Saturday, March 06, 2010

"संगिनी"


यूं जब अपनी पलके उठा के
तुम देखती हो मेरी तरफ़
मैं जानता हूँ....
कि तुम्हारी आँखे
पढ़ रही होती है
मेरे उस अंतर्मन को
जो मेरा ही अनदेखा
मेरा ही अनकहा है..


अपनी मुस्कराहट से
जो देती हो मेरे सन्नाटे को
हर पल नया अर्थ
और मन की गहरी वादियों में
चुपके से खिला देती हो
आशा से चमकते
सितारों की रौशनी को
मैं जानता हूँ कि....
यह सपना मेरा ही बुना हुआ है


पूर्ण करती हो
मेरे अस्तित्व को
छाई सर्दी की पहली धूप की तरह
भर देती हो मेरे सूनेपन को
अपने साये से फैले वट वृक्ष की तरह
सम्हो लेती हो अपने सम्मोहन से
मैं जानता हूँ कि
यही सब मेरे साँस लेने की वजह है

तुम जो हो ....
एक अदा.....
एक आकर्षण....
एक माँ ,एक प्रेमिका
और संग संग जीने की लय
मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तुम्हारे हर अक्स में रचा बसा है !!

रंजना (रंजू )भाटिया


महिला दिवस पर लिखी कुछ रचनाएं यहाँ भी पढ़ सकते हैं आप ...(मैं क्या हूँ ,यह सोचती खुद में डूबी हुई हूँ)

34 comments:

संजय भास्‍कर said...

आशा से चमकते
सितारों की रौशनी को
मैं जानता हूँ कि....
यह सपना मेरा ही बुना हुआ है


इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

प्रिया said...

तुम जो हो ....
एक अदा.....
एक आकर्षण....
एक माँ ,एक प्रेमिका
और संग संग जीने की लय
मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तेरे हर अक्स में रचा बसा है !!

Last para ....It's really touching

कुश said...

उड़ेल कर रख दिया आपने.. बहुत खूब

डॉ. मनोज मिश्र said...

तुम जो हो ....
एक अदा.....
एक आकर्षण....
एक माँ ,एक प्रेमिका
और संग संग जीने की लय
मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तुम्हारे हर अक्स में रचा बसा है !!
भाव-विभोर कर देने वाली रचना,बहुत धन्यवाद.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

मैं जानता हूँ कि....
यह सपना मेरा ही बुना हुआ है

Bahut samvedansheel.

Arvind Mishra said...

बहुत सुन्दर कविता आभार

vandana gupta said...

bahut hi gahan abhivyakti........mahila diwas ko sarthak karti huyi.

aarkay said...

नारी के विभिन्न रूपों को उजागर करती व उसे पुरुष के लिए अपरिहार्य ठहराती एक सुंदर कविता
!

दिगम्बर नासवा said...

तुम जो हो ....
एक अदा.....
एक आकर्षण....
एक माँ ,एक प्रेमिका
और संग संग जीने की लय
मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तेरे हर अक्स में रचा बसा है ..

दिल के बहुत पास रहती हैं ऐसी रचनाएँ ... विभोर कर काईं ये पंक्तियाँ ...

M VERMA said...

प्रकति का सुंदर खेल
तुम्हारे हर अक्स में रचा बसा है !!
जी हाँ हर रूप बसा है क्योकि नारी प्रकृति है

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत गहराई लिए हुए.... सुंदर अभिव्यक्ति के साथ .... यह रचना दिल को छू गई...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति....मन की अनुभूति को सुन्दर शब्द दिए हैं

वन्दना अवस्थी दुबे said...

मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तुम्हारे हर अक्स में रचा बसा है !!
बहुत सुन्दर, सार्थक रचना. बधाई.

राज भाटिय़ा said...

अति सुंदर रचना.
धन्यवाद

Alpana Verma said...

'पूर्ण करती हो
मेरे अस्तित्व को
छाई सर्दी की पहली धूप की तरह
भर देती हो मेरे सूनेपन को
अपने साये से फैले वट वृक्ष की तरह'
***वाह! बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति !
साथ बहा ले जाती हैं ये पंक्तियाँ..***
-'संग संग जीने की लय'
प्रकति का सुंदर खेल
तुम्हारे हर अक्स में रचा बसा है-
***अद्भुत!***

रश्मि प्रभा... said...

bhawnaaon ki adbhut chhawi

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत ही बेहतरीन!!!!!!!!!!!!!!!!!!रचना 1
क्या लिखती हैं आप बधाई
सुमन’मीत’

किरण राजपुरोहित नितिला said...

बहुत बढ़िया कविता . भावभीनी और सुन्दर रचना .

शरद कोकास said...

सहज अभिव्यक्ति है यह ।

सुशील छौक्कर said...

बहुत बेहतरीन लिखा है आपने। और आखिरी पक्तियाँ तो बाकई दिल को छू गई।

निर्मला कपिला said...

्रंजू जी दिल्ली मे आपसे मिलना एक सुखद अनुभव रहा आपने जिस तरह से मेरी सेवा की अभिभूत हूँ धन्यवाद। आपकी रचना तो हमेशा ही दिल को छूती है मगर आपका व्यव्हार भी दिल को छू गया। धन्यवाद।

Abhishek Ojha said...

"प्रकति का सुंदर खेल
तुम्हारे हर अक्स में रचा बसा है !!"

वाह ! महिला दिवस पर सबसे अच्छी लाइन.

अनामिका की सदायें ...... said...

mahila diwas par aapki ye rachna mahila ki mehetta ko darshati lubhati si lagi.bahut acchhi rachna.badhayi.

Anamika7577.blogspot.com

सदा said...

आशा से चमकते
सितारों की रौशनी को
मैं जानता हूँ कि....
यह सपना मेरा ही बुना हुआ है,

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द संयोजन बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

rashmi ravija said...

मैं जानता हूँ कि
यही सब मेरे साँस लेने की वजह है

कितना सुन्दर अहसास है...

प्रकति का सुंदर खेल
तुम्हारे हर अक्स में रचा बसा है !!
बहुत ही gahri anubhootiyaan darshaati rachna

मुकेश कुमार तिवारी said...

रंजना जी,

न जाने कितने दिनों के बाद आज कुछ वक्त निकाल पाया कि नैट का मुँह कर सकूं।

अपनी मुस्कराहट से
जो देती हो मेरे सन्नाटे को
हर पल नया अर्थ
और मन की गहरी वादियों में
चुपके से खिला देती हो
आशा से चमकते
सितारों की रौशनी को
मैं जानता हूँ कि....
यह सपना मेरा ही बुना हुआ है

बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ है, सभी कुछ बयाँ

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

रंजना said...

प्रेम के संयोग/सुख और वियोग/दुःख दोनों ही दशाओं/ भावों को सहज सरस सम्मोहक अभिव्यक्ति देने में आप बेजोड़ हैं....

mridula pradhan said...

apki kavita bahut pasand ayi.

mridula pradhan said...

behad achchi kavita hai. badhayee ho.

Satish Saxena said...

रंजना जी !
एक बढ़िया अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनायें !

Satish Saxena said...

पुरुष के भाव बखूबी उकेरने में कामयाब हैं यहाँ रंजना जी ! शुभकामनायें !

Ashish (Ashu) said...

अति सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत सुंदर शव्दो से सजाया है आप ने इस सुंदर कविता को.बहुत सुंदर
धन्यवाद

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

हमेशा की तरह भावनाओ से ओतप्रोत, सराबोर रचना...हर इन्सान का एक सेन्सीटिविटी इन्डेक्स होता है और आप काफ़ी सेन्सीटिव है...