बीते वो लम्हे
जो सुख से भरे थे
हरियाले से वह पत्ते
उन पलों की सोंधी सोंधी
जब सिर्फ़ तुम्हारे छूने भर से
देह तपने लगती थी
तो झनझना के देह थिरक उठती थी
उठने लगती थी ऐसी हिलोरें
दोनों तरफ़ जैसे
कोई नदिया मचल के उमड़ती थी
पर आज वही है हम दोनों
साँसे भी वहीँ है
काँधे पर ठहरा है
कोई पुरानी याद का बोसा
और तेरी मेरी उलझी यादे कई हैं
पर न जाने कहाँ खो गया
वह स्पंदन
न जाने वह मिलने की
खुशी कहाँ गुम हुई है
सोख लिया सब रस
इस जीवन नदिया से
हमारी भागती दौडती जरूरतों ने
और जीवन का वह अनमोल पल
कहीं छिटक कर खो गया है ...
जो सुख से भरे थे
हरियाले से वह पत्ते
अब क्यों पीले पड़ चले हैं
पर अब भी याद हैउन पलों की सोंधी सोंधी
जब सिर्फ़ तुम्हारे छूने भर से
देह तपने लगती थी
लगती थी तपते होंठों की मोहर जब
कभी गर्दन और काँधे पर तो झनझना के देह थिरक उठती थी
उठने लगती थी ऐसी हिलोरें
दोनों तरफ़ जैसे
कोई नदिया मचल के उमड़ती थी
पर आज वही है हम दोनों
साँसे भी वहीँ है
काँधे पर ठहरा है
कोई पुरानी याद का बोसा
और तेरी मेरी उलझी यादे कई हैं
पर न जाने कहाँ खो गया
वह स्पंदन
न जाने वह मिलने की
खुशी कहाँ गुम हुई है
सोख लिया सब रस
इस जीवन नदिया से
हमारी भागती दौडती जरूरतों ने
और जीवन का वह अनमोल पल
कहीं छिटक कर खो गया है ...
19 comments:
ummeed mein kai rishte bojh ban jaate hein
pahle baar aapkaa blog dekhaa achhaa laga
बहुत सुन्दर...
वक्त ने किया...क्या सितम!!!
लगती थी तपते होंठी की मोहर जब
कभी गर्दन और काँधे पर
तो झनझना के देह थिरक उठती थी
bahut khoob
ummda kavita
बहुत सुन्दर रचना हैं।
वक़्त का हर शये गुलाम......बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
In khaye huve palon ko dubara laana aur jeena hi prem hai ... Aur IDE laane ka satat prayatn karna hoga ... Bhavatmak rachna hai ...
वाह बहुत खूब
आज और कल का अंतर समझ में आ रहा हैं ..
संभवत: यही जीवन है.
सुंदर.
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत खूबसूरती से लिखे एहसास ..
वही स्वाद बरकरार है.. बहुत बढ़िया
जीवन के वह एहसास ..
समय के साथ पीछे छूट गए ..
ख़ूब
बहुत सुन्दर रचना,,,,
स्मृतियों के सोंधेपन में छिपे वे पल, काश बार बार दुहराये जायें..
वाह ..बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
मानव संवेदना से सराबोर वेदना मैं जिसे चिंतन ही कहूँगा क्योकि इसमें छिपी है एक कुंजी .... और वह है की हम जीवन में चाहे कुछ पाए या नहीं किन्तु कुछ अच्छा है तो वह छूटने न पाए . जीवन में हमारा उद्देश्य क्या है ? हम जो कुछ भी करते हैं शायद उसमे अपने आप को खुश करने के लिए बहुत कम होता है. हमें इसका अहसास तब होता है जब सब कुछ पीछे छूट चुका होता है.
शिव प्रकाश मिश्र
http://shivemishra.blogspot.com
मानव संवेदना से सराबोर वेदना मैं जिसे चिंतन ही कहूँगा क्योकि इसमें छिपी है एक कुंजी .... और वह है की हम जीवन में चाहे कुछ पाए या नहीं किन्तु कुछ अच्छा है तो वह छूटने न पाए . जीवन में हमारा उद्देश्य क्या है ? हम जो कुछ भी करते हैं शायद उसमे अपने आप को खुश करने के लिए बहुत कम होता है. हमें इसका अहसास तब होता है जब सब कुछ पीछे छूट चुका होता है.
शिव प्रकाश मिश्र
http://shivemishra.blogspot.com
सुंदर कविता। कृपया प्रकाशन से पहले व्याकरण की त्रुटियां देख लिया करें। पहले पैरे में होंठी, तीसरे में सम्पदन शायद स्पंदन था। दौड़ती का दोड़ती हो गया है। ऐसी त्रुटियां अच्छी पोस्ट पढ़ने में व्यवधान उत्पन्न करती हैं। आशा है अन्यथा न लेंगी।
aapke hriday ka pratibimb hai shayad yah rachna.....
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