Monday, September 27, 2010

एक सच

सुना है
लेह जैसे मरुस्थल में भी
बादल फट कर
खूब तबाही मचा गए हैं
जहाँ कहते थे
कभी वह बरसते भी नहीं
ठीक उसी तरह
जैसे मेरे मन में छाए
घने बादल
जब फटेंगे
तो सब तरफ
तबाही का मंजर नजर आएगा
और फिर तिनको की तरह
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!

रंजना (रंजू )

37 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

तबाही का मंजर नजर आएगा
और फिर तिनको की तरह
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!

ओह , भावना को कितने सटीक शब्द दिए हैं ...गज़ब ..

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना ....आभार

Manoj K said...

अहम् कभी रिश्तों के बीच ना आये.. वर्ना जैसा आपने कहा है वैसा ही होता है...

मनोज खत्री

P.N. Subramanian said...

ऐसी रचनाओं से तबाही तो मचेगी ही.

Alpana Verma said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति .

vandana gupta said...

तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!

रिश्तों का बेहद मार्मिक चित्रण्।

रंजन said...

बहुत सुन्दर...

राज भाटिय़ा said...

बाप रे... अच्छी धमकी है, सुधर जाओ नही तो...?
बहुत सुंदर जी, धन्यवाद

संजय भास्‍कर said...

कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

Arvind Mishra said...

रहम रहम

रंजना said...

सहज बात को सुन्दर ढंग से कहकर कितना ख़ास बना दिया आपने...वाह...

वन्दना अवस्थी दुबे said...

जैसे मेरे मन में छाए
घने बादल
जब फटेंगे
तो सब तरफ
तबाही का मंजर नजर आएगा
क्या बात है ...बहुत खूब रंजना जी.

वीना श्रीवास्तव said...

तबाही का मंजर नजर आएगा
और फिर तिनको की तरह
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!

बहुत सुंदर एहसास

निर्मला कपिला said...

तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!
रंजू जी अहं होता ही जलजला है जो सब कुछ तो नश्ट करता ही है मगर उसके हाथ भी तबाही के सिवा कुछ नही आता। आपकी लेखनी हमेशा प्रभावित करती है। बहुत अच्छी लगी आपकी रचना। शुभकामनाये

rashmi ravija said...

तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !
क्या बात है...बहुत ही सटीक लिखा है..एकदम यथार्थ

महेन्‍द्र वर्मा said...

‘जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे‘
यह अहम् ही तो सारे फसाद की जड़ है
सुंदर काव्याभिव्यक्ति के लिए बधाई ।

Abhishek Ojha said...

वाह !

संगीता पुरी said...

बहुत खूब !!

अमिताभ मीत said...

क्या बात है !!

अनामिका की सदायें ...... said...

सच कहा आपने नारी कितने ही उमड़ घुमड़ करते घने बादल समेटे रहती है अपने भीतर...इसका अंदाजा वो इंसान भी नहीं लगा पता जो दिन रात उसके साथ रहता हो...इस स्थिति से खुद को और साथी को बचना चाहिए...वर्ना तबाही दोनों तरफ लाज़मी है.
सुंदर सशक्त अभिव्यक्ति.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

दिल को छू गई आपकी ये रचना...

M VERMA said...

बेहद भावपूर्ण रचना. बहुत खूबसूरती से कही बात

स्वप्न मञ्जूषा said...

बहुत सुन्दर...

रेखा श्रीवास्तव said...

जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!

यही वह शक्ति है, जिससे इंसां का वजूद इस जहाँ में बचा हुआ है. एक सीमा तक तो सब सह्या है लेकिन जब सीमा पर हो जाये तो वह विध्वंस में भी नहीं हिचकता. बहुत सुन्दर ढंग से भावों को प्रस्तुत किया है. आभार !

Archana Chaoji said...

ये अहम ही तो है जो बादल लेह में फटे ,
जहाँ कहा जाता है,वो बरसते भी नहीं ...
फटने न् देना कभी मन में छाए घने बादलों को,
वरना सबके साथ अपना वजूद भी नजर नहीं आएगा ...
तबाही फैलाने को नहीं है ये मन तुम्हारा,
उम्मीद रखो रिश्ते का रेगिस्तान भी हरा नजर आएगा ...

निर्झर'नीर said...

चर्चा मंच आज बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पे लेकर आया और एक बहुत ही खूबसूरत ...............सरल सूक्ष्म और भावुक रचना पढ़ने को मिली

बंधाई स्वीकारें

सदा said...

तबाही का मंजर नजर आएगा
और फिर तिनको की तरह
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!

आपकी इस बेहतरीन रचना के लिये बधाई ।

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... सच है जब ज़ज्बात की आँधी बहती है तो सब रिश्तों को उखाड़ ले जाती है ..... अच्छी रचना है बहुत ही ....

शरद कोकास said...

बादल फटने के बिम्ब का सुन्दर प्रयोग ।

Udan Tashtari said...

बहुत भावपूर्ण रचना..बधाई.

Asha Joglekar said...

तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!

बाप रे !!!!!!!! मुहब्बत में इतनी तल्खी ।

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत सुन्दर..............

Mumukshh Ki Rachanain said...

जैसे मेरे मन में छाए
घने बादल
जब फटेंगे
तो सब तरफ
तबाही का मंजर नजर आएगा
और फिर तिनको की तरह
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!

अच्छा प्रयास मन की अभिव्यक्ति और आत्मिक शक्ति का

बधाई.......

चन्द्र मोहन गुप्त

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सुंदर मनोभाव :)

अंजना said...

अच्छी भावपूर्ण रचना |

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

रिश्तों का ठंडा रेगिस्तान, सचमुच असरदार दास्तान।
................
…ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।

Satish Saxena said...

लगता है जैसे तूफ़ान सा छिपा है गहरे बादलों के पीछे ! दिल को छू गयी यह रचना रंजना जी !