बहुत खूबसूरत! इन थोड़ी सी लाइन मैं भी बहुत कुछ कह और उससे जयादा छुपा लिया है ! डायरी के पन्ने अक्सर सफ़ेद होते हैं, गुज़रता वक़्त उन्हें पीला और पीला करता जाता है ! और कई बार दिल सोंचता है की काश ये पीले पन्ने फिर से एक बार सफ़ेद हो पाते !
डायरी के पुराने पीले पन्नो में मिली है .. कुछ यादें पुरानी कुछ लफ्ज़ कुछ तस्वीरें सोच में हूँ ... क्या तुम भी यूँ ही मिल जाओगे कभी क्या बात है, रंजना जी... आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक.. कमाल की कविता.
सोच में हूँ ... क्या तुम भी यूँ ही मिल जाओगे कभी ? चंद शब्दों मे यूँ ही नही व्यथा लिखी जाती। जब संवेदनाओं का वेग बहे तो मन सवाल पूछता ही है। बहुत सुन्दर। शुभकामनायें
29 comments:
वाह क्या बात है ..४ पंक्तियों में सारी भावनाएं उड़ेल दीं ..
बहुत कुछ कहती हैं ये चन्द पंक्तियाँ
कुछ सूखे गुलाब अक्सर मिल जाते हैं पुरानी किताबों में... एक पोस्ट लिखनी हैं मुझे उन गुलाबों पर !
बहुत खूबसूरत! इन थोड़ी सी लाइन मैं भी बहुत कुछ कह और उससे जयादा छुपा लिया है !
डायरी के पन्ने अक्सर सफ़ेद होते हैं, गुज़रता वक़्त उन्हें पीला और पीला करता जाता है ! और कई बार दिल सोंचता है की काश ये पीले पन्ने फिर से एक बार सफ़ेद हो पाते !
bahut hee sundar rachna!
चंद शब्दों में...ही एक कसक उभर आई
सुन्दर रचना
बहुत खूब ...बस यादों की डायरी खोल लेना :):)
जाने वाले कमबख्त नहीं आते,
आती है, तो बस यादें उनकी ....
बहुत उम्दा.. बढ़िया भावाव्यक्ति .. लिखते रहिये ....
बहुत ही खूबसूरत कविता हैँ। कम शब्दोँ मेँ लाजबाव अभिव्यक्ति के लिए बहुत-बहुत बधाई।-: VISIT MY BLOG :- जमीँ पे है चाँद छुपा हुआ।..........कविता पर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप आमंत्रित हैँ आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।
उन कगजून को में जला चुका पर आँखें अभी भी करती है इन्तेज़ार...
बहुत खूब.. आपने कुछ याद दिला दिया..
डायरी के
पुराने पीले
पन्नो में
मिली है ..
कुछ यादें पुरानी
कुछ लफ्ज़
कुछ तस्वीरें
सोच में हूँ ...
क्या तुम भी
यूँ ही
मिल जाओगे कभी
क्या बात है, रंजना जी... आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक.. कमाल की कविता.
सुन्दर अभिव्यक्ति !
-होता है ऐसा भी अक्सर!
कहते हैं न..कि' आस को चाहिए एक उम्र असर होने तक..'
काश.. कि ऐसा ही होता । सुंदर भावभीनी अभिव्यक्ति, पन्नों का पीला पडना बहुत कुछ कह रहा है ।
ओह! कम शब्द में भावनाओं का सागर!! मन भींग गया।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
योगदान!, सत्येन्द्र झा की लघुकथा, “मनोज” पर, पढिए!
सोच में हूँ ...
क्या तुम भी
यूँ ही
मिल जाओगे कभी ?
चंद पंक्तियों मे ही सारे जज़्बात उभर कर आ गये हैं…………बहुत कह दिया।
Very Well said ... Kyaa baat hai !!
आदरणीया रंजना जी
नमस्कार !
क्या तुम भी
यूं ही
मिल जाओगे कभी ?
बहुत भाव विह्वल कर देने वाला मा'सूम -सा सवाल है । इतनी मासूमियत से कोई कहे तो शायद गया वक़्त भी लौट आए …
:)
ख़ूबसूरत कविता के लिए बधाई !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत खूब..चंद पंक्तियों मे बहुत कुछ कह दिया...
बहुत उम्दा.. बढ़िया भावाव्यक्ति .
लिल्लाह!
आशीष
--
प्रायश्चित
सारे भाव समेट लिए आपने तो ..... यूँ ही...... :)
बहुत सुंदर पंक्तियाँ......
सोच में हूँ ...
क्या तुम भी
यूँ ही
मिल जाओगे कभी ?
चंद शब्दों मे यूँ ही नही व्यथा लिखी जाती। जब संवेदनाओं का वेग बहे तो मन सवाल पूछता ही है। बहुत सुन्दर। शुभकामनायें
यूँ ही लिखी गई खूबसूरत अभिव्यक्तियाँ...बधाई.
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"शब्द-शिखर' पर जयंती पर दुर्गा भाभी का पुनीत स्मरण...
सुन्दर रचना....
नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
bahut khub, taravat liye panne dikh gaye
उम्मीदों पर दुनिया कायम है जी.
milta hai koi khamoshi se aur de jata hai umra bhar ki gunj pyar ki... bahut hi gahri rachna kah gae sab kuch jo tha unkaha...
sundar..............
पुरानी यादों की मार्मिक अभिव्यक्ति ...
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