बदल गया वक्त क्यों इस तरह कैसे बताये
फूले भी चुभे शूल से किस्सा कैसे यह बतलाये
फासले तो थे न इतने जितनी बन गयीं दूरियाँ
क्यों खींच गई दीवारे कैसे दिल को समझाए
बागों में तो आने को था बसंत का मौसम
क्यों छा गई खिजाएँ कैसे राग कोई गाए
वक्त की कलाई है सख्त पत्थर जैसी
कांच के ख्वाबों को वहाँ कैसे बसाए
करे जज्बा वही पैदा फ़िर से मोहब्बत का
इस तरह मरने से पहले चलो फ़िर से जी जाएं !!
फूले भी चुभे शूल से किस्सा कैसे यह बतलाये
फासले तो थे न इतने जितनी बन गयीं दूरियाँ
क्यों खींच गई दीवारे कैसे दिल को समझाए
बागों में तो आने को था बसंत का मौसम
क्यों छा गई खिजाएँ कैसे राग कोई गाए
वक्त की कलाई है सख्त पत्थर जैसी
कांच के ख्वाबों को वहाँ कैसे बसाए
करे जज्बा वही पैदा फ़िर से मोहब्बत का
इस तरह मरने से पहले चलो फ़िर से जी जाएं !!
16 comments:
करे जज्बा वही पैदा फ़िर से मोहब्बत का
इस तरह मरने से चलो फ़िर से जी जाएं !!
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...।
करे जज्बा वही पैदा फ़िर से मोहब्बत का
इस तरह मरने से चलो फ़िर से जी जाएं !!
बहुत खूबसूरत बात कही है.
Khoobsurat kavita sunder bhaw.
Aabhaar. . . !
बहुत सुन्दर्।
भावमय करते शब्दों का संगम....
bahut sundar shabdon men bhavon ko utara hai.
har mausam ek sa nahi rahta...ye bhi badal jayega.
khoobsurat abhivyakti.
जी लेने की राह निकालें, हर पल हर दिन।
bahut sundar....mere blog pe apka swaagat hai....
फासले तो थे न इतने जितनी बन गयीं दूरियाँ
क्यों खींच गई दीवारे कैसे दिल को समझाए
बहुत सुन्दर भाव..
Hi...
Marne se har haal main jeena...
Behtar hi hota hai....
Jeevan ka jo marm saamajhta,
jeevan na khota hai...
Sundar bhav....
Deepak Shukla..
मोहब्बत के भी बडे अजीब होते हैं फसाने
शिकवे गिले लोग खुद से ही है सुनाते
अब भी वक्त बेवक्त उनकी की ही बात करते हो
जिनके दिए जख्म हमें पल-पल हैं रुलाते
bahut khub
वक्त की कलाई है सख्त पत्थर जैसी
कांच के ख्वाबों को वहाँ कैसे बसाए ?
ये सफ़र कितना तवील है यहाँ वक्त कितना कलील है
वो लौट कर कहाँ आएगा जो गुज़र गया वो गुज़र गया
उसे याद कर न दिल दुखा जो गुजर गया वो गुज़र गया
(बशीर बद्र )
marne ke mausam aate hain, na jane wo kaise hote. jo unmen phool khila lete,'jeene ke' , tum jaise hote.
achchi gajal hai
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