गुनगुनाती चिरया
का शोर
आसमान में उगती
सुबह की भोर
कुछ आरक्त सी फूटती
नयी कोपले
हरियाले नये खिलते पत्ते
हवा के साथ
यूँ झूमने लगते हैं
टेसू के लाल लाल फूदने
जैसे फागुन के आने पर
फूटने लगते हैं
तब भटकती है
बौराई सी रात
गाती हुई
कुछ शिथिल से गात
अमराई में जैसे
कोयल कूकती है
और सन्न्नाटे को
चीरती हुई
यूँ ही अकले
वन वन डोलती है
तब शब्द कुछ कहने को
हों उठते हैं आतुर
जैसे कोई शबनम
कली के मुख को चूमती है
खिल उठते हैं नम आंखों में
कई सपने इन्द्रधनुष से
वक्त के हाथो बनी कठपुतली
हाँ कुछ कविता यूं ही बनती है
जैसे किसी रेगिस्तान में
कभी कभी
झूमते सावन की हँसी गूंजती है
हाँ कभी कभी
कोई कविता यूं भी बनती है !
का शोर
आसमान में उगती
सुबह की भोर
कुछ आरक्त सी फूटती
नयी कोपले
हरियाले नये खिलते पत्ते
हवा के साथ
यूँ झूमने लगते हैं
टेसू के लाल लाल फूदने
जैसे फागुन के आने पर
फूटने लगते हैं
तब भटकती है
बौराई सी रात
गाती हुई
कुछ शिथिल से गात
अमराई में जैसे
कोयल कूकती है
और सन्न्नाटे को
चीरती हुई
यूँ ही अकले
वन वन डोलती है
तब शब्द कुछ कहने को
हों उठते हैं आतुर
जैसे कोई शबनम
कली के मुख को चूमती है
खिल उठते हैं नम आंखों में
कई सपने इन्द्रधनुष से
वक्त के हाथो बनी कठपुतली
हाँ कुछ कविता यूं ही बनती है
जैसे किसी रेगिस्तान में
कभी कभी
झूमते सावन की हँसी गूंजती है
हाँ कभी कभी
कोई कविता यूं भी बनती है !
21 comments:
sach me kavita aise banti hai, pata na tha......achchha hua, sabse pahle main pahuch gaya....kuchh seekh paunga...:D
bahut pyari se rachna....ek dum naisargik!
सच कहा कविता यूं भी बनती है…………सुन्दर भाव संयोजन्।
वाह ..इतनी प्यारी कविता ..भोर की सुन्दरता समेटे
वाह ...बहुत ही सुन्दर भाव।
शब्द कुछ कहने को
हों उठते हैं आतुर
जैसे कोई शबनम
कली के मुख को चूमती है
खिल उठते हैं नम आंखों में
कई सपने इन्द्रधनुष से
वक्त के हाथो बनी कठपुतली
हाँ कुछ कविता यूं ही बनती है
...
bas banti jati hai ,aur kitna kuch kahti jati hai
हाँ कभी कभी
कोई कविता यूं भी बनती है !
-अजी, इतनी सटीक सेटिंग में तो कविता बनेगी ही...
बहुत खूब.
जैसे कोई शबनम
कली के मुख को चूमती है
खिल उठते हैं नम आंखों में
कई सपने इन्द्रधनुष से
वक्त के हाथो बनी कठपुतली
हाँ कुछ कविता यूं ही बनती है
यह सपने नम आँखों में ही इन्द्रधनुष क्यों बनाते हैं ? बहुत सुन्दर शब्द संयोजन .
सच कहा है कविता ऐसे ही बनाती जाती है...बहुत भावमयी रचना..
बहुत सुंदर ...सच प्रकृति के रंग समेटे कई कवितायेँ जन्म लेती हैं..... सुंदर चित्रण
@@हाँ कभी कभी
कोई कविता यूं भी बनती है !..
लाजवाब रचना.
सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
वाह
aapki kavitaa to yoon hee nahi banti ranju ji....deep thoughts, amazing imagination...perfect combination!!
हाँ कुछ कविता यूं ही बनती है
जैसे किसी रेगिस्तान में
कभी कभी
झूमते सावन की हँसी गूंजती है
हाँ कभी कभी
कोई कविता यूं भी बनती है ...
सच है जीवित कविताएँ अक्सर ऐसे ही बनती हैं .... लाजवाब लिखा है आपने ...
गुनगुनाती चिरया
का शोर
आसमान में उगती
सुबह की भोर
सात्विक अहसास दिलाती अति सुंदर अभिव्यक्ति .
मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'पर आपका स्वागत है.
होली के सुअवसर पर आपको व सभी ब्लोगर जन को हार्दिक शुभ कामनाएँ.
सच है जीवित कविताएँ अक्सर ऐसे ही बनती हैं| धन्यवाद|
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
जानिए धर्म की क्रान्तिकारी व्याख्या।
BAHUT SUNDAR ..KAVI HRIDAY BAHUT KUCHH SAMETE RHTA HAI APNE ANDAR....AUR KAVITA BAN JATI HAI..
आप की सारी कविताए बहुत सुन्दर और दिल को छुने वाली हैं.पढ़ कर मैं प्रोत्साहित हुई.
आप की सारी कविताए बहुत सुन्दर और दिल को छुने वाली हैं.पढ़ कर मैं प्रोत्साहित हुई.
आप की सारी कविताए बहुत सुन्दर और दिल को छुने वाली हैं.पढ़ कर मैं प्रोत्साहित हुई.
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