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Monday, May 24, 2010
यादों के पल
जीवन की रेल पेल में
हर संघर्ष को झेलते
हर सुख दुःख को सहते
कभी मैंने चाही नही इनसे मुक्ति
पर कभी बैठे बैठे यूं ही अचानक
जब भी याद आई तुम्हारी
तब यह मन आज भी
भीगने सा लगता है
चटकने लगते हैं तन मन में
जैसे मोंगारे के फूल
और जैसे
सर्दी से कांपते बदन में
तेरी याद का साया
गुनगुनी धूप सी भर देता है
छेड़ता नहीं है कोई सरगम को
फ़िर भी एक संगीत दिल में
गूंजने लगता है ..
उतर जाते हैं कई आवरण
उन यादो से .
जिन्हें दिल आज भी संजोये हुए हैं
नही पड़ने देता दिल
इन पर वक्त का साया
क्यों कि यही कुछ याद के पल
इस तपते जीवन को
एक ठंडी छाया देते हैं
जीवन के कड़वे यथार्थ को
कुछ तो समृद्ध बना देते हैं !!
रंजना (रंजू ) भाटिया
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33 comments:
प्रेमपूर्ण,भावमय प्रस्तुति।
कविता वही श्रेष्ठ है जहाँ व्यष्टि की पीड़ा समष्टि से एकाकार हो जाती हो ..आपकी कवितायेँ बार बार यहे अहसास दिलाती हैं -बहुत सुन्दर !
दिल को छु गयी आपकी कविता , भाव रुपी मोतियों से पिरो कर बहुत सुंदर माला बनाई है आपने ....
waah ranjana ji bahut sundar abhivyakti...
sardi se kanpate .....dhoop si bhar deta hai--behad mitha andaaj. sachmuch hi gunguni dhoop ka ehasaas de gaya.
waah ranjana ji bahut sundar abhivyakti...
उन यादो से .
जिन्हें दिल आज भी संजोये हुए हैं
नही पड़ने देता दिल
इन पर वक्त का साया
क्यों कि यही कुछ याद के पल
इस तपते जीवन को
एक ठंडी छाया देते हैं
जीवन के कड़वे यथार्थ को
कुछ तो समृद्ध बना देते हैं !
वाह , कितनी सुखद अनुभूति है....गर्मी में छाँव सी देती हुई रचना ....खूबसूरत
रूमानी भावों की कोमल सुन्दर मनमोहक अभिव्यक्ति ....वाह !!!
प्रेम का कितना सुन्दर प्रतिमान. बहुत सुन्दर रचना.
सर्दी से कांपते बदन में
तेरी याद का साया
गुनगुनी धूप सी भर देता है..
kitna sukhmay ehsaas...! komalta se paripoorna rachna!
अच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
प्रेममयी व् सुंदर कविता...
प्रेम में डूबे अहसास चाहे वे यादों के जल से भीगे क्यूँ न हों..जीवन के यथार्थ की कड़वाहट को बदलने की क्षमता रखते हैं यही आप की कविता समझा रही है मुझे भी..
भावों की बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति .
क्यों कि यही कुछ याद के पल
इस तपते जीवन को
एक ठंडी छाया देते हैं
जीवन के कड़वे यथार्थ को
कुछ तो समृद्ध बना देते हैं !!
kitni sachchi baat ki hai aapne ..vakai kuchh pal hi kafi hote hain jine ke liye..
bhavpurn abhivyakti
क्यों कि यही कुछ याद के पल
इस तपते जीवन को
एक ठंडी छाया देते हैं
जीवन के कड़वे यथार्थ को
कुछ तो समृद्ध बना देते हैं !
-बहुत सुन्दरता से कहा इस बात को..वाह!!
आनन्द आया इस कविता को पढ़कर.
आपकी संवेदनशीलता इसी तरह बनी रहे और अच्छी रचनाएं सामने आती रही।
किसी खास की याद भीतर से तोड ही देती हो और वो भी अगर वो बैठे बैठे यूं ही अचानक आ जाय...लेकिन वही यादे जीवन के कड़वे यथार्थ को कुछ तो समृद्ध बना देते हैं...
हमेशा की तरह काफ़ी कुछ छुपाये हुए..
bahut khoob
बहुत सुन्दर रचना ....हर पंक्ति लाजवाब .....सुन्दर सृजन
सुंदर कविता !
ati sundar....
सर्दी से कांपते बदन में
तेरी याद का साया
गुनगुनी धूप सी भर देता है
रंजना, आपकी कविताएँ भी शीतल छाया सी लगती हैं..
यादें अक्सर तपते रेगिस्तान में .... बारिश ई बूँद बन कर आती हैं ...
बहुत ताज़पन लिए है रचना ....
बहुत सुन्दर रचना ....
यादों के पल सच में ऐसे ही तो होते हैं...
तन-मन में मोंगरे के फूलों के चटकने की कल्पना से मन अत्यंत प्रफुल्लित हो उठा.
हा हा हा
आप भी न ! क्या खूबसूरत कल्पना करती हैं.
नही पड़ने देता दिल
इन पर वक्त का साया
क्यों कि यही कुछ याद के पल
इस तपते जीवन को
एक ठंडी छाया देते हैं
जीवन के कड़वे यथार्थ को
कुछ तो समृद्ध बना देते हैं !!
bahut sachchi baat ......yahi lamhe hai jinse jeene ka housla hai
जब भी याद आई तुम्हारी
तब यह मन आज भी
भीगने सा लगता है
चटकने लगते हैं तन मन में
जैसे मोंगारे के फूल
और जैसे
सर्दी से कांपते बदन में
तेरी याद का साया
गुनगुनी धूप सी भर देता है
बहुत सहज किन्तु गहराई लिए स्नेहिल बिंब..कोई बनावट नहीं है इसलिए सार्थक है..
भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
बड़ी ज़िन्दा कविता है। बहुत ख़ूबसूरत।
मगर साथ ही एक टिप्पणी है आपकी "ख़त" कविता पर भी।
----------------
अब ये लगता है कि एक वो ख़त-
जिसमें प्यार भरा था,
एक वो-
जिसमें शिक्वा-गिला था,
सवाल ये नहीं बाक़ी कि इनमें
कौन सा ख़त था बुरा - कौन भला था;
कसक इस बात पे है कि कौन पहले-
कौन बाद में मिला था।
शुभकामनाओं सहित,
नही पड़ने देता दिल
इन पर वक्त का साया
क्यों कि यही कुछ याद के पल
इस तपते जीवन को
एक ठंडी छाया देते हैं
जीवन के कड़वे यथार्थ को
कुछ तो समृद्ध बना देते हैं !
यही खूबसूरत प्यारी यादें जीवन के मुश्किल समय को आसान बना देती हैं । सुंदर प्रस्तुति ।
wow! great..
bahut khoob..
congrats..
छेड़ता नहीं है कोई सरगम को
फ़िर भी एक संगीत दिल में
गूंजने लगता है ..
उतर जाते हैं कई आवरण ...
इस अनछेड़े संगीत को सुनते है कितने आतुर मन ...कभी भिगोते पलकें , कभी तन -मन
अजब एहसास है यह भी ...
बहुत सुन्दर कविता ...!!
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