तो झनझना के देह थिरक उठती थी

bahut khoob
ummda kavita

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना हैं।

विभूति" said...

वक़्त का हर शये गुलाम......बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

दिगम्बर नासवा said...

In khaye huve palon ko dubara laana aur jeena hi prem hai ... Aur IDE laane ka satat prayatn karna hoga ... Bhavatmak rachna hai ...

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह बहुत खूब

आज और कल का अंतर समझ में आ रहा हैं ..

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

संभवत: यही जीवन है.
सुंदर.

Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरती से लिखे एहसास ..

कुश said...

वही स्वाद बरकरार है.. बहुत बढ़िया

Manoj K said...

जीवन के वह एहसास ..
समय के साथ पीछे छूट गए ..
ख़ूब

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर रचना,,,,

प्रवीण पाण्डेय said...

स्मृतियों के सोंधेपन में छिपे वे पल, काश बार बार दुहराये जायें..

सदा said...

वाह ..बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

Shive Prakash Mishra said...

मानव संवेदना से सराबोर वेदना मैं जिसे चिंतन ही कहूँगा क्योकि इसमें छिपी है एक कुंजी .... और वह है की हम जीवन में चाहे कुछ पाए या नहीं किन्तु कुछ अच्छा है तो वह छूटने न पाए . जीवन में हमारा उद्देश्य क्या है ? हम जो कुछ भी करते हैं शायद उसमे अपने आप को खुश करने के लिए बहुत कम होता है. हमें इसका अहसास तब होता है जब सब कुछ पीछे छूट चुका होता है.

शिव प्रकाश मिश्र
http://shivemishra.blogspot.com

Shive Prakash Mishra said...

मानव संवेदना से सराबोर वेदना मैं जिसे चिंतन ही कहूँगा क्योकि इसमें छिपी है एक कुंजी .... और वह है की हम जीवन में चाहे कुछ पाए या नहीं किन्तु कुछ अच्छा है तो वह छूटने न पाए . जीवन में हमारा उद्देश्य क्या है ? हम जो कुछ भी करते हैं शायद उसमे अपने आप को खुश करने के लिए बहुत कम होता है. हमें इसका अहसास तब होता है जब सब कुछ पीछे छूट चुका होता है.

शिव प्रकाश मिश्र
http://shivemishra.blogspot.com

दीपिका रानी said...

सुंदर कविता। कृपया प्रकाशन से पहले व्याकरण की त्रुटियां देख लिया करें। पहले पैरे में होंठी, तीसरे में सम्पदन शायद स्पंदन था। दौड़ती का दोड़ती हो गया है। ऐसी त्रुटियां अच्छी पोस्ट पढ़ने में व्यवधान उत्पन्‍न करती हैं। आशा है अन्यथा न लेंगी।

dinesh gautam said...

aapke hriday ka pratibimb hai shayad yah rachna.....