Tuesday, March 15, 2011

कभी कभी कोई कविता यूं भी बनती है !

गुनगुनाती चिरया 
का शोर
आसमान में उगती
सुबह  की भोर
कुछ आरक्त   सी फूटती  
नयी कोपले   
हरियाले  नये खिलते पत्ते
हवा के साथ
यूँ झूमने लगते हैं
टेसू के लाल लाल फूदने
जैसे फागुन के आने पर
फूटने लगते हैं

तब भटकती है
बौराई सी रात
गाती हुई
कुछ शिथिल से गात
अमराई में जैसे
कोयल कूकती है
और सन्न्नाटे को
चीरती हुई
यूँ ही अकले
वन वन डोलती है

तब शब्द कुछ कहने को
हों उठते हैं आतुर 
जैसे कोई शबनम
कली के मुख को चूमती है
खिल उठते  हैं नम आंखों  में
 कई सपने इन्द्रधनुष से
वक्त के हाथो बनी कठपुतली
हाँ कुछ कविता यूं ही बनती है
जैसे किसी रेगिस्तान में
कभी कभी
झूमते सावन की हँसी  गूंजती  है
हाँ कभी कभी
कोई कविता यूं भी बनती है !


21 comments:

मुकेश कुमार सिन्हा said...

sach me kavita aise banti hai, pata na tha......achchha hua, sabse pahle main pahuch gaya....kuchh seekh paunga...:D

bahut pyari se rachna....ek dum naisargik!

vandana gupta said...

सच कहा कविता यूं भी बनती है…………सुन्दर भाव संयोजन्।

sonal said...

वाह ..इतनी प्यारी कविता ..भोर की सुन्दरता समेटे

सदा said...

वाह ...बहुत ही सुन्‍दर भाव।

रश्मि प्रभा... said...

शब्द कुछ कहने को
हों उठते हैं आतुर
जैसे कोई शबनम
कली के मुख को चूमती है
खिल उठते हैं नम आंखों में
कई सपने इन्द्रधनुष से
वक्त के हाथो बनी कठपुतली
हाँ कुछ कविता यूं ही बनती है
...
bas banti jati hai ,aur kitna kuch kahti jati hai

Udan Tashtari said...

हाँ कभी कभी
कोई कविता यूं भी बनती है !



-अजी, इतनी सटीक सेटिंग में तो कविता बनेगी ही...

बहुत खूब.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जैसे कोई शबनम
कली के मुख को चूमती है
खिल उठते हैं नम आंखों में
कई सपने इन्द्रधनुष से
वक्त के हाथो बनी कठपुतली
हाँ कुछ कविता यूं ही बनती है

यह सपने नम आँखों में ही इन्द्रधनुष क्यों बनाते हैं ? बहुत सुन्दर शब्द संयोजन .

Kailash Sharma said...

सच कहा है कविता ऐसे ही बनाती जाती है...बहुत भावमयी रचना..

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर ...सच प्रकृति के रंग समेटे कई कवितायेँ जन्म लेती हैं..... सुंदर चित्रण

डॉ. मनोज मिश्र said...

@@हाँ कभी कभी
कोई कविता यूं भी बनती है !..
लाजवाब रचना.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

aapki kavitaa to yoon hee nahi banti ranju ji....deep thoughts, amazing imagination...perfect combination!!

दिगम्बर नासवा said...

हाँ कुछ कविता यूं ही बनती है
जैसे किसी रेगिस्तान में
कभी कभी
झूमते सावन की हँसी गूंजती है
हाँ कभी कभी
कोई कविता यूं भी बनती है ...

सच है जीवित कविताएँ अक्सर ऐसे ही बनती हैं .... लाजवाब लिखा है आपने ...

Rakesh Kumar said...

गुनगुनाती चिरया
का शोर
आसमान में उगती
सुबह की भोर
सात्विक अहसास दिलाती अति सुंदर अभिव्यक्ति .
मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'पर आपका स्वागत है.
होली के सुअवसर पर आपको व सभी ब्लोगर जन को हार्दिक शुभ कामनाएँ.

Patali-The-Village said...

सच है जीवित कविताएँ अक्सर ऐसे ही बनती हैं| धन्यवाद|

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
जानिए धर्म की क्रान्तिकारी व्‍याख्‍या।

सु-मन (Suman Kapoor) said...

BAHUT SUNDAR ..KAVI HRIDAY BAHUT KUCHH SAMETE RHTA HAI APNE ANDAR....AUR KAVITA BAN JATI HAI..

Maheshwari kaneri said...

आप की सारी कविताए बहुत सुन्दर और दिल को छुने वाली हैं.पढ़ कर मैं प्रोत्साहित हुई.

Maheshwari kaneri said...

आप की सारी कविताए बहुत सुन्दर और दिल को छुने वाली हैं.पढ़ कर मैं प्रोत्साहित हुई.

M.Kaneri said...

आप की सारी कविताए बहुत सुन्दर और दिल को छुने वाली हैं.पढ़ कर मैं प्रोत्साहित हुई.