सुना है
लेह जैसे मरुस्थल में भी
बादल फट कर
खूब तबाही मचा गए हैं
जहाँ कहते थे
कभी वह बरसते भी नहीं
ठीक उसी तरह
जैसे मेरे मन में छाए
घने बादल
जब फटेंगे
तो सब तरफ
तबाही का मंजर नजर आएगा
और फिर तिनको की तरह
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!
रंजना (रंजू )
37 comments:
तबाही का मंजर नजर आएगा
और फिर तिनको की तरह
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!
ओह , भावना को कितने सटीक शब्द दिए हैं ...गज़ब ..
बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना ....आभार
अहम् कभी रिश्तों के बीच ना आये.. वर्ना जैसा आपने कहा है वैसा ही होता है...
मनोज खत्री
ऐसी रचनाओं से तबाही तो मचेगी ही.
भावपूर्ण अभिव्यक्ति .
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!
रिश्तों का बेहद मार्मिक चित्रण्।
बहुत सुन्दर...
बाप रे... अच्छी धमकी है, सुधर जाओ नही तो...?
बहुत सुंदर जी, धन्यवाद
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
रहम रहम
सहज बात को सुन्दर ढंग से कहकर कितना ख़ास बना दिया आपने...वाह...
जैसे मेरे मन में छाए
घने बादल
जब फटेंगे
तो सब तरफ
तबाही का मंजर नजर आएगा
क्या बात है ...बहुत खूब रंजना जी.
तबाही का मंजर नजर आएगा
और फिर तिनको की तरह
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!
बहुत सुंदर एहसास
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!
रंजू जी अहं होता ही जलजला है जो सब कुछ तो नश्ट करता ही है मगर उसके हाथ भी तबाही के सिवा कुछ नही आता। आपकी लेखनी हमेशा प्रभावित करती है। बहुत अच्छी लगी आपकी रचना। शुभकामनाये
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !
क्या बात है...बहुत ही सटीक लिखा है..एकदम यथार्थ
‘जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे‘
यह अहम् ही तो सारे फसाद की जड़ है
सुंदर काव्याभिव्यक्ति के लिए बधाई ।
वाह !
बहुत खूब !!
क्या बात है !!
सच कहा आपने नारी कितने ही उमड़ घुमड़ करते घने बादल समेटे रहती है अपने भीतर...इसका अंदाजा वो इंसान भी नहीं लगा पता जो दिन रात उसके साथ रहता हो...इस स्थिति से खुद को और साथी को बचना चाहिए...वर्ना तबाही दोनों तरफ लाज़मी है.
सुंदर सशक्त अभिव्यक्ति.
दिल को छू गई आपकी ये रचना...
बेहद भावपूर्ण रचना. बहुत खूबसूरती से कही बात
बहुत सुन्दर...
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!
यही वह शक्ति है, जिससे इंसां का वजूद इस जहाँ में बचा हुआ है. एक सीमा तक तो सब सह्या है लेकिन जब सीमा पर हो जाये तो वह विध्वंस में भी नहीं हिचकता. बहुत सुन्दर ढंग से भावों को प्रस्तुत किया है. आभार !
ये अहम ही तो है जो बादल लेह में फटे ,
जहाँ कहा जाता है,वो बरसते भी नहीं ...
फटने न् देना कभी मन में छाए घने बादलों को,
वरना सबके साथ अपना वजूद भी नजर नहीं आएगा ...
तबाही फैलाने को नहीं है ये मन तुम्हारा,
उम्मीद रखो रिश्ते का रेगिस्तान भी हरा नजर आएगा ...
चर्चा मंच आज बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पे लेकर आया और एक बहुत ही खूबसूरत ...............सरल सूक्ष्म और भावुक रचना पढ़ने को मिली
बंधाई स्वीकारें
तबाही का मंजर नजर आएगा
और फिर तिनको की तरह
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!
आपकी इस बेहतरीन रचना के लिये बधाई ।
बहुत खूब ... सच है जब ज़ज्बात की आँधी बहती है तो सब रिश्तों को उखाड़ ले जाती है ..... अच्छी रचना है बहुत ही ....
बादल फटने के बिम्ब का सुन्दर प्रयोग ।
बहुत भावपूर्ण रचना..बधाई.
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!
बाप रे !!!!!!!! मुहब्बत में इतनी तल्खी ।
बहुत सुन्दर..............
जैसे मेरे मन में छाए
घने बादल
जब फटेंगे
तो सब तरफ
तबाही का मंजर नजर आएगा
और फिर तिनको की तरह
तुम्हारा वजूद
जो अहम् बन कर
खड़ा है बीच में हमारे
कहीं इस रिश्ते के
ठंडे रेगिस्तान में
दफ़न हो जाएगा !!
अच्छा प्रयास मन की अभिव्यक्ति और आत्मिक शक्ति का
बधाई.......
चन्द्र मोहन गुप्त
सुंदर मनोभाव :)
अच्छी भावपूर्ण रचना |
रिश्तों का ठंडा रेगिस्तान, सचमुच असरदार दास्तान।
................
…ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
लगता है जैसे तूफ़ान सा छिपा है गहरे बादलों के पीछे ! दिल को छू गयी यह रचना रंजना जी !
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