Tuesday, August 09, 2011

सुबह के शगुन

सुबह के शगुन है
जो आते हैं अखबार के साथ
कुछ हत्या .कुछ आत्महत्या
बलात्कार .चोरी और कुछ झगडे

टप से अखबार के साथ टपकते हैं
चाय के साथ गटक लिए जाते हैं

और फ़िर बाकी रह जाता है
बचा हुआ दिन पूरा
जिस में घटती घटनाएँ
फ़िर से गवाह बनती है
आगे आने वाले दिन  की शगुन!!!!

27 comments:

Anju (Anu) Chaudhary said...

एक दम सत्य
मन खराब हो जाता है सुबह का अखबार पढ़ कर
--

सदा said...

बहुत ही गहन भावों का समावेश हर पंक्ति में ..आभार ।

vandana gupta said...

बिल्कुल सही आकलन किया है।

Dr.R.Ramkumar said...

और फ़िर बाकी रह जाता है
बचा हुआ दिन पूरा
जिस में घटती घटनाएँ
फ़िर से गवाह बनती है
आगे आने वाले दिन की शगुन!!!!

bahut sunder badhai...

rashmi ravija said...

फ़िर से गवाह बनती है
आगे आने वाले दिन की शगुन!!!!

सोचने को विवश करती हुई कविता

!!अक्षय-मन!! said...

किस तरहां से जोड़ा है आपने शब्दों को शब्दों से वोह बयां कर पाना मुश्किल है बहुत ही मार्मिक चित्रण देश के हालात पता चलते हैं इससे...

कई जिस्म और एक आह!!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

लगता है अब यही शगुन बचे हैं ..बहुत गहन और संवेदनशील रचना

डॉ. मनोज मिश्र said...

अच्छी पोस्ट.
जो पढ़ा लिखा है वह सबसे तनाव में है-देश-विश्व और पडोस -सभी से .
सबसे भले वे मूढ़-जिन्हें न ब्यापहि जगति गति.

अनामिका की सदायें ...... said...

kitni aasani se chay ke sath ham sab gatak jate hain na.

gahen abhivyakti.

Unknown said...

Kitni gahrai se aap samay ki harek gatividhi ko dekhti hain.. yah rachna usi ki parichayak hai.. aabhar..

डॉ. मोनिका शर्मा said...

देखिये आये दिन मिलने वाले इस शगुन हमें भी कोई असर कहाँ पड़ता है..... सटीक आकलन

Maheshwari kaneri said...

गहन सोच..आभार..

वन्दना अवस्थी दुबे said...

और फ़िर बाकी रह जाता है
बचा हुआ दिन पूरा
जिस में घटती घटनाएँ
फ़िर से गवाह बनती है
आगे आने वाले दिन की शगुन!!!!
क्या बात है रंजना जी. सही है, आपराधिक घटनाएं इतनी अधिक होने लगीं हैं कि उन्होंने असर करना ही छोड़ दिया है. अब ये शगुन की तरह ही हो गई हैं.

Arvind Mishra said...

या असगुन ?

प्रवीण पाण्डेय said...

अब अखबार सुबह नहीं पढ़ते, दोपहर में पढ़ते हैं।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

very beautiful

Alpana Verma said...

घटनाओं के चक्र जिन में से निकल पाना मुश्किल.
सच को बताती कविता.

Fani Raj Mani CHANDAN said...

और फ़िर बाकी रह जाता है
बचा हुआ दिन पूरा
जिस में घटती घटनाएँ
फ़िर से गवाह बनती है
आगे आने वाले दिन की शगुन!!!

Very true fact of our lives with very nicely composed words.

Regards
Fani Raj

रेखा श्रीवास्तव said...

हाँ ये अनचाहे शगुन हमें लेने ही पड़ते हैं पता नहीं कभी इन शगुनों का मुहूर्त का शुक्र अस्त होगा भी या नहीं.

gazalkbahane said...

aaj pehli bar aana hua, accha likhti hain aap sahaj saral bhasha men,gahri anubhti ke sath

जीवन का उद्देश said...

धन्यवाद

vidhya said...

अच्छी पोस्ट.
बिल्कुल सही

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सच्चा चिंत्रण... सच्चा चिंतन...
सादर...

Udan Tashtari said...

यही हर सुबह का सच है...उम्दा रचना.

निवेदिता श्रीवास्तव said...

बहुत ही गहन आकलन ........

Asha Joglekar said...

वाह ये शगुन तो सही बताये आपने. जोरदार कविता.

दिगम्बर नासवा said...

आने वाले दिन का शगुन ...
सच में सुबह सुबह ऐसी बातों से मन खराब हो जाता है ... पर क्या करें ... सच भी तो यही है आज का ...