Monday, October 04, 2010

यूँ ही

डायरी के
पुराने पीले
पन्नो में
मिली है ..
कुछ यादें पुरानी
कुछ लफ्ज़
कुछ तस्वीरें
सोच में हूँ ...
क्या तुम भी
यूँ ही
मिल जाओगे कभी ?

29 comments:

shikha varshney said...

वाह क्या बात है ..४ पंक्तियों में सारी भावनाएं उड़ेल दीं ..

अनिल कान्त said...

बहुत कुछ कहती हैं ये चन्द पंक्तियाँ

Abhishek Ojha said...

कुछ सूखे गुलाब अक्सर मिल जाते हैं पुरानी किताबों में... एक पोस्ट लिखनी हैं मुझे उन गुलाबों पर !

santosh kumar said...

बहुत खूबसूरत! इन थोड़ी सी लाइन मैं भी बहुत कुछ कह और उससे जयादा छुपा लिया है !
डायरी के पन्ने अक्सर सफ़ेद होते हैं, गुज़रता वक़्त उन्हें पीला और पीला करता जाता है ! और कई बार दिल सोंचता है की काश ये पीले पन्ने फिर से एक बार सफ़ेद हो पाते !

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

bahut hee sundar rachna!

rashmi ravija said...

चंद शब्दों में...ही एक कसक उभर आई
सुन्दर रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूब ...बस यादों की डायरी खोल लेना :):)

Majaal said...

जाने वाले कमबख्त नहीं आते,
आती है, तो बस यादें उनकी ....

बहुत उम्दा.. बढ़िया भावाव्यक्ति .. लिखते रहिये ....

DR.ASHOK KUMAR said...

बहुत ही खूबसूरत कविता हैँ। कम शब्दोँ मेँ लाजबाव अभिव्यक्ति के लिए बहुत-बहुत बधाई।-: VISIT MY BLOG :- जमीँ पे है चाँद छुपा हुआ।..........कविता पर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप आमंत्रित हैँ आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।

Manoj K said...

उन कगजून को में जला चुका पर आँखें अभी भी करती है इन्तेज़ार...

बहुत खूब.. आपने कुछ याद दिला दिया..

वन्दना अवस्थी दुबे said...

डायरी के
पुराने पीले
पन्नो में
मिली है ..
कुछ यादें पुरानी
कुछ लफ्ज़
कुछ तस्वीरें
सोच में हूँ ...
क्या तुम भी
यूँ ही
मिल जाओगे कभी
क्या बात है, रंजना जी... आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक.. कमाल की कविता.

Alpana Verma said...

सुन्दर अभिव्यक्ति !
-होता है ऐसा भी अक्सर!
कहते हैं न..कि' आस को चाहिए एक उम्र असर होने तक..'

Asha Joglekar said...

काश.. कि ऐसा ही होता । सुंदर भावभीनी अभिव्यक्ति, पन्नों का पीला पडना बहुत कुछ कह रहा है ।

मनोज कुमार said...

ओह! कम शब्द में भावनाओं का सागर!! मन भींग गया।

बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
योगदान!, सत्येन्द्र झा की लघुकथा, “मनोज” पर, पढिए!

vandana gupta said...

सोच में हूँ ...
क्या तुम भी
यूँ ही
मिल जाओगे कभी ?

चंद पंक्तियों मे ही सारे जज़्बात उभर कर आ गये हैं…………बहुत कह दिया।

अमिताभ मीत said...

Very Well said ... Kyaa baat hai !!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया रंजना जी
नमस्कार !

क्या तुम भी
यूं ही
मिल जाओगे कभी ?


बहुत भाव विह्वल कर देने वाला मा'सूम -सा सवाल है । इतनी मासूमियत से कोई कहे तो शायद गया वक़्त भी लौट आए …
:)

ख़ूबसूरत कविता के लिए बधाई !

शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

स्वाति said...

बहुत खूब..चंद पंक्तियों मे बहुत कुछ कह दिया...

संजय भास्‍कर said...

बहुत उम्दा.. बढ़िया भावाव्यक्ति .

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

लिल्लाह!
आशीष
--
प्रायश्चित

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सारे भाव समेट लिए आपने तो ..... यूँ ही...... :)
बहुत सुंदर पंक्तियाँ......

निर्मला कपिला said...

सोच में हूँ ...
क्या तुम भी
यूँ ही
मिल जाओगे कभी ?
चंद शब्दों मे यूँ ही नही व्यथा लिखी जाती। जब संवेदनाओं का वेग बहे तो मन सवाल पूछता ही है। बहुत सुन्दर। शुभकामनायें

Akanksha Yadav said...

यूँ ही लिखी गई खूबसूरत अभिव्यक्तियाँ...बधाई.


__________________________
"शब्द-शिखर' पर जयंती पर दुर्गा भाभी का पुनीत स्मरण...

अंजना said...

सुन्दर रचना....

नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।

somadri said...

bahut khub, taravat liye panne dikh gaye

अनामिका की सदायें ...... said...

उम्मीदों पर दुनिया कायम है जी.

अशोक लालवानी said...

milta hai koi khamoshi se aur de jata hai umra bhar ki gunj pyar ki... bahut hi gahri rachna kah gae sab kuch jo tha unkaha...

purnima said...

sundar..............

Satish Saxena said...

पुरानी यादों की मार्मिक अभिव्यक्ति ...