Friday, April 15, 2011

रिश्तों की स्व मौत

जन्म लेने से पहले ...
साँसों के तन से ,
जुड़ने से पहले ...
न जाने कितने रिश्ते
खुद बा  खुद जुड़ जाते हैं
और बन्ध जाते हैं
कितने बंधन
इन अनजान रिश्तों से ,
और फिर विश्वास की डोर से
बंधे यह रिश्ते
लम्हा -लम्हा
पनपने लगते हैं
होता है फिर न जाने ..
अचानक से कुछ ऐसा ,
कि अपने ही कहे जाने वाले
अजनबी से हो जाते हैं
रस्मी बातें ...
रस्मी मुलाकातें ...
एक "लाइफ सपोर्ट सिस्टम "
से बन जाते हैं
बोझ बने यह रिश्ते
आखिर कब तक यूँ ही
निभाते जायेंगे
सोचती हूँ कई बार
आखिर क्यों नहीं
इन बोझिल रिश्तों को
हम खत्म हो जाने देते
आखिर क्यों नहीं ....
हम अपनी "स्व मौत" मर जाने देते ??