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Monday, March 15, 2010
ज़िंदगी का सच
क्यों खिले गुल ,
इस चमन में
दे के सुगंध ..
फिर क्यों मुरझाए?
शमा जली तो रोशनी के लिए
पर परवाना क्यों
संग जल के मर जाए?
गुनगुन करते भंवरे,
क्यों सब पराग पी जाए?
क्यों फूल भी हँस के अपना
सब कुछ उस पर लुटाए ?
झूमती गाती हवा
क्यों एक दम शांत हो जाए
धीमे धीमे बहते दिन रात
वक़्त को कैसे मिटाए ?
झरनों में बह कर पर्वत की
सब कठोरता क्यों बह जाए
अपना सब कुछ दे के भी
प्रकति हर दम क्यों मुस्कराये ?
इन्ही तत्वों से बना मानव
सब कुछ लूटा के जीने का
यह भेद क्यों समझ न पाए
इस राज़ का राज़ है गहरा
जो जीए सही अर्थ में ज़िंदगी
वही इसको समझ पाए !!
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28 comments:
bahut sundar bhavavyakti.........yahi to jeevan ka satya hai.
so very nice ...........didi
bahut accha jeevan ka satya hai ya didi
इन्ही तत्वों से बना मानव
सब कुछ लूटा के जीने का
यह भेद क्यों समझ न पाए
इस राज़ का राज़ है गहरा
जो जीए सही अर्थ में ज़िंदगी
वही इसको समझ पाए !!
अच्छा संदेश .. सुंदर भावाभिव्यक्ति !!
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
कविता के माध्यम से
जीवन का सार समझाने के लिए
शुक्रिया!
"इन्ही तत्वों से बना मानव
सब कुछ लूटा के जीने का
यह भेद क्यों समझ न पाए"
यही राज़ तो मनुष्य समझने को तैयार नहीं...जबकि आसपास इतने उदाहरण बिखरे पड़े हैं....आपने बड़ी खूबसूरती से सबको समेटा है इस सुन्दर कविता में...
"इस राज़ का राज़ है गहरा
जो जीए सही अर्थ में ज़िंदगी
वही इसको समझ पाए !!"
अखंड सत्य - जो समझे उसका बेडा पार - धन्यवाद्
कौन समझ पाया है जीवन का यह अर्थ -सुन्दर रचना
क्यों फूल भी हँस के अपना
सब कुछ उस पर लुटाए ?
झरनों में बह कर पर्वत की
सब कठोरता क्यों बह जाए
-प्रेम समर्पण ही तो यह सब करवाता है.
जीवन के मायने अगर मनुष्य समझ जाये तो बात ही क्या है!इसी को समझने में जीवन गुजरता चला जाता है.
अर्थपूर्ण और भावों भरी कविता मन भायी .
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Monday, March 15, 2010
ज़िंदगी का सच
क्यों खिले गुल ,
इस चमन में
दे के सुगंध ..
फिर क्यों मुरझाए?
शमा जली तो रोशनी के लिए
पर परवाना क्यों
संग जल के मर जाए?
गुनगुन करते भंवरे,
क्यों सब पराग पी जाए?
क्यों फूल भी हँस के अपना
सब कुछ उस पर लुटाए ?...बहुत ही बेहतरीन.
बहुत सुन्दर रचना ।
धन्यवाद
ढेर सारे सवाल पूछती सुन्दर रचना.
सच्ची जिंदगी का सच बयान कर दिया।
इस राज का राज ! क्या खूब कहा.
इन्ही तत्वों से बना मानव
सब कुछ लूटा के जीने का
यह भेद क्यों समझ न पाए
इस राज़ का राज़ है गहरा
जो जीए सही अर्थ में ज़िंदगी
वही इसको समझ पाए !
-बेहतरीन संदेशात्मक अभिव्यक्ति!! बधाई.
जो जीए सही अर्थ में ज़िंदगी
वही इसको समझ पाए !!
जिन्दगी का सच यही है जिन्दगी को वही समझ पाता है जो जिन्दगी जीता है
सुन्दर
जीवन का सार बताती....अच्छी रचना...बधाई
यही ज़िन्दगी का सच है ।
झरनों में बह कर पर्वत की
सब कठोरता क्यों बह जाए
अपना सब कुछ दे के भी
प्रकति हर दम क्यों मुस्कराये ?
निर्मल निर्झर से स्वाभाविक प्रश्न
सुन्दर रचना
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति है
जीवन की इस पहेली को अगर कोई समझ जाये तो फिर और क्या रह गया समझने को
जीवन का सारांश बताती हुई कविता बहुत ही सुंदर............
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति बेहतरीन शब्दों के साथ ।
झरनों में बह कर पर्वत की
सब कठोरता क्यों बह जाए
अपना सब कुछ दे के भी
प्रकति हर दम क्यों मुस्कराये ?
प्रकृति को आधार बना सुन्दर कृति ......!!
बहुत बढिया रचना ।
नव संवत 2067 और नवरात्र की शुभ कामनाए़ं ।
bahut hi prabhavshali abhi vykti. bahut hisach likh aapane.
poonam
मुझे पढते पढ्ते लगा आप सवालो के साथ ही छोडेगी लेकिन आपने खुद ही जवाब भी दे दिया..यही बात हम सब समझ ले तो शायद कोई अकेला न रहे..और कोई मुफ़लिस भी नही...
इन्ही तत्वों से बना मानव
सब कुछ लूटा के जीने का
यह भेद क्यों समझ न पाए
इस राज़ का राज़ है गहरा
जो जीए सही अर्थ में ज़िंदगी
वही इसको समझ पाए ...
बहुत खूब .. ये सच है ... कुछ दे कर जीने में जो मज़ा है वो बस लेते रहने में कहाँ ... और ये बात इंसान प्रकृति से सीख सकता है .... लाजवाब लिखा है आपने ...
"जो जीए सही अर्थ में ज़िंदगी
वही इसको समझ पाए !!"
बिलकुल सच ! खूबसूरत कविता का आभार ।
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